तुमने देखा न ?

दुनिया के हर कोने में कहानियों का ज़खीरा मिल जाता है उनमें से कुछ कहानियां अचंभित करती हैं तो कुछ जानी-पहचानी सी लगती हैं। इनकी दुनिया में आवाजाही हमें खुशी से भरती हैं तो कभी दुःख से नम करती हैं। हंसी के ठहाकों के बीच अचानक से स्तब्ध भी कर जाती हैं। कभी-कभी लगता है सभ्यता के लम्बे अरसे में मनुष्य जाने कितनी कहानियां लिख चुका है,सुना चुका है और सुन भी चुका है पर समय के साथ निरंतर नए किस्से-कहानियां दर्ज़ होती चली जा रही हैं और उनके सुनाने-कहने के जुदा अंदाज़ से हम अनंतकाल तक इस सिलसिले से भरे-पूरे रहेंगे।

आज बच्चों के साथ एक मिस्री कहानी पढ़ी और आज का दिन बन गया। अला अल असवानी की कहानी का अनुवाद किया यादवेंद्र ने। इस पोस्ट को लिखते एक पाठक का सुझाव याद आ रहा है कि बच्चों की प्रतिक्रियाओं के साथ आप कहानी का सार लिखा कीजिये तो आज पहले कहानी का सार लिख रही हूँ।
‘तुमने देखा न ?’ कहानी पहली कक्षा में पढ़ने वाले इज़्ज़त अमीन इस्कन्दर की है जिसकी एक टांग नकली है। इज़्ज़त की कहानी उसके दोस्त ने बयां की है उसके दिन भर के रोचक ब्योरों के साथ उसका एक दिन एक पैर से साइकिल चलाने का किस्सा है जिसमें इज़्ज़त साइकिल चलाने के लिए दोस्त से आग्रह करता है और उसे चलाकर दिखाने का साहस दिखाता है वो चलाते हुए साइकिल से गिरता है तो आख़िरी वाक्य कहता है – तुमने मुझे साइकिल चलाते हुए देखा न ? इसे पढ़ते हुए आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि किस तरह से एक शारीरिक अक्षम बच्चे के बारे में कहानी में बातें होंगी और वो कौन सी मनोदशा होगी जिसमें उसने एक बार साइकिल चलाने का साहस किया और उसे कर दिखाया। पढ़ने के बाद ढेर सी बातें उमड़ – घुमड़ने लगी पर अपनी उमड़न-घुमड़न को फिलहाल विराम देती हूँ और बच्चों की प्रतिक्रियाएं दर्ज़ कर रही हूँ।
अभिषेक – इज़्ज़त बहुत मेहनत से साइकिल चलाया। अपनी क्लास में एक ही ऐसा लड़का था जिसका पढ़ाई में बहुत इंटरेस्ट (रूचि) था। टिफिन की घंटी में बाकी बच्चों के जैसे मैदान में नहीं जाता था। टिफिन को वो कॉमिक्स पढ़ते -पढ़ते खाता था।
नम्रता – उसको दुःख नहीं होता था कि उसका एक पैर नहीं है। उसे पढ़ने में इतनी रुचि थी कि लंच के समय में भी खाते-खाते पढ़ता था। एक पैर नहीं होने के बावजूद वो साइकिल चलाने की कोशिश करता है और पहली कोशिश में चला भी लेता है।
सुरभि – मुझे ये समझ आया कि पैर नहीं होने के बावजूद वो स्कूल आता है और टीचर के बताए जाने पर ध्यान देता था। ब्रेक टाइम में सब बच्चे कॉपी-किताब फ़ेंक कर खुश हो जाते थे कि उन्हें खेलने को मिलेगा पर वो ऐसा नहीं था। उसे लगता था कि ब्रेक टाइम उसके लिए वरदान है कि अपनी मर्ज़ी का पढ़ा सकते हैं। वो टिफ़िन करते हुए कॉमिक्स पढ़ता है। कहानी से ये समझ आया कि वो साइकिल चलाकर कोशिश किया और हार नहीं माना। जिस लडके की साइकिल रहती है वो भी मदद करता है कि अपनी साइकिल चलाने के लिए देता है।
यहां एक शब्द ‘वरदान ‘ के बारे में बताना चाहूंगी। सुजल को छोड़कर बाकी बच्चे वरदान शब्द के अर्थ नहीं समझे। जब सुजल को कहा कि वो इस शब्द का मायने समझाए तो उसने सोचकर प्रचलित वाक् – प्रयोग इस्तेमाल किया – जैसे भगवान से उसने कोई चीज़ माँगी तो भगवान उसे उस चीज़ का वरदान दे दिया ‘ इस वाक्य – प्रयोग को सुनकर लगा कि हमारे मानस में भगवान् की छवि किस कदर पैठी है कि हम वरदान शब्द के मायने के लिए कुछ अजूबा, चमत्कार के लिए ईश्वर को ही याद करते हैं जबकि विज्ञान के चमत्कार हमारे जीवन की दिशा ही बदल दिए हैं। वैज्ञानिक सोच और तर्कशीलता के अभाव की वजह से सामान्य जीवन में कोई और उदाहरण का उपयोग आज के समय में भी दुर्लभ है। इसे दर्ज़ करते हुए यह ख़्याल आ रहा है कि अब इस शब्द ‘वरदान ‘ के लिए एक – एक करके अपने आसपास के वैज्ञानिक खोज और उनके उपयोग के बारे में बातचीत की जाएगी। तो चलिए बढ़ते हैं कहानी पर अगली टिप्पणी की तरफ।
सुजल – इज़्ज़त नकली टांग के साथ स्कूल आता था और टिफिन टाइम उसके लिए वरदान साबित होता था क्योंकि सब तो खेलने चले जाते थे और वो क्लास में अकेले रह जाता था तो उस समय कॉमिक्स निकाल कर पढ़ते हुए खाना खाता था उसे अकेला महसूस नहीं होता था। जब वो साइकिल चलाते हुए गिर जाता है और चोट लगती है तो उसे इस बात का दुःख नहीं होता है बल्कि उसे इस बात की खुशी होती है कि उसके नए बनें दोस्त ने उसे सिर्फ साइकिल चलाने ही नहीं दिया बल्कि सायकिल में बैठने में हेल्प भी किया। इज़्ज़त का अकेले कोशिश करके साइकिल चलाने से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी भी बात में हार नहीं माननी चाहिए, कोशिश करते रहना चाहिए।

कहानी सुनते हुए बात भी होती है और लगातार बच्चों से यह पूछती रहती हूँ कि समझ आया या नहीं। इस कहानी को सुनकर सबसे पहले श्रवण को पूछा तो उसने कहा दीदी समझ नहीं आया जबकि हामी सभी भर रहे थे। जब सभी बच्चों ने अपनी बात कह दी थी तो फिर से श्रवण से पूछा तो वो चुप रहा। कई बार ऐसा होता है कि कोई बच्चे का ध्यान सुनाने में नहीं रहा तो आखिर में बोलने से हिचकता है पर इसके विपरीत भी स्थिति बनती है जब एक साथ ३-४ बच्चों की आवाज़ आने लगती है कि दीदी पहले हम बोलेंगे, पहले हम। बहरहाल श्रवण को कहे कि यदि समझ नहीं आई होगी तो कहानी एक बार फिर से पढ़ेंगे, यह सुनकर चेहरे में वो भाव आया कि अरे ! पहली बार ही अच्छे से सुन लेनी थी। बच्चों के मन में चलने वाली हलचल और आँखों में झलकने वाली शरारत बहुत कुछ बयां करती है और उनके भावों को समझने की कोशिश में कभी कामयाबी तो कभी नाकामी भी हासिल होती है। फिलहाल श्रवण से अब एक-एक सवाल करना शुरू किए कि उसे कहानी के बारे में बोलने में जो दिक्कत पेश आ रही हो या कहने का मन न हो तो उसमें उसे हेल्प कर पाएं तो उससे सवाल किया –
सवाल – कहानी किसके बारे में थी ?
जवाब – वो जो लड़का था न उसी के बारे में।
सवाल – कौन से लडके के बारे में ?
जवाब – इज़्ज़त के बारे में .
सवाल – इज़्ज़त कैसा लड़का था ?
जवाब – उसका एक पैर नहीं था।
सवाल – फिर ?
जवाब – श्रवण ने कहना शुरू किया कि एक दिन एक लड़का सायकिल का रेस लगा रहा था और उसी दिन वो उसका (इज़्ज़त का) दोस्त बना तो उसने (इज़्ज़त ने) सायकिल माँगी। उसका पैर नहीं था तब भी वो हार नहीं माना। बात आगे जारी रखते हुए श्रवण ने कहा कि जैसे टिफिन होता था तो सब लोग कॉपी-किताब फ़ेंक कर भाग जाते थे पर वो अपनी कॉपी वगैरह अच्छा से रखता था उसके बाद टिफिन निकाल कर कॉमिक की किताब निकाल अपने बेंच में पढ़ते हुए खाता था। श्रवण ने एक नै बात पर भी सबका ध्यान दिलाया- जैसे हम लोग सीढ़ी में चढ़ते हैं वो (इज़्ज़त )सीढ़ी में नहीं चढ़ पाता था।

सवाल – अब सवाल किया कि कुदरत ने हमें सब कुछ दिया है तो क्या हम उसे सही तरीके से इस्तेमाल कर रहे हैं ?
जवाब – नहीं
सवाल – किस चीज़ का इस्तेमाल हम लोग नहीं कर रहे हैं ?
श्रवण ने कहा – हाथ का इस्तेमाल नहीं कर रहे।
सवाल – हाथ का क्या इस्तेमाल नहीं कर रहे तो मिला मौन।
उसके बाद आपस में बातचीत शुरू हुई कि हम लोग मुंह का इस्तेमाल नहीं कर रहे पर फिर खुद से जवाब आया कि मुंह का तो करते हैं इसी तरह पैर पर बात आई तो सोचकर बोले पैर का भी उपयोग कर रहे हैं। इसके बाद नम्रता ने धीरे से कहा कि
दिमाग का इस्तेमाल पूरी तरह से नहीं कर रहे। इस तरह की बातचीत में अक्सर रोचक बात आती है जैसे अभिषेक ने कहा कि दीदी नाखून का सही इस्तेमाल नहीं कर रहे तो पूछा कैसे ? तो उसने जवाब दिया कि उसे हम सही समय से काटते नहीं। इस तरह से विचार की उड़ान में कुछ नया हासिल होता है कभी सटीक बात आती है तो कभी उससे जुडी ऐसी बात भी सामने आ जाती है जो प्रत्यक्ष सन्दर्भ से कटी हो पर सवाल से जुड़ती है।
सवाल फिर दोहराया कि हम लोगों को प्रकृति ने सब कुछ दिया है तो क्या हम लोग उसका शत-प्रतिशत सही इस्तेमाल करते हैं?
सभी ने कहा – नहीं।
सवाल – कैसे नहीं करते ?
श्रवण – जैसे हाथ से हम लोगों को खाना खाना है पर हम लोग उससे मारते हैं। पैर चलने के लिए पर उससे हम लात मारते हैं और मुंह बोलने के लिए है पर हम लोग उससे गाली देते हैं, आँख देखने के लिए मिली है पर हम लोग बुरी नज़र से देखते हैं।
बातचीत करते हुए ही बात से बात निकलती है और बच्चों की समझ का अंदाज़ लगता है। इस कहानी के माध्यम से बच्चों को यह बताना ज़रूरी था कि हमारे आसपास यदि किसी बच्चे का या किसी व्यक्ति के शरीर का कोई अंग नहीं है वो शारीरिक रूप से अक्षम है तो उसे हम चिढ़ाते हैं लंगड़ा,लूला,अंधा,बहरा,काना कहकर। साथ ही किसी को कलुवा,काली,मोटी या मोटा भी नहीं कहना चाहिए। इस बात पर श्रवण तुरंत ही अपने नाना को याद किया कि दीदी ,मम्मी के पापा को सब बहरा, बहरा कहते हैं। उन्हें सुनाई दे या न दे पर सब उन्हें बहरा ही कहकर बुलाते हैं। जब पूछे कि ऐसा सुनकर कैसा लगता है तो स्वाभाविक जवाब आया कि अच्छा नहीं लगता। इसी बात पर एक और शख़्स को श्रवण ने याद किया कि उसके दादा के एक दोस्त हैं जिनका एक ही पैर पूरा है और दूसरा घुटने तक ही है जिसमें नकली पैर लगा है। उनको जब साइकिल चलाने का मन होता है तो वो एक ही पैर से पैडल मारकर चलाते हैं। एक दिन साइकिल चलाते उनके नकली पैर से घुटने में चोट लग गई थी नकली पेअर से घुटना छिल गया था। यह किस्सा सुनकर लगा कि दुनिया बहुत बड़ी है पर कैसे एक ही तरह की घटनाएं आसपास भी वैसी घटती हैं जो हम कहानी में पढ़ते हैं। कहाँ मिस्र की कहानी बच्चों के लिए लिखी गई कि वे एक पैर वाले छोटे बच्चे के दर्द के प्रति संवेदनशील हों, मुझे लगा बच्चे इस तरह के नए सच से रूबरू होंगे पर कहानी सुनाने के बाद बच्चों से एक ऐसे शख़्स के बारे में पता चला जो हमारे पास ही मौजूद है। बच्चों को कहा कि कितने दूर देश की कहानी है पर तुम बच्चों से यहां की बिलकुल कहानी जैसे ही कहानी सुनने मिली। जब बच्चों से पूछे कि श्रवण के दादा के दोस्त को कोई लंगड़ा-लूला कहता है तो अभिषेक ने तपाक से कहा – नहीं ! हम लोग उनको दादा कहते हैं।
अब बारी आई कि जिन अंगों का जो इस्तेमाल होता है उससे इतर यानी ग़लत इस्तेमाल कौन-कैसे करता है ?
अभिषेक ने माना कि वो अपने हाथ का गलत इस्तेमाल करता है छोटी बहन आयुषी को मारता है पर यह भी जोड़ा कि वो भी मुझे मारती है।
नम्रता बहुत देर से शांत थी तो उसने पूछा कि मैं कुछ कहूँ और फिर कहना शुरू की कि हाथ का ग़लत इस्तेमाल कई लोग बुरा टच करने में करते हैं।
जब सबसे पूछे कि तुम लोगों को कोई बुरा टच महसूस हुआ है तो सबकी ‘न’ सुनकर बड़ी राहत महसूस हुई पर श्रवण को याद आया कि उन्हें मैंने कभी बातों में अपने बचपन में बुरे टच की बात बताई थी वो इसलिए कि ऐसे अनुभव से गुज़रने पर बच्चे बड़ों को बताएं न कि चुप रह जाएं। आखिर में श्रवण ने यह वाक्य कहा-
जैसे कि हम लोगों को शरीर अच्छे से इस्तेमाल करने के लिए मिला है पर सब बुरे तरीके से इस्तेमाल करते हैं। यह सुनकर तसल्ली हुई कि बच्चे भी बचपने में कुछ बचपना करते हैं पर बातचीत में वे समझदार बनने,संवेदनशील प्रतिक्रिया देने की कोशिश करते हैं यह लिखने के मायने यह नहीं कि वे समझदार नहीं और संवेदनशील नहीं। उम्मीद करती हूँ कि इस बातचीत के बहाने बचपन की सीख कभी उनकी जीवनशैली में शामिल हो जाएगी और वे इस रौशनी को दूर तक फैलाएंगे।