पहली रेल यात्रा का संस्मरण

अनगिनत अनुभव संसार में से कुछ अनुभव ख़ास होते हैं जिनके बारे में हम जीवन भर बात कर सकते हैं। उनकी स्मृतियों में हम जब चाहें तब आवाजाही कर सकते हैं। वे हमारे साथ ऐसे चलते हैं जैसे कल ही की तो बात हो। सच में ये अनुभव हमें बनाने और आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। पहला कदम चलना, दौड़ना, बोलना, गाना, पढ़ना, स्कूल जाना, चित्र बनाना , रंग पहचानना जहां परिवार की स्मृति का रौशन हिस्सा होता है वहीं साइकिल चलाना, पेड़ में चढ़ना, चुपके से-चोरी से फल तोड़ना, किसी खेल में अव्वल आना, स्कूल में शाबाशी पाना और मार खाने की पहली स्मृति बच्चों का खज़ाना होता है। इस अनुभव संसार की यह छोटी लिस्ट है जिसमें हम बहुत कुछ जोड़ सकते हैं। यह लिखते हुए अपने अनुभवों के बारे में सोच रही हूँ तो पहली बार वाली कुछ बातें ही अब तक साथ चली हैं नहीं तो पहली बार कुछ करने की स्मृति को याद करना मुश्किल है। वैसे भी घर में जब उन स्मृतियों को हम दोहराते रहते हैं तो वो घर के किस्सों का हिस्सा बन जाता है और आगे-पीछे की जनरेशन उस ख़ास स्मृति से परिचित हो जाती है। इसमें सबसे ज़्यादा मज़ा लिया जाता है माता-पिता या टीचर से पड़ने वाली मार के किस्से में या शर्मिंदा कर देने वाली स्मृतियों के किस्सों में, ये सहज प्रचलन में देखने मिलता है जिसे समय के साथ हँसकर हम सुन लेते हैं पर बाल-मन में इसका असर कैसे पड़ता होगा यह बताने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि वो अक्सर बच्चे के आत्मा-विश्वास में स्थायी दरार बनाती है। बहरहाल अनुभव की दुनिया में एक ऐसे अनुभव को दर्ज़ करने जा रही हूँ जो मुझे भी रोमांचित किया।
नम्रता जो लिटिल इप्टा की साथी है जब 11 वर्ष की हुई तब पहली बार ट्रेन में चढ़ी। इससे पहले जब-जब कहानी,कविता या फिल्म में ट्रेन का ज़िक्र आता तो उससे वादा करते कि एक बार हम सब लोग ट्रेन से घाटशिला चलेंगे पर कई बार कई इच्छाएं पूरी नहीं कर पाते। ये कोशिश पूरी होती इससे पहले ही नम्रता को ओडिशा जाने का अवसर मिला। उसकी ट्रेन यात्रा के बारे में जानकर हम सभी बहुत खुश हुए और उसके लौटने का इंतज़ार किए। वो लगभग 6-7 दिन के लिए कालाहांडी ज़िला में सियारपाड़ा गाँव परिवार की शादी में गई। जब लौटी तो हमने एक दिन उसके और श्रवण से ट्रेन यात्रा के अनुभव सुनें। मार्च के अंतिम सप्ताह में ट्रेन से नम्रता गाँव गई उसके द्वारा सुने हुए अनुभव को यहाँ दर्ज़ कर रही हूँ –
नम्रता पहली बार स्टेशन के अंदर घुसने के बाद लगभग 4-6 घंटे प्लेटफ़ॉर्म में गुज़ारी। वहाँ कई लोग सोते दिखाई दिए तो उसे लगा कि पैसा नहीं होने की वजह से वे स्टेशन में ही छूट गए हैं। स्टेशन में पटरी,खड़ी ट्रेन देख खुश हुई पर जब मालगाड़ी स्टेशन में आई तो आवाज़ से डर गई थी। उसकी माँ लक्ष्मी ने बताया कि डिब्बे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। उसने बताया कि सर्र-सर्र करके ट्रेन सामने से निकल गई। नम्रता, श्रवण और उनकी माँ लक्ष्मी अपने रिश्तेदारों के साथ शादी में जा रहे थे उन लोगों की पहली ट्रेन छूट गई थी तो वे लोग चाचा लोगों से अलग हो गए थे। बचे लोगों की अलग डिब्बे में टिकट की थी , हम लोग जिस डिब्बे में थे वहाँ पानी, पंखा और खाना-पीना तो हुआ पर बाथरूम नहीं था। बहुत गन्दी बदबू आ रही थी। जब ट्रेन चली तो शुद्ध हवा मिली। सारे लोग सो रहे थे पर नम्रता को पूरी यात्रा में नींद नहीं आई। ट्रेन में उसने क्या-क्या देखा यह याद करके धीरे-धीरे उसने बताया कि उसने 40 बगुलों को उड़ते देखा। उससे जब पूछा कि तुमने गिना कैसे तो उसने बड़े विश्वास से कहा कि दीदी 40 बगुले ही थे ये होता है बचपन जिसमें कल्पना के साथ मन उड़ान भर रहा होता है। उसने बताया कि एक तालाब या नदी में डॉल्फिन चिड़िया देखी। तालाब देखा, खेत में एक लड़की और किसान देखा साथ ही बड़े पहाड़ के किनारे लगा पलाश देखा। हर वर्ष कोशिश रहती है कि हम सब पलाश डिमना के आसपास या किसी गाँव में बच्चों के साथ देख लें।
नम्रता ने आगे बताया कि कमल भरा तालाब और ब्रिज के अलावा काली चिड़िया तो देखी ही और खेत में बिजूका भी देखा। इससे पहले नम्रता ने बिजूका के बारे में किताबों में ही पढ़ा था। ‘बिजूका’ यह शब्द पढ़ते और उसका चित्र देखते हुए हमेशा कुछ बच्चे अपने गाँव को याद कर लेते हैं जो सिर्फ एक या दो बार ही गाँव गए हुए हैं और खेत में बिजूका देखे हैं। उन्हीं स्मृतियों में धान, खेत, मेंड़ और तालाब बसा हुआ है। जब ज़िक्र चलता है तो वे सहेजी हुई इन यादों को उत्साह से बताते हैं। ट्रेन की उनकी यादों को सुनना अच्छा लगता है। ट्रेन में चढ़े थे तो वे क्या खाए थे यह भी वे याद करते हैं जैसे नम्रता ने बताया कि भीगे चना में जो मसाला डालकर बनाता है वो और समोसा भी खाया।
नम्रता ने अचानक से याद करते बताया कि पता है दीदी! पहले पहाड़ हमारी ट्रेन से बहुत दूर था पर फिर एकदम नजदीक आ गया। जब ब्रिज से ट्रेन गुज़र रही थी तो पानी गहरा भरा था और उसमें मुझे एक मछली दिखाई दी। यह सब बताते अचानक से उसे याद आया कि कैसे उसे ट्रेन में चढ़ते हुए बहुत डर लगा था। खिड़की के पास बैठकर चलती ट्रेन में उसे बहुत अच्छा लगा ज़रा भी बोर नहीं हुई। यह लिखते और उसे सुनते हुए महसूस हुआ कि पहले अनुभव की बात ही कुछ और होती है। रोज़ कमाने-खाने वाले वर्ग में जीवन का बड़ा हिस्सा दैनिक मजदूरी में ही गुजरा जाता है उनके हिस्से नई बातों, जगहों, चीज़ों का प्रवेश नहीं ही होता है। जिन बातों को हम सोच नहीं पाते कि ज़रूरी अनुभव से समाज का कितना बड़ा वर्ग विशेषकर बच्चे वंचित हैं। जीवन जीने की सीमित सामर्थ्य की तरह ही उनकी कल्पना भी सीमा से बाहर नहीं उड़ पाती। बच्चों का भी वर्ग बना हुआ है जहाँ कुछ विशेषाधिकार और कुछ बुनियादी अधिकारों से वंचित वर्ग है। यहाँ यह रेखांकित करने की आवश्यता है कि बस अब टी वी और मोबाइल के माध्यम से वो खिड़की भी खुली कि कुछ नई बातों तक पहुँच बनीं है पर इस पहुँच में कितनी सकारात्मकता जुड़ी है ये अपने आप में बड़ा सवाल है क्योंकि पेट की आग बुझाने में आज भी वे उलझे हुए हैं।

बहरहाल लौटते हैं रेल यात्रा के उस अनुभव की तरफ जो कि श्रवण ने साझा किया। श्रवण जब छोटा था तो अपने दादा-दादी के साथ एक बार रेल यात्रा कर चुका था । ट्रेन का ज़िक्र चलाने पर हर बार वो चहक कर उसे याद करता था। इस बार की स्मृति में उसने खेत में दो गाय और एक बड़ी लकड़ी देखी जो गाय की गर्दन में बंधी हुई थी उसने पूछा कि वो क्या था असल में उसने कभी भी हल चलाता हुआ किसान नहीं देखा था तो बात करने और अनुभव सुनने का यह हासिल हुआ। जब पुल से ट्रेन गुज़री होगी और नीचे नदी देखी होगी तो उसके लिए बड़ा आश्चर्य का सबब हुआ उसने कहा कि पता है नीचे नदी बह रही थी और उसके ऊपर हम लोग थे, यह भी बताया कि एक नदी में पानी भी नहीं था।
2 अप्रैल, 2025 को हम लोगों ने नम्रता और श्रवण के ट्रेन के किस्से सुनें उस दिन हमारा युवा साथी रमन भी पहुंचा हुआ था , श्रवण और नम्रता के संस्मरण सुनने के बाद सभी से पूछा कि पहली यात्रा जो अभी तक याद है, कब-कब की थी , उससे क्या याद जुड़ी है उसे सबसे साझा करो। एस. व्ही. रमन ने जो बताया वो तो गजब अनुभव रहा। उसने बताया कि जब 12 वां जन्मदिन आया तो पापा उसे सुबह स्टील एक्सप्रेस से कलकत्ता लेकर गए और उसके बाद सीधे एयरपोर्ट ले गए। जहाँ कलकत्ता से हैदराबाद के फ्लाइट में पहली बार बैठा। यह उसके लिए सरप्राइज़ था । उस उम्र में सरप्राइज़ था जब इस तरह के उपहार की कल्पना भी बच्चे नहीं करते। उसे पापा ने कुछ भी नहीं बताया बस यह कहा था कि हम लोगों को चलना है। जब सुबह 11 बजे चेक इन कर रहे थे तो उसने बगल वाली पंक्ति में विराट कोहली को देखा और रॉयल चैलेंजर्स की पूरी टीम थी। विराट कोहली चश्मे और दाढ़ी मे था और बहुत युवा था। रमन को उसके पापा ने ऑटोग्राफ के लिए कहा पर अपने शर्मीलेपन की वजह से वो लिया नहीं।

इस अनुभव को सुनने के बाद सुरभि ने बताया कि ट्रेन में बेर वाली की उसे याद है। वर्षा की याद में मौसी की शादी की ट्रेन यात्रा दर्ज़ है। तब वो दूसरी या तीसरी में पढ़ती थी। उसने बताया कि एक ट्रांस वुमन हमारे डिब्बे में आई थी उन्हें पैसा नहीं दिया फिर भी हमारे सिर में थपकी देकर आशीर्वाद दिया। उस समय के फोटो भी उसके पास है जब वे लोग थ्री सीटींग वाली चेयरकार ट्रेन से गाँव गए थे। सुजल जब पहली या दूसरी में था तब शादी में गाँव गया था। उसे ट्रेन में कटलेट खाना याद है। लौटते समय ट्रेन में काजू बिस्किट खाया। लौटते में बड़ी माँ जब स्टेशन छोड़ने आई थीं तो कुहासा था। गाँव के पोखर में अंब्रेला हुक औरउसके तार से बनीं फिशिंग रॉड देखी। तालाब में नहाने में उसे बहुत डर लगा था। उसने उस दौरान शादी में किसी के मोबाइल में टॉकिंग टॉम खूब खेला था।
अब आती है हमारे नन्हे-चुलबुले साथी अभिषेक की जो पढ़ता तो तीसरी में है पर अक्सर ऐसी-ऐसी बातों को याद करता है कि सहज आश्चर्य से भर जाते हैं। बड़े विश्वास और खुशी से उसने कहा कि वो बहुत बार ट्रेन में बैठा है। उसे ट्रेन से ब्रिज देखा अच्छा लगता है। जब ट्रेन में चढ़ते हैं और ट्रेन चलती है तो सूरज भी साथ-साथ चल रहा था। ओडिशा में गाँव है जब भी ट्रेन में जाते हैं तो स्लाइस पीते हैं, समोसा-चटनी खाते हैं। हमारे गाँव में चापाकल है, तालाब है। मेचेदा (दादी) के साथ जाते हैं और जिल्पा/झिलपी यानि जलेबी ज़रूर खाते हैं।
बच्चों की यादों के सन्दूक में कितनी ऐसी बातें रहती हैं जिनके बारे में सुनने का एक अलग ही एहसास होता है। मुश्किल ज़िंदगी में कहीं न कहीं बढ़ती उम्र के साथ बचपन की यादें धुंधला न जाएं इसलिए अपने आसपास के बच्चों से बातें करना, किस्से सुनना ज़रूरी है इसमें आगे बच्चों के और अनुभव लिखने, दर्ज़ करने की कोशिश जारी रहेगी।
सहज अनुभूति की कहानियां