लिटिल इप्टा की डायरी

युद्ध के साए और बच्चे

अंतर्जाल से साभार

आज़ाद हवा में बचपन जीने वाले बच्चों को युद्ध क्या होता है यह समझाना बहुत कठिन है। हम ऐसे मुल्क में रहते हैं जहां युद्ध का नाम आते ही हमें हमारा पड़ोसी देश याद आता है और हमारी राष्ट्रवाद की भावना बलवती हो जाती है। हम इसके पक्ष में हज़ार रेडीमेड दलीलें अपने पॉकेट में रखकर चलते हैं और इसके विरुद्ध बोलने वालों को तो लगता है ज़बानी तोप से ही सलामी देकर उड़ा दिया जाएगा।

कई दिनों से उधेड़बुन में रही कि किस तरह से बच्चों को युद्ध की विभीषिका और उसके दुष्परिणाम से परिचित कराया जाए। हालांकि हिरोशिमा दिवस के दिन हम लोगों ने दो एनिमेशन मूवी देखी जिससे उन्हें बम की भयावहता का अंदाज़ा हुआ, इसमें से एक बी बी सी ने बनाई जो हिरोशिमा त्रासदी की भुक्तभोगी रही उनकी कहानी पर बनीं। बच्चों लिए यह बहुत आश्चर्य का सबब रहा कि कोई देश किसी दूसरे पर इस तरह से दो बार बम कैसे गिरा सकता है। यह विडम्बना है कि यह सरल बात हुक्मरानों को समझ नहीं आ रही जिसकी वजह से लोग जंग से तबाह हो रहे हैं। बच्चों को समझाने की कोशिश के द्वन्द में कि युद्ध क्या है तो कुछ बातें जेहन में आई और यहाँ टंकित होती चली गई-

हवा में जब बारूद भर जाए

आसानियाँ जब मुश्किलें बन जाए

घर जब मलबे में तब्दील हो जाए

आवाज़ जब शोर में तब्दील हो जाए

बच्चे जब ख़ामोश हो जाएं

डर जब चेहरे में चस्पां हो जाए

भूख-नींद का जब फर्क मिट जाए

मासूमों की चीख जब कानों में बस जाए

उस समय जंग अँधेरे के स्याह समंदर में

दुनिया को गर्त में फ़ेंक रही होती है।

यह कितना भयावह समय है जब हमें बच्चों को युद्ध की भयावहता से परिचित कराने की ज़रुरत महसूस हो रही है जिससे कम से कम वे सभी हिंसा,अमानवीयता और पूंजी से उपजे डरावने-भयावह प्रभावों के प्रति सजग रहें और इंसान को मानवीयता के नज़रिये से दुनिया को देख पाएं।

बहुत लम्बे समय से इस दुविधा में रही कि तीसरी और उससे ऊपर पढ़ने वाले बच्चों से कहाँ से बात शुरू करूँ। जब ढूंढना शुरू की तो मिली हिरोशिमा-नागासाकी पर बनीं एनिमेशन मूवी और उसके बाद साइकिल में प्रकाशित ‘अ मिलियन काइट्स’ किताब जो कि गज़ा के बच्चों की लिखी कविताओं का संग्रह है उसमें से कुछ कवितायेँ और डायरी अंश बच्चों के साथ पढ़े।

पहले हिरोशिमा-नागासाकी दिवस के दिन देखी गई एनिमेशन मूवी देखने के बाद बच्चों ने अपनी बात रखी जो उन्हीं के शब्दों में यहां दर्ज़ कर रही हूँ –

दीदी- किसने बम गिराया था ?

बच्चे – अमरीका ने १९४५ को।

दीदी – अमरीका ने लगातार दो दिन अलग-अलग शहर में अपनी ताकत दिखाने बम गिराए थे। जब तुम लोग थोड़े और बड़े होओगे तो समझ आएगा कि अमरीका ने बम क्यों गिराया था।

अभिषेक – दीदी,हमारे यहां भी गिराया था ?

दीदी – नहीं, हमारे यहां किसी ने नहीं गिराया। ६ अगस्त,१९४५ को हिरोशिमा में सुबह ८.१५ पे बम गिराया और ९ अगस्त को नागासाकी में। आज हिरोशिमा दिवस है।अब तुम लोग दोनों फिल्मों के बारे में जो समझ आया वो बताते जाओ।

अभिषेक – दीदी आज तो जापान के लोग दीया (कैंडल) जलाए होंगे।( यहां बताते चलूँ कि जापान में हिरोशिमा-नागासाकी त्रासदी की याद में कागज़ में कैंडल जलाकर वहाँ की आठ नदियों में छोड़ते हैं )

दीदी,हमारे यहां दीया क्यों नहीं छोड़ते ?

दीदी – जापान में यह त्रासदी हुई थी तो वहाँ के लोग उनकी याद में कैंडल छोड़ते हैं। हम लोग चाहें तो उनकी याद में कैंडल जला सकते हैं जैसे आज हम उन सबको याद कर रहे हैं।

साहिल – यीशु मसीह की याद में भी हम लोग कैंडल जलाते हैं न दीदी।

अभिषेक – पहली फिल्म में जब बम गिरा तो पूरी जगह राख हो गई। सब तरफ़ धुंआ भर गया, सब लोग मर जा रहे थे।

साहिल – लड़की को एक चिड़िया मिली जिसके पंख में पूरी आग लग गई थी जिसको वो बचाई।

सुरभि – हिरोशिमा में सभी लड़के युद्ध में चले गए थे तो सभी लड़कियों और स्त्रियों को ऑफिस में काम करना पड़ रहा था। एक लड़की जो ऑफिस में काम करती थी उसे बहुत तेज़ रौशनी दिखती है उसे कुछ समझ नहीं आता है, बम गिरने पर उसे चोट लगती है और वो बेहोश हो जाती है। घर पहुँचने पर उसके मुंह से आवाज़ ही नहीं निकलती है उसके घर में उसकी मां,चाची और बहन रहती हैं

दीदी – अचानक से जब ऐसी स्थिति होती है तो इससे तुम लोगों को क्या समझ आया? फिल्म देखकर क्या लगा?

नम्रता – एटम बम गिरने से कुछ भी नहीं बचता है क्या ?

दीदी – हाँ , बम गिरने से विकिरण/किरण की वजह से लम्बे समय तक असर रहता है, उसके रेडियो एक्टिव पदार्थ से नुकसान होता है जैसे जादूगोड़ा में हो रहा है, इससे बच्चे सामान्य पैदा नहीं होते। जापान में भी बहुत लम्बे समय तक बच्चे विकलांग पैदा होते थे। १९४५ से २०२५ तक का लंबा समय गुज़र गया पर उसका असर बरकरार है। जैसे एक्सरे की किरणें हमारे शरीर के अंदर की फोटो लेकर हमें बताती हैं कि कहाँ की हड्डी टूटी है बिलकुल वैसे ही बम से निकली विकिरणों का बुरा असर शरीर में पड़ता है। अभी यूक्रेन,फलीस्तीन में युद्ध हो रहा है कोई भी चीज़ जो तबाही मचाती है,बर्बाद करती है इसको देखकर कैसा लगा?

राहुल – बम के धुंए से लोग बीमार हो गए थे।आग फैल गई थी।घर टूट गया था।

अभिनव – बम अचानक से गिरा तो लोगों का हाथ-पैर चला गया। कोई-कोई घर के नीचे दब गए,मर गए।

श्रवण – लड़की के पापा पूरा जल गए थे, मां बेहोश हो गई थी। जब आग लगी तो बच्चे जल गये थे,मर गए थे। जो-जो घर के अंदर थे वो घर में दब के मर गए थे।

सुजल – पहली मूवी एक स्त्री के बारे में थी जो हिरोशिमा त्रासदी में बचने पर अपनी कहानी बताती है कि कैसे बचपन में ये सब हुआ था। वो बहुत लम्बे समय तक अपनी कहानी बता नहीं पाती है फिर परिवार वालों के बोलने पर बताती है कि कैसे वह दिन और दिन की तरह सामान्य दिन था। अचानक से बम गिरता है तो वे लोग कुछ नहीं कर पाते और बहुत सारे लोग मारे गए थे।

दूसरी मूवी में भी बताया गया कि शहर तबाह हो जाता है और एक लड़की के पापा पूरी तरह जल जाते हैं। सब तबाह हो जाता है , बिल्डिंग सब गिर जाती है। बहुत से लोग जलकर मरते हैं , जल जाते हैं और रेडिएशन की वजह से बहुत से लोग प्रभावित होते हैं।

अभिषेक – दीदी! हक़ीकत है ?असलियत में हुआ है ये ?

दीदी – हाँ सही में हुआ ?

अभिषेक – तो फोन में क्यों दिखा रहा है यह सब ?

दीदी – मनुष्य जब दुनिया में ऐसी तबाही करता है तो इसके लिए किताब लिखी जाती है, फ़िल्म बनाई जाती है जिससे देखकर बाद में कोई ऐसा न करे। मनुष्य द्वारा इतनी बड़ी गलती जिसमें पूरा शहर बर्बाद हो गया। जब भी कहीं युद्ध होगा,बम गिराया जाएगा तो किसका नुकसान होगा ? हम सबको नुकसान होगा न ? हमारे देश में भोपाल में १९८४ में भोपाल गैस त्रासदी हुई थी जिसमें विषैली गैस फैल गई थी जिससे कारखाने के काफी दूर तक के इलाके में विषैली गैस से प्रभावित हुए थे।

यू ट्यूब से साभार

बच्चों के लिए अविश्वसनीय लगाने वाली कड़वी हकीकत से परिचित कराना कठिन होता है क्योंकि जितना छोटे बच्चे बोल पाते हैं उससे ज़्यादा असर तो उनके मनोविज्ञान पर पड़ता है। उनसे हुई बातों के कई संवाद बेचैन करते हैं। निश्चित ही वे इतना सब कुछ याद नहीं कर पाते पर हर बार कुछ न कुछ उनके जेहन में दर्ज़ होता जा रहा है। सृजन की जगह विनाश की लीला बचपन में देखना, बचपन के साथ सबसे बड़ा मज़ाक है और जहां युद्ध और विनाश होता है वहाँ के बच्चे तो जीवनभर इससे उबर नहीं पाते।

साभार साइकिल पत्रिका

साइकिल पत्रिका में फलीस्तीन के बच्चों की डायरी के अंश प्रकाशित हुए जो प्रसिद्द किताब ‘अ मिलियन काइट्स’से लिए गए अंश थे। उन्हें पढ़ते हुए थोड़ा समझाते हुए बच्चे समझने की कोशिश किये और उस अंश का पाठ करने के बाद अपनी उम्र-अनुभव के हिसाब से युद्ध के बारे में राय रखी –

अभिषेक – युद्ध में लोग मर जाते हैं और कुछ लोगों को बीमारी हो जाती है।

श्रवण – बम वगैरह फेंकने से बच्चों के आँख,कान,नाक में बड़ा-बड़ा फोड़ा हो जा रहा है। सायकिल में जो पढ़े उसमें एक लड़की को किताब से बहुत लगाव था। सोच रही थी कि अगर घर से एक किताब लाने के लिए मिलें तो अपना पूरा घर ही उठाकर ले आएगी।

सवाल – युद्ध में घर बच पाता है ?

अभिषेक – नहीं , घर का सामान भी नहीं बचता।

दिव्या – युद्ध क्यों हो रहा है ?

जवाब – युद्ध हमेशा ज़मीन और सत्ता के लिए होता है और इस युद्ध में भी फलीस्तीन में गज़ा की ज़मीन पर इज़रायल अपना दावा युद्ध करके रख रहा है। अभी २०२३ से युद्ध चल रहा है पर इस युद्ध और संघर्ष का लंबा इतिहास है।

श्रवण – दो साल से ? लगातार ?

जवाब – हाँ , इज़रायल ताकतवर देश है इसलिए लगातार अटैक कर रहा है।

नम्रता – किताब से प्रेम करने वाली लड़की की दादी मर गई और उनकी भी बहुत सारी किताब उनके घर में है। उसको किताबों से बहुत लगाव है।

सवाल – नम्रता युद्ध क्या होता है और उसका क्या प्रभाव हो सकता है ? कैसे लोग प्रभावित हो सकते हैं ?

नम्रता – प्रभावित मतलब?

अभिषेक – असर।

जवाब – जैसे हम लोगों के यहाँ बहुत तेज़ आंधी आ जाए और हम खिड़की – दरवाज़े भी बंद नहीं कर पांएगे यानी कुछ नहीं कर पाएंगे। घर भी गिर जाते हैं,छत उड़ जाती हैं, पेड़ भी उखड जाते हैं इसी तरह अचानक से जब कोई देश दूसरे देश पर हमला कर दे तो इससे लोगों पर क्या असर होगा ?

नम्रता – युद्ध डर लाएगा।

सवाल – क्या सिर्फ डर लाएगा या लगेगा ?

श्रवण – मर भी जाएंगे।

दीदी – सही कहा श्रवण। तो नम्रता अब बताओ युद्ध का क्या प्रभाव होता है?

नम्रता – दुनिया नष्ट हो जाएगी। लोग मर जाते हैं।

सवाल – जो लोग मरते हैं क्या उनकी गलती रहती है ?

जवाब – नहीं।

सुरभि – सलमा अबू हेलो को जो पॉकेट मनी मिलती थी उससे किताब खरीदती थी। उसे पढ़ने से बहुत लगाव था। उनके मम्मी – पापा घर के कोने में एक लायब्रेरी का तोहफ़ा भाई-बहनों देते हैं। जब युद्ध होता है लकड़ी, गैस सिलिंडर मिलना बंद हो जाता है तो वे लोग बढ़े दाम की लकड़ियां नहीं खरीद पाने की स्थिति में बच्चों की कॉपी-किताब को जलाकर खाना बनाने की नौबत आती है पर सलमा नहीं चाहती थी कि उसकी कॉपी-किताब जले। युद्ध के दौरान भी वो पढ़ना चाहती थी।

दीदी – सुरभि ने बहुत अच्छे से बताया कि युद्ध से बच्चों की पढ़ाई भी बाधित होती है, इसके अलावा बच्चों के जीवन में और क्या बाधित होता होगा?

श्रवण -खेलना,खाना,सोना,स्कूल जाना, शांत नहीं रह पाते।

अभिषेक – घूमना, बदमाशी यानी मस्ती नहीं कर पाते।

सुरभि – खुलकर ज़िन्दगी नहीं जी पाते।

श्रवण – हाँ , जैसे हम लोग यहां घूमते हैं वैसे वो लोग वहाँ नहीं घूम पाते हैं।

दीदी – हाँ , वे केवल अपने को बचाने के लिए भाग रहे होते हैं। कोई कहेगा कि आज इस जगह अटैक होगा , कल वहाँ । हम लोग कल्पना नहीं कर सकते कि युद्ध में क्या स्थिति होती है। डरकर जीना जीवन हो जाता है।

दिव्या – हमेशा डर-डर के रहते हैं।

दीदी – जब कहीं युद्ध होता है तो कौन-कौन से भाव स्थायी हो जाते हैं? स्थायी भाव जैसे हमेशा डर कर रहना। इसके अलावा और कौन से भाव स्थायी होते हैं ?

श्रवण – मरने का डर हो जाता है।

दिव्या -खुश नहीं रह पाते हैं। चिंता बैठ जाती है ( चिंता घर कर जाती है)

सुजल -परेशान हो जाते हैं।

अभिषेक – दुखी हो जाते हैं। बच्चे बिछड़ जाते हैं।

अभिषेक – हाँ वो फिनलैंड वाली कहानी में होता है जिसमें युद्ध में दोनों भाई-बहन घर से दूर पहुँच जाते हैं,बिछड़ जाते हैं।

दीदी – बिलकुल सही समय में सही कहानी की याद की। कहानियों का यही असर होता है कि हम उन्हें भूल नहीं पाते हैं कि कैसे फिनलैंड में युद्ध के दौरान घर से बिछड़कर एक भाई – बहन दूर देश में पहुँच जाते हैं। फिनलैंड की जिस कहानी का सन्दर्भ यहां आया है उसे मंगलेश डबराल ने बच्चों के लिए अनुवादित किया।

इसके अलावा और क्या समझ आया ? क्या तुम लोग कल्पना किए हो या कभी सोचे हो कि ऐसा कुछ होता है ?

अभिषेक -नहीं दीदी।

सुजल – ऐसी कल्पना कभी नहीं किये। ये पता चला कि जब दो देशों में लड़ाई होती है तो वहाँ के रहने वाले सबसे ज़्यादा प्रभावित होते हैं। उनकी आम ज़िंदगी छिन जाती है। जीने का तरीका बदल जाता है। हर एक चीज़ के लिए सफ़र करना पड़ता है , संघर्ष करना पड़ता है।

दिव्या – जिसकी गलती न भी हो उन्हें इसकी सज़ा भुगतनी पड़ती है यानी आम जन को।

दीदी – युद्ध के दौरान कोई नियम-क़ानून नहीं रहा जाता है। कोई दिनचर्या नहीं रह जाती है। लोग रोड पर आ जाते हैं,बेघर हो जाते हैं।

आप ज़रा सोच कर देखो कि जब हमारे देश में आज़ादी हुई और देश का विभाजन हुआ तब भी हिंसा में लाखों की संख्या में लोग मारे गए थे। इसके अलावा जिस दिन आज़ादी का परचम लहराया गया उस दौरान गांधी जी कलकत्ता में थे क्योंकि वहा भयानक दंगे चल रहे थे। लोग आपस में सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम पहचान के आधार पर ख़ून के प्यासे हो गए थे। गांधी जी ने आमरण अनशन किया हुआ था कि एक मुल्क के लोग कैसे एक-दूसरे के ख़ून के प्यासे हैं, उन्होंने प्रण किया था कि जब तक दंगे थमेंगे नहीं तब तक उपवास में रहूँगा।

दिव्या – हिन्दू – मुस्लिम का बंटवारा गांधी जी किये ?

दीदी – ये गांधी जी ने नहीं किया बल्कि अंग्रेज़ों ने बड़ी चालाकी से किया। जब भी हम किसी एक धर्म की पैरवी करेंगे तो दूसरा धर्म प्रभावित होगा और साम्प्रदायिकता से नुकसान होगा। सभी धर्म अपने धर्म को जब श्रेष्ठ कहेंगे और चाहेंगे कि हम यहां ज़्यादा की संख्या में हैं ,बहुसंख्यक हैं तो हमें ज़्यादा अधिकार मिलें। जो हम बोले वही सब करें तब ऐसी स्थिति में शान्ति-सद्भाव दूर की कौड़ी हो जाती है।

जब हम दूसरों के हक़ छीनते हैं तब युद्ध होता है। कायदे से तो पूरी दुनिया में यह होना चाहिए कि सबको सबका हक़ मिले लेकिन जब आपको दूसरों के हिस्से का अधिकार भी चाहिए तो युद्ध होगा। इज़रायल यही कर रहा है कि गज़ा के लोगों को, उनकी धरती को अपने में शामिल करना चाह रहा है जहां वे बरसों से रह रहे हैं।

एक ग्यारह साल की बची ने मार्च २०२४ में लिखा –

मुझे याद है कि हमारे बड़े हमेशा कहते थे –

किसी को भूखे पेट नहीं सोना पड़ता।

कि अपने वतन में कोई भूख से नहीं मरता।

लेकिन हम रोज़ भूखे पेट सोने जा रहे हैं।

अगर हम बम से बचे तो हम भूख से मर जाएंगे। ( साभार साइकिल से )

नोट – इस पोस्ट के सन्दर्भ उस समय के हैं जब कुछ दिनों पहले तक ग़ज़ा युद्ध की विभीषिका झेल रहा था। यही हाल में सप्ताह भर पहले ही इज़रायल और फलीस्तीन के बीच युद्ध – विराम हुआ है जो राहत की खबर है, यह शान्ति हमेशा बरकरार रहे – आमीन ! हालांकि छिटपुट खबरें जब युद्ध विराम के बाद भी मिल ही रही हैं।

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