याद ए पुरखे

पाश की याद वाया भगत सिंह

(यह पोस्ट लगता है भगत सिंह के जन्मदिन की प्रतीक्षा में मुझे रोक कर रखी थी। कई बार इसे खोला पर हर बार यह पोस्ट होने तक का सफर तय नहीं कर पाई। बहरहाल आज भगत सिंह का जन्मदिन भी है और हम बच्चों के साथ भगत सिंह को जानने – समझने की कोशिश भी कर रहे हैं।बच्चों के साथ भगत सिंह की बातें आगे की पोस्ट में आएंगी, यहां यह जोड़ देना भी ज़रूरी है कि शहादत के दिन तो दोनों को याद करते ही हैं तो आज भगत सिंह के जन्मदिन पर भी पाश को याद किया जाए।पहले पाश को याद कर रही हूं वाया लिटिल इप्टा भले ही महज संयोग है कि यह पोस्ट पहले लग जानी थी पर पोस्ट अपने सफ़र पर आज ही निकल पाई।)

आज यानी ९ सितम्बर को हम सबके प्रिय कवि पाश का जन्मदिन है। उनकी यादों को समेटने के लिए दिन भर का एक बहुत छोटा हिस्सा ही हिस्से आया तो लगा कि बस नाम याद करते ही यूं ही नहीं गुज़रा दिन। कह सकते हैं कि दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है ‘ बहरहाल जो हिस्सा हासिल हुआ उसको दर्ज़ कर दूँ।

शाम जब बच्चे आए तो वे एक अलग तरह की खुशी से भरे थे, समय से आ गए थे और उनमें से कुछ ने लिबास भी बढ़िया वाला पहना था क्योंकि आज नन्ही दोस्त काव्या का जन्मदिन मनाया जाना था। बच्चों को आते साथ ही बताया कि आज अवतार सिंह संधू ‘पाश’ का भी जन्मदिन है।

बच्चों से पूछा जानते हो पाश को तो कहे – ‘हम लड़ेंगे साथी’ वाले न दीदी ?

आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि छोटे बच्चे इतना याद रखे और कहे तो दिल किस तरह से बाग-बाग हो सकता है। उन्हें कहा कि आज हम पाश और काव्या का जन्मदिन मनाएंगे तो तपाक से बच्चों ने पूछा कि कुछ दिखाएँगे क्या ( जैसे कि कोशिश रहती है कि ख़ास दिन के लिए कोई छोटा वीडियो दिखा पाऊं ) तो उन्हें कहा नहीं आज तो बस उनके बारे में थोड़ी बात। साहिल ने मेरी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि पहले पाश का जन्मदिन मनाएंगे और फिर कल्याणी (काव्या ) का।

यह सब लिखते हुए कहीं न कहें उन बच्चों का बचपन और उनके सफर को दर्ज़ करने की छोटी सी कोशिश है। इनमें से कुछ नई ऊंचाइयों को छूएंगे, कुछ अपनी ज़िन्दगी को जीने का अर्थ देंगे और कुछ अपने सफर को रोचक-रोमांचक बनाने की कोशिश करेंगे।

जब बताया कि अवतार सिंह ‘संधु’ का उपनाम पाश है तो पूछे उपनाम माने ?

उनसे पूछे कि महात्मा गांधी को क्या कहते हैं?

जवाब आया ‘बापू ‘ इस तरह उपनाम समझते हुए कहे कि हम उन्हें सिर्फ पाश कहेंगे। आज यह लिखते हुए एक सवाल आ रहा है कि ‘पाश’ यह उपनाम कैसे पड़ा इसके बारे में जानने की कोशिश करूंगी। अब जब पोस्ट साझा करने का समय आया है तो मिथिलेश जी से पता चला कि ‘पाश ‘ उपनाम उन्होंने स्वयं ही रखा था क्योंकि उस दौर में पंजाब अशांत था तो अपने वामपंथी विचारों को दिखाने के लिए अपने नाम के साथ यह उपनाम जोड़ा ‘पाश ‘

पंजाब के तलवंडी में जन्मे पाश निर्भीक थे बच्चों से पूछा इसके यानि निर्भीक के मायने?

जवाब – किसी से डरते नहीं थे।

जब उन्हें पाश के जन्म की तारीख़ बताई और उसके बाद उन्हें बताया कि मात्र ३८ वर्ष की आयु में मार दिए गए तो अचानक ही बच्चे मेरे जन्म के बारे में जानने की उत्सुकता दिखाई और सवाल किया आपकी क्या उम्र हुई है तो उन्हें बताया ५ दशक पूरे कर लिए हैं मैंने। इसी बहाने दशक के मायने समझे। फिर बताया कि पाश की तुलना नामवर सिंह लोर्का से करते थे जो बड़े प्रसिद्द कवि थे इस वाक्य को पढ़कर शायद आप को लगेगा कि आखिर बच्चे नामवर सिंह और लोर्का को जानते नहीं तो इस जानकारी के क्या मायने पर इस तरह से नामों के बारे में बताने के पीछे यह उम्मीद छिपी होती है कि अगली बार कहीं इन नामों का ज़िक्र आए तो वे याद कर पाएं। बच्चों को पाश की एक कविता की पंक्तियाँ सुनाई –

मैं पूछता हूँ आसमान में उड़ते हुए सूरज से

कि वक़्त क्या इसी का नाम है

कि घटनाएं कुचलती हुई चली जाएं

मस्त हाथी की तरह

एक समूचे मनुष्य की चेतना को।

अब इस कविता में घटना शब्द के मायने पूछा तो अभिनव ने बताया कि जैसे कोई आया और ठोक के चला गया। कोई औरत आई उसे कुत्ता चाब दिया हो और वो बेहोश हो गई, दीदी जैसे कोई डाकू आया और ह्त्या कर दिया। एक सांस में ये सब बातें बच्चे ‘घटना’ के सन्दर्भ में बताए इससे बच्चों की समझ सामने आई। अब फिर कविता पढ़कर उन्हें बताया कि हर घटना का महत्त्व होता है पर समय की धार में घटनाएं मस्त हाथी की तरह सबको रौंदते चलती हैं और मनुष्य की चेतना को कुचल देती हैं।

अब पाश के बारे में बात करने की बारी आई तो उन्हें बताया कि पाश को भगत सिंह पसंद थे, पाब्लो नेरुदा ,ब्रेख्त बहुत पसंद थे साथ ही लेनिन भी पसंद थे।

इसी बीच दोस्तियों की बात आई क्योंकि भगत सिंह का ज़िक्र आया तो उन्हें बताया जब भी हम दोस्तियों का नाम लेते हैं तो मार्क्स और एंगेल्स की दोस्ती को सभी याद करते हैं। जैसे तुम सभी जानते हो कि हमारे इप्टा में उपेंद्र भैया और शैलेन्द्र जी की दोस्ती है वे हमेशा साथ रहते हैं। तुरंत बच्चों को सोलो भैया (संजय सोलोमन) के साथ उनके दोस्त बुबई और राहुल भैया की दोस्ती भी याद आई।

यहां यह ज़िक्र करना ज़रूरी है कि काव्या जिसका आज जन्मदिन है उसकी और गुंजन की दोस्ती भी गजब की है। हैं तो दोनों छोटे पर जब भी शाम को लायब्रेरी में आएंगे तो एक साथ ही बैठने की जुगत में रहेंगे। बस इसी तरह सन्दर्भों के साथ बातचीत में जानकारियों का आदान – प्रदान चलता रहता है।

पक्की दोस्त काव्या (बाएं ) , गृंजन (दाएं )

सामान्यतः किसी पोस्ट का शीर्षक सोचने में समय लगता है पर आज की पोस्ट का शीर्षक सहज ही आया क्योंकि बच्चे भगत सिंह को अच्छे से जानते हैं और शहादत दिवस के दिन ‘पाश ‘को भी हम लोग याद करते हैं तो बच्चों के लिए अवतार सिंह संधू ‘पाश ‘अजनबी नहीं थे और इस बार गरमी में लिटिल इप्टा की कार्यशाला में साथी क्षितिज ने पाश की प्रसिद्द रचना ‘हम लड़ेंगे साथी ‘ बच्चों को सिखाकर एक कदम आगे और बढ़ा दिया।

उन्हें बताये कि पाश गरीबों और शोषितों के लिए कवितायें लिखे।

तुरन्त सवाल आया ‘शोषित ‘ के मायने?

तो जवाब दिया जिनके साथ शोषण होता है वे शोषित कहलाते हैं।

सवाल आया– शोषण क्या होता है ?

जवाब – जब आपको कोई काम ज़बरदस्ती कराया जा रहा है, उसका मूल्य नहीं दिया जा रहा है।

फिर उनसे पूछा आपके स्कूल में शोषण कैसे हो सकता है तो जवाब आया कि स्कूल में बच्चों से झाड़ू – पोंछा कराया जाना, मारना- डांटना भी शोषण है दीदी।

गुंजन ने बड़ा मज़ेदार उदाहरण दिया कि टीचर्स द्वारा बच्चों के टिफिन से खाना भी शोषण है। जब पूछे कि टीचर्स माँगते हैं क्या तो सभी ने हाँ कहा और फिर आपस में ही बच्चे बतियाने लगे। उनमें से कुछ बच्चों की बातों से टीचर को सही बताने के लिए वे बच्चे बोल रहे थे (टीचर को जस्टिफाई करने) कि अरे ! वो टीचर ऐसे ही बोलती है ,टीचर मज़ाक करती है और जिस बच्चे ने मांगने वाली बात कही उस बात पर ही दूसरे बच्चे प्रतिक्रिया दिए कि तुमने ऐसा कैसे कहा कि टीचर मांगती है। उनकी बातों को सुनकर हमउम्र बच्चों के देखने के नज़रिए की पहचान हुई। टिफिन से टीचर द्वारा खाना मांगना किसी बच्चे की नज़र में सही है तो कुछ बच्चे अपनी टीचर से लगाव को गलत नहीं मानते। यानि एक छोटी-सी पठन सामग्री के बीच बहुत कुछ नया जानने – सीखने और बात करने का अवसर मिलता है। अब बात आगे बढ़ी और उन्हें बताया कि

भगत सिंह को जिस दिन फांसी हुई उसी दिन पाश की ह्त्या भी ५७ वर्ष बाद कर दी गई थी तो इसमें उन्होंने जोड़ा और मुझे सुधारा कि भगत सिंह के साथ राजगुरु,सुखदेव को भी फांसी में चढ़ा दिया था। साथ पढ़ने-पढ़ाने का हासिल यही होता है कि बच्चे मिलकर कई बार ऐसे जवाब देते हैं कि लाजवाब हो जाती हूँ।

अगला सवाल उनसे पूछा कि भगत सिंह को फांसी कब हुई ? जब तारीख़ बताई तो पूछा किस ईयर में ? ( शब्दों के इस तरह के इस्तेमाल के पीछे कुछ प्रचलित अंग्रेज़ी शब्दों से परिचय की मंशा रहती है )

‘ईयर माने’ क्या होता है दीदी तो उन्हें बताया वर्ष।

अब भगत सिंह की शहादत के वर्ष को पूछे तो बता नहीं पाए बस यह बताए कि २३ वर्ष में फांसी हुई थी वो भी सुजल ने यह बात बताई। उनसे कहा कि कल पता करके आना कि वो कौन सा ईयर था जब भगत सिंह को फांसी हुई थी।

बच्चों को भगत सिंह की शहादत का दिन याद है और यह भी याद है कि उस दिन पाश को भी हम लोगों ने याद किया था। इसी बीच अभिषेक ने पूछा एच माने क्या होता है ? जिस तरह से उच्चारण कर रहा था मुझे समझने में दिक्कत हुई तो उसने बताया कि स्कूल में कोई उससे उसकी एच पूछ रहा था और वो उनका जवाब नहीं दे पाया तब जाकर उसका सवाल स्पष्ट हुआ तो उसे बताए कि ऐज माने उम्र।

उन्हें बताए कि पाश की कविताओं से पंजाब डरता था यानि हुकूमत और बुरी ताकतें।

तो बड़ी सहजता से एक पहली पढ़ने वाले अभिनव ने कहा कि दीदी हम लोग तो कविताओं से नहीं डरते।

तब उन्हें बताया कि सफदर हाशमी की भी ह्त्या कर दी गई थी क्योंकि वे मजदूरों के,आमजन के हक़ की बात करते थे इसलिए उनकी ह्त्या कर दी गई। इसी में फिर से याद करते हुए दोहराए कि सफ़दर हाशमी और पाश की ह्त्या की गई।

निश्चित ही छोटे बच्चों में यह समझ आने में अभी समय लगेगा कि कविताओं की ताकत क्या होती है पर गाते-गाते , पढ़ते-पढ़ते वे इसे भी सीख जाएँगे,समझ जाएंगे।

पाश कहते हैं –

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, ज़िंदगी के टुकड़े।

पाश मेहनतकश जनता के लिए सहानुभूति रखते थे। उनसे वे बहुत प्यार करते थे। इसके लिए एक सरल कविता पढ़े –

तेल बगैर जलती फसलें

बैंक की फाइलों के जाल में कड़कड़ाते गाँव

और शान्ति के लिए फैली बाहें

हमारे युग का सबसे कमीना चुटकुला है।

बच्चों से पूछे कि तेल बगैर फसलें कैसे जल रही हैं तो अभिनव ने कहा कि सूखकर फसलें जल जा रही हैं। पानी नहीं मिलने से जल जाती हैं। आगे बताया कि किसान लोन लेने बैंक जाते हैं और पूरा गाँव उधार-लोन से परेशान रहता है। लोग कहते हैं कि हम शान्ति के लिए बाहें फैलाएं हैं पर यह तो गाँव के लिए चुटकुला है क्योंकि गाँव तो उधार में, लोन में डूबा हुआ है। उनका जीवन बहुत कठिन है।

पाश पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे भारत में कविता से पहचाने गए , पाश घूम – घूमकर कविता सुनाते थे इनके अलावा गिर्दा भी इन्हीं के जैसे प्रसिद्द थे। पाश की सबसे प्रसिद्द कविता है –

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
ना होना तड़प का
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

इन पंक्तियों को बच्चों को समझाते हुए लगा कि कई बार पढ़ने से वे इन पंक्तियों के अर्थ को अच्छे से समझ पाएंगे। उन्हें बताया कि किसी के जलते घर को चुपचाप देखना, किसी के घर में कुछ ग़लत हो रहा है, कोई लड़की को छेड़ रहे हैं और हम चुपचाप चले गए तो पाश उन लोगों के लिए कहते हैं कि सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शान्ति से भर जाना। गलत बात को सहन कर लेना और घर से निकलना, काम करना और बस लौट आना से भी ज़्यादा खतरनाक होता है सपनों का मर जाना। इसके बाद उनसे सपनों पर संवाद हुआ –

सवाल – अपने आसपास किसी को देखते हो जिसके सपने मर गए हों ? ऐसा कोई है जो सपना नहीं देखते हों ?

नम्रता – पास में एक अंकल हैं जो पागल से हैं और पास में ही बैठे रहते हैं वे सपने नहीं देखते।

अभिषेक – बागमती गली के पास रहने वाले आदमी के।

सवाल – तुम लोगों को कैसे पता चला कि पागल लोगों के सपने नहीं होते है ?

अभिनव – होते हैं दीदी

गुंजन – अपना घर है पर फिर भी वहां नहीं रहता।

सवाल – सपना क्या होता है ?

राहुल -कुछ करने का सपना। सपना वो होता है कि पढाई – लिखाई करके आगे बढ़ना जैसे कि इंजीनियर बनना। सपने से ये समझ आया।

सवाल – तुम क्या सपना देखते हो राहुल ?

राहुल – हम तो ये सपना देखते हैं कि बड़े होकर अच्छे से पढ़ाई – लिखाई करें और मम्मी-पापा को खिलाएं।

सवाल – कोई सपना देखे हो कि बड़े होकर क्या करना है ?

राहुल – पुलिस में जाना है।

साहिल – फौजी बनना है।

काव्या -टीचर।

गुंजन – हमको भी टीचर बनना है।

साहिल – हमको डॉक्टर बनना है।

अभिनव – ब्लैक कमांडो

श्रवण – गार्ड बनना है।

सवाल – कहाँ का गार्ड बनना है ?

श्रवण – स्कूल का या ऑफिस का।

अभिषेक – मुझे दो ठोक चीज़ बनाने का मन है – एक तो ब्लैक कमांडो और एक ठो पायलट और कुछ दिनों पहले कहा था इंजीनियर।

सुजल – इंजीनियर।

साहिल – दीदी , हमको पुलिस और फौजी बनना है।

काव्या – बी टी एस

बाकी बच्चे – हे भगवान ! वो नहीं बन सकती।

सवाल – क्यों नहीं बन सकती ?

नम्रता – वो तो पहले से ही हैं ना तो ये कैसे बनेगी ? अब अपने बारे में नम्रता ने कहा – मुझे टेस्ट करने वाला टेस्टर बनना है।

अनन्या – गेमर।

सुरभि – युट्यूबर।

गुंजन – पुलिस। जब गुंजन से पूछे कि तुम्हें तो शुरू से टीचर बनने का शौक है तो उसने जवाब दिया कि हम पुलिस ही बनेंगे क्योंकि मेरी मम्मी का सपना है कि हम पुलिस बनें।

सवाल – ये तो तुम्हारी मम्मी का सपना है पर तुम्हारा सपना क्या है ?

गुंजन – मेरा सपना टीचर पर हम पुलिस बनेंगे। बच्चों के कोमल मन पर अभिभावकों की बातों का असर इस तरह से होता है कि कई बार अपनी ख़्वाहिश जिसके लिए वे दिल से मेहनत कर सकते हैं उससे इतर घरवालों के सपने को पूरा करने की बदौलत अपने कीमती जीवन को दांव लगाते हैं जिसमें कभी कामयाब होते हैं तो कभी नाकाम।

अभिनव ने कहा – डॉक्टर।

अब फिर लौट आए पाश पर और बच्चों को बोले कि हम सिर्फ अपने लिए सपने नहीं देखते बल्कि दुनिया के लिए देखते हैं। हम अपने आसपास के लोगों की तकलीफ़ में अगर शामिल न हो पाएं तो वो अच्छा नहीं होता। इतनी गंभीर बात के लिए अभी बच्चों को लम्बी दूरी तय करना है क्योंकि इन बातों के बीच ही अचानक से श्रवण,साहिल, काव्या और अभिनव ने नींद में आए अपने सपने की कहानी सुनाना शुरू कर दिया –

श्रवण ने बोला कि अभी सपना याद कर हंसी आ रही है और तफ़सील से सपने के बारे में बताया – एक दिन रात में सो रहे थे तो सपना आया। हम और यहां जितने लोग आते हैं सब लोग साथ थे। पूजा में हम लोग जा रहे थे और आप फोन में किसी से बात कर रहे थे। वो जो चना रहता है न जिसके ऊपर कवर टाइप (हरा चना) रहता है उसको खा रहे थे। गेट खुला हुआ था और हम सबसे बीच में थे। सामने से पागल जा रहा था तो वो मूंगफली को देखकर इतनी ज़ोर से दौड़ाया तो हम और साहिल घर भागे बाकी सब भी भागकर आ गए। वो सबको छोड़ दिया पर हमारे पीछे आ गया तो हम मम्मी के पीछे जाकर छुप गए। पागल बोल रहता कि हमको भी मूंगफली दो,हमको भी मूंगफली दो। हम मन ही मन में हंस रहे थे और उसके बाद हम उठ गए।

अभिनव – मेरा भईया वहाँ सो रहा था और हम पलंग के ऊपर सो रहे थे। सपने में देखे कि हम जा रहे थे और जाते – जाते गिर गए और पलंग से सही में गिर गए थे।

काव्या – मेरे को तुम क्यों मार रही है सोते-सोते , हम एक नंबर में जाकर दीदी को बता देंगे।

साहिल – दीदी हम भी सपना देखे कि मेरी मम्मी मर गई है और मेरे पापा की टांग टूट गई है। दूसरे सपने में बताया कि मेरे पेट में भूत नोच लिया है।

नम्रता – हम सपने में देखे थे न दीपावली के समय बिट्टू भैया (सुजल) और हमारी दादी, सुजल और मेरे बड़े भईया एक – दूसरे से बात कर रहे हैं, हम आलू बम फेंके और बेम ब्लास्ट हो गया और सब लोग मर गए।

इनमें अभिषेक का सपना मज़ेदार है।

अभिषेक – दीदी , रात के एक बजे-दो बजे सपना देख रहे थे। सपना में देखा कि मैं मरा के आत्मा में पहुँच गया हूँ और भगवान यमराज मुझे बोल रहे हैं कि तुम्हारा करम अचछा है, तुम अच्छा भी किए हो और बुरा भी किए हो। तुम्हें तो धरती में पहिएर से भेज देना चाहिए। मैं सपने में बोल रहा था मुझे धरती में नहीं भगवान बना दो और मैं भगवान बनाकर सब कोई की परीक्षा ले रहा था।

सवाल – क्या परीक्षा ले रहे थे ?

अभिषेक – उसके बाद तो नींद टूट गई थी।

साहिल – दीदी , सपना में देखे कि हम मर गए हैं और मेरे पापा लोग रो रहे हैं।

नम्रता – हम भी ऐसा ही सपना देखते हैं कि कोई न कोई मर जाता है।

अभिषेक – मेरे सपने में तो हम ही मर जाते हैं।

सपने पर सब बात कर लिए तो अब फिर उनसे पूछे कि बताओ सबसे खतरनाक क्या होता है

और साथ में दोहराया हमारे सपनों का मर जाना।

सपने सिर्फ अपने लिए न देखें बल्कि अपने आसपास के बारे में भी सोचें, कहीं कुछ गलत होता है तो कोशिश करें कि सही करने की। चुप रहने की बजाय धीरे – धीरे बोलने का अभ्यास करने का।

पुनः कहा –

सबसे खतरनाक होता है

सपनों का मर जाना।

जब कभी किसी व्यक्तित्व के बारे में पढ़ते हैं तो कोशिश रहती है कि बच्चे आखिर में पढ़ी गई बातों को दोहरा लें। इसमें सभी बच्चे एक – एक बात बोलते हैं और उस दिन के बारे में संक्षिप्त में सब दोबारा सुन लेते हैं तो यहां पाश से जुड़ी बातें जो बच्चे कहे –

श्रवण – वो किसी से डरते नहीं थे।

काव्या – पंजाब में सब लोग उनके गीत से डरते थे।

गुंजन – उनका जन्म कहाँ हुआ था पूछा और फिर गुंजन ने दोहारया पंजाब के तलवंडी में उनका जन्म हुआ था।

सुजल – जिस दिन भागता सिंह , राजगुर और सुखदेव को फांसी दी गई थी उस दिन ही उनकी ह्त्या कर दी गई थी।

अभिनव – दीदी ! वो बहुत अच्छे गीतकार थे।

नम्रता – कविता में कुछ भी लिखने से नहीं डरते थे।

राहुल – दीदी ! उनका बड्डे ९ सितम्बर पड़ता है।

अभिषेक – उन्हें भगत सिंह और कुछ-कुछ लोग बहुत पसंद थे।

तो उन्हें दोहराने कहा – लेनिन,पाब्लो नेरुदा,लोर्का।

अभिषेक – उन्हें डर नहीं लगता था। पाश से पंजाब डरता था। इस बात पर उन्हें यही समझा पाए कि जो लोग बुरे काम करते थे वे लोग पाश से डरते थे यानि कविता की इतनी ताकत होती है। इसमें बड़ी मासूमियत से अभिनव ने कहा कि

दीदी , हम लोग तो कविता से नहीं डरते।

अभिनव के कहे वाक्य में छिपी मासूमियत और बचपने में जो ईमानदारी की आवाज़ सुनाई दी वो इन बच्चों के साथ ताउम्र सफ़र करे।

आमीन !!

अब काव्या के जन्मदिन की कुछ तस्वीरें साझा कर रही हूँ।

जन्मदिन की खुशी मनाते बच्चे
बच्चों के जन्मदिन के मायने होता है ‘केक’
कैमरा में कैद होना अब हम सबकी चाहत

2 thoughts on “पाश की याद वाया भगत सिंह

  • Anamika chakravarty

    बहुत कमाल का लिखा, बच्चे जो बोले सो बोले ही 😃👍🏽इतना सहज लिखा है कि बार बार पढ़ने का मन हुआ और हर बार कुछ नया मिला.

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  • सुषमा सिन्हा

    बहुत ही बढ़िया अर्पिता जी। पढ़ कर बेहद अच्छा लगा। महत्वपूर्ण काम कर रहीं आप। हार्दिक शुभकामनाएं ❤️

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