लिटिल इप्टा की डायरी

लोककथाओं से जुड़ती समय की नब्ज़

साभार -जुगनू प्रकाशन

बच्चों के साथ कहानी पढ़ते हुए शब्दों के अर्थ जानने-समझने का मौक़ा लगता है। जब वे शब्द के अर्थ अपनी समझ से मुझे समझाते हैं तो उसके आनंद का रस शब्दों में बयां करना मुश्किल है। उनकी समझ के सहारे एक नया आयाम भी देखने मिलता है। कई बार ऐसा भी होता है कि शब्द के अर्थ के साथ उनके जीवन से जुड़ा कोई किस्सा भी शुरू हो जाता है और उसमें बहते हुए अचानक ख्याल आता है कि अरे ! हम लोग तो कहानी पढ़ रहे हैं और बातचीत रोककर वापिस कहानी में आना पड़ता है। मुझ पर कहानी के जादू के साथ बच्चों के किस्सों का जादू चलता है जिसकी वजह से कहानियों के चुम्बक के साथ चिपकी हूँ।

कहानी वो होती है जो ले चलती है अपने साथ ले चलती है जीवन की डोर

जुगनू प्रकाशन से प्रकाशित किताब है ‘नीला दरवाज़ा ‘ जिसकी कहानियों को हम तक पहुंचाया है मंगलेश डबराल ने। विभिन्न देशो की लोककथाओं का शानदार अनुवाद है और उसकी साज-सज्जा भी आकर्षित करती है। लिटिल इप्टा की लायब्रेरी में शुरुआती किताबों में से एक किताब है ‘नीला दरवाज़ा ‘

बच्चों के साथ कहानी पढ़ते हुए यदि उनसे कहा जाए कि वे कहानी सुनने के बाद अपनी बात रखने में यह बताएं यानी इन सवालों का जवाब दें कि कहानी में क्या अच्छा लगा,क्या समझ आया और क्या नई बात / चीज़ पता चली तो बच्चे हर बार कुछ कहने को व्यग्र हो जाते हैं। इसमें साहिल,अभिषेक,गुंजन और श्रवण आगे रहते हैं। दीदी! मैं पहले, दीदी! मैं पहले की पुकार और अगर यह बोल पाने में पीछे रह गए तो तुरंत कहेंगे कि दीदी! गुंजन के बाद हम या फिर साहिल के बाद हम कहेंगे दीदी। एकाध बार उनसे पूछे कि बोलने – बताने में इतनी हड़बड़ी क्यों रहती है तो कोई ख़ास जवाब नहीं रहता पर कभी-कभी यह बोलते हैं कि पहले बोलने वाला अगर सब कह दिया तो बाद में बोलने के लिए कुछ नहीं रह जाएगा। इन बाल-सुलभ प्रतिक्रियाओं को दर्ज़ करने के पीछे भी यही मंशा है कि सामूहिक गतिविधियों में बच्चों के हमेशा आगे रहने की प्रवृत्ति और मनोविज्ञान कहीं इस बात से जुड़ती हो। बहरहाल आगे बढ़ते हैं –

चेक गणराज्य की कहानी मंका की चतुराई का सार यह है कि अमीर-कंजूस किसान से गरीब चरवाहा के मामले में और एक अन्य दो किसानों के झगड़े के फैसले वाले मामले में मुखिया के खोटे निर्णय से गरीब चरवाहा और किसान हैरान-परेशान होता है जिसकी काट यानी सटीक राह निकालती है गरीब चरवाहे की बेटी मंका। पूरी कहानी में जिस तरह का ट्विस्ट-टर्न है वो बच्चों की कहानी के प्रति जिज्ञासा को बढ़ाता है। कहानी यहां नहीं लिख रही हूँ पर कहानी से बच्चों की आई प्रतिक्रिया ज़रूर दर्ज़ करूंगी जिससे अलग-अलग प्रतिक्रियाओं को समझ आप कहानी का अंदाज़ा लगा पाएंगे।

साहिल – बग्घी के नीचे बछिया जन्म ली तो बछिया हुई बग्घी वाले की, मुखिया के इस फैसले पर मंका गरीब घोड़े वाले को कहती है कि तुम धूल भरी सड़क में जाल बिछाकर मछली पकड़ना, जब मुखिया पूछेगा तो कहना जब बग्घी के नीचे घोड़े का बच्चा जन्म ले सकता है तो धूल भरी सड़क में मछली भी पकड़ी जा सकती है। कहानी अच्छी लगी। (साहिल पहली में पढ़ने वाला शरारती बच्चा है पर कहानी बड़े ध्यान से सुनता है और सबसे पहले प्रतिक्रिया भी देता है। यदि उसे कोई बात बाद में याद आती है तो वो किसी और बच्चे के कहने के बीच में अपनी रौ में कहने लगता है। उसके कहने का अंदाज़ निराला है। काश ! उसके कहे के अंदाज़ को यहां दर्ज़ पाती। इतनी हड़बड़ी में अपनी बात रखता है कि वाक्य अधूरा रहता है पर बात समझ आ जाती है। )

अभिनव – मुझे मंका अच्छी लगी वो बहुत बहादुर और समझदार थी। मुखिया कोई फैसला मंका को करने नहीं दे रहा था। मंका ने किसान की बछिया भी दिलाई। अमीर किसान और गरीब चरवाहा के मामले में फैसला देने के लिए मुखिया ने दोनों को ३ सवाल हल करने के लिए दिया था कि दुनिया में सबसे तेज़ कौन ,सबसे प्यारा/मीठा क्या और सबसे अमीर क्या ? अभिनव ने कहानी लिखने के उद्देश्य को बड़ी आसानी से एक वाक्य में कह दिया –

कहानी में समझ आया कि हमें गलत फैसला नहीं करना चाहिए।

श्रवण – मंका बहादुर थी। मुखिया जो भी कठिन सवाल दे रहा था मंका समझ जा रही थी और उन्हें हल कर रही थी। वो सब कुछ इतना अच्छा समझ रही थी कि मुखिया उससे शादी करना चाहा और शादी की।

नम्रता – मंका समझदार थी। मुखिया ने गरीब चरवाहे की बेटी मंका को मिलने के लिए बुलाया तो शर्त रखी कि उसे न सुबह आना है न रात में , न सवारी में आना है और न ही पैदल चलकर, न कपड़े पहनना है और न ही बिना कपड़ो के आना है. मंका इन सवालों के उपाय आसानी से निकाल ली। जब मुखिया के घर पहुँची तो मुखिया को भी अच्छा लगा कि मंका बहुत समझदार है इसलिए शादी कर ली। जब शादी होने वाली थी तो मुखिया ने मंका को यह बोला कि मेरे मामले में कुछ नहीं कहोगी,कोई सलाह नहीं दोगी तो वो कुछ दिन चुप रहती है पर जब गरीब किसान के घोड़े की बछिया के लिए मुखिया गलत फैसला देता है तो मंका घोड़े वाले की मदद करती है।

साभार – जुगनू प्रकाशन से
मुखिया से मिलने जाती मंका

उम्र के अनुसार बच्चों से कहानी के बारे में सुन रहे थे जब राहुल की बारी आई तो उसने कहा उसे कुछ समझ नहीं आया। जब पूछे तो पता चला कि उसने कहानी सुनीं ही नहीं। सबके साथ बैठकर भी बच्चे अपनी दुनिया में खो सकते हैं इसकी मिसाल आज राहुल रहा।

फ़ैसला लेने, निर्णय देने के मायने को कहानी में किस्से के माध्यम से कहानीकार ने बच्चों को समझाया है। कहीं कोई उपदेश नहीं बल्कि कहानी में गजब का प्रवाह और जानने की बेचैनी मौजूद है।

साभार – जुगनू प्रकाशन
मंका अपने चरवाहा पिता को मुखिया की पहेली का जवाब बताती

बच्चे अगर कहानी सुनते हुए –

  • शांत हों
  • उनकी आँखें इधर – उधर भटक न रही हों
  • बीच में कुछ पूछने पर झट से जवाब मिल जा रहा हो

और

  • सुनने के रस में डूबे हों तो कहानी सुनाने का मज़ा बढ़ जाता है और यह निर्भर करता है कि कहानी बच्चे की रुचि की है या नहीं। इस तरह से बच्चों को पूरा जीवन कहानियां सुनाते और संवाद करते गुज़ारा जा सकता है।

यह ख्याल अक्सर ही आता है कि बच्चे किस्से कहानियों के सूरज से दमके, किस्सों की तपिश ख़ून की रवानगी में हों और जीवन के फ़लसफ़ों को कहती कहानी की ज़ुबानी से भरे पूरे अनुभवों से वे जीवन यात्रा करें।

कहानी पर जब बच्चे अपनी बात समाप्त किए तो उनसे एक सवाल पूछा कि

समझदारी कैसे आती है ? तो बच्चों ने सहजता से जवाब दिया –

– दिमाग से।

– जब हम कुछ करते हैं।

– पढ़ाई – लिखाई करने से।

-कोई मुश्किल आने से।

अब आते हैं ‘नीला दरवाज़ा’ नाम की कहानी पर जो कोर्सिका की लोककथा है। इस कहानी में एक बूढ़ी अम्मा, उनका घर और बगीचे के बहाने कथा बुनी गई है। फ़ौज में गए बेटे के इंतज़ार में बूढ़ी अम्मा के बगीचे में लगे पुराने जैतून के पेड़ से संवाद दिल को छू लेने वाला है। बच्चों की मासूम कल्पनाओं में बूढ़ी अम्मा और जैतून के पेड़ के संवाद के माध्यम से प्रकृति को जोड़ना और उनसे अपने अकेलेपन को बांटने की गजब कहानी है साथ ही दुनिया में जीने – मरने के सच को बड़ी खूबसूरती से लिखा है। जैसे बूढ़ी अम्मा जैतून के पेड़ से संवाद कर रही है बिलकुल वैसे ही जब मौत आती है तो अम्मा का मौत से भी बहस-मुबाहिसा चलता है और कहानी के माध्यम से बच्चों को सोचने में मजबूर करता है और कहानी के माध्यम से यथार्थ से परिचित भी करता है कि जीवन में बिछोह भी है।

साभार – जुगनू प्रकाशन
बूढ़ी अम्मा और जैतून का पेड़

इस कहानी को सुनने के बाद बच्चे पहली बार जैतून के बारे में जानें। यह विडम्बना है कि बाज़ार के इस युग में बहुत सी कुदरती चीज़ों को बच्चे बाज़ारी सामान से पहचान पाते हैं जैसे जैतून को उन्होंने पिज्जा में देखा है।

राहुल – कहानी की बूढ़ी अम्मा बहुत अच्छी थी वो अपने बगीचे में लगे जैतून के पेड़ को जो बोलती थी वही वो करता था , जैतून का पेड़ भी बहुत अच्छा था।

अभिनव – दादी थी न ! जो बूढ़ी अम्मा थी न ! वो पेड़ को बहुत प्यार करती थी। जैतून के पेड़ का फल बहुत स्वादिष्ट था।पेड़ बूढ़ी अम्मा के जाने का दुःख मना रहा था। पेड़ से लिपटकर दादी अपने बेटे को याद करती थी।

साभार -जुगनू प्रकाशन
बूढ़ी अम्मा और मौत के बीच संवाद ( जैतून की डाल मौत को जकड कर रखी हुई है )

श्रवण – बूढ़ी अम्मा को जब भी बेटे की याद आती थी तो पेड़ के तने में माथा टिका कर उसे याद करती थी। जैतून का पेड़ और बूढ़ी अम्मा एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थे , अम्मा पेड़ को अपना बेटा समझती थी क्योंकि उसका बेटा बहुत दिन से लौटा नहीं था। जब मौत अम्मा को लेकर जा रही थी तो पेड़ दुःख मना रहा था। इसके बाद सहज ही सवाल आया कि

अपने परिवार में आप किसको शामिल मानते हैं ?

जवाब आया

-गाड़ी

-जानवर

परिवार से, फैमिली से क्या समझते हो ? फैमिली किसे कहते हो ?

-जैसे एक घर में बहुत सारे लोग रहते हैं न वो परिवार होता है।

-एक घर में एक ही फैमिली रहती है।

-दादा-दादी आ जाएंगे तो वो भी फैमिली बन जाएंगे।

-अपने पापा-मामी , बहन, दादा-दादी, चाचा-चाची, नाना-नानी, मामा-मामी।

-जो एक घर में रहते हैं।

-जैसे कोई दोस्त है तो वो भी फैमिली होता है।

-जैसे हम लोग किसी के घर में गए तो उसको ही दोस्त मान लिए जैसे कि हम लोग आपके पास आते हैं तो आप भी फैमिली और इस तरह से फैमिली बढ़ती जाएगी। इस बात ने दिल जीत लिया कि किस तरह से बात करते – करते बच्चे स्वयं को समझने की कोशिश कर रहे हैं और दोस्तियों को अपना मान रहे हैं।

उन्हें बताया कि अपने परिवार से इतर हमारी प्यार की , स्नेह की और दोस्ती का रिश्ता भी बनता है। इसी क्रम में जब ब्लड रिलेशनशिप पर संक्षिप्त बात हुई तो सभी ने अपना – अपना ब्लड ग्रुप साझा किया और मुझसे भी ब्लड ग्रुप जाना। कहानी पर बात करते – करते किस तरह से बच्चों से बातें होती चली जाती हैं और उनसे कुछ न कुछ नया सुनने-जानने मिलता है यही बच्चों की संगत का हासिल है। फिर लौटते हैं ऊपर के संवाद की अगली प्रतिक्रिया की तरफ –

-अगर सब एक साथ रहने आएंगे तो एक बड़ा घर लगेगा। जब यह बात आई तो उन्हे पूछे कि

हम लोग अलग – अलग घर में रहते हैं तो उससे फैमिली अलग हो जाती है जैसे हमारी मां,बहन,भाई सब दूसरे शहर में रहते हैं तो क्या फैमिली नहीं कहलाती ?

-सब एक स्वर में ‘नहीं ‘ कहे तो अगला सवाल आया कि ऐसा क्यों नहीं होता ?

जवाब मिला कि इतने छोटे घर सब एक साथ कैसे रहेंगे ?

अगला सवाल – और कौन सी वजह रहती है कि लोग एक साथ नहीं रहते बल्कि अलग – अलग जगह रहते हैं।

  • किसी को काम के लिए जाना पड़ता है।
  • पढ़ने के लिए बाहर चला गया।
  • झगड़ा करने की वजह से अलग हो जाता है।

‘नीला दरवाज़ा’ संकलन की एक अन्य कहानी ‘घर,पेड़ और तारे की याद ‘ भी हम लोगों ने मिलकर पढ़ी। इस कहानी संग्रह की हम लोगों ने कुल जमा ४ कहानी पढ़ी है। इससे पहले किशोर हो चुके बच्चे इस कहानी संग्रह को बड़े चाव से स्वयं ही पढ़े थे पर इस बार छोटे बच्चों के साथ पढ़ने का मौक़ा लगा तो कहानी पर उनकी समझ लिख पा रही हूँ।

साभार – जुगनू प्रकाशन
युद्ध की आपाधापी में भागते लोग

फिनलैंड की इस कथा में जिसका शीर्षक है – ‘घर,पेड़ और तारे की याद‘ जो युद्ध की मार झेलते आठ वर्षीय भाई -छह वर्षीय बहन की कहानी है। दोनों भाई – बहन युद्ध की विभीषिका में घर से बहुत दूर, अपने देश से बाहर पहुँच जाते हैं , जहां की भाषा से भी परिचित नहीं होते पर बहुत छोटे होने की वजह से उन्हें एक दम्पति आश्रय देता है पर वे अपने माता-पिता और घर को भूल नहीं पाते और उसके साथ अपने घर के अहाते में लगा सनोबर का पेड़ और उसमें गाने वाले दो पक्षियों की बेतरह याद की बेचैनी में वे लौटते हैं। संयोग से वे अपने घर माता-पिता के पास पहुँच जाते हैं। पूरी कहानी में बच्चों के जीवन में आई विकट स्थितियां हैं पर उन पर उन बच्चों के साहस और अपनी ज़मीन ,घर वापसी की तड़प भी है। इस कहानी को बड़े ध्यान से सबने सुना। बच्चों की प्रतिक्रिया साझा कर रही हूँ –

अभिषेक – वो लोग बहुत मेहनत से अपने घर पहुंचे थे। वो लोग कितना कठिन (कठिनाई ) भी पार कर लिए। उन लोगों को सब लोग खानावाना दे रहे थे (हेल्प कर रहे थे )

साहिल – फिर उसकी मम्मी बोलती है कि आज सुबह दो ठो चिड़िया बहुत मीठा गीत गा रही थी।( जब बच्चे घर वापिस पहुँचते हैं उस सन्दर्भ के लिए साहिल ने कहा ) उन लोगों को मम्मी-पापा की बहुत याद आ रही थी। उन लोगों को सब लोग खाने का दे रहे थे। (जब वे घर से दूर निकल गए और फिर जब घर की खोज में निकले तब रास्ते में बच्चों को खाने के लिए दिक्कत नहीं हुई थी )

श्रवण – हमको समझ में आया न कि सब लोग उनकी हेल्प कर रहे थे। वो लोग बहुत मुश्किल से अपने घर को खोजे थे। कहानी में ये अच्छा लगा कि उनके मां-पापा उन्हें वापिस मिल गए थे।

गुंजन – हमको समझ में आया कि उन लोग सनोबर का पेड़ देखकर अपना घर पहचाने। उसमें दो चिड़िया बैठी थी। वो लोग बहुत सारी नदी , झील पार करके घर पहुंचे थे।

नम्रता – हमको समझ में आया कि दोनों भाई – बहन अपने मम्मी-पापा से बिछड़ गए थे। उन दोनों बच्चों को जो लोग अपने पास रखे थे वे लोग उनको जाने नहीं दे रहे थे। इस पर नम्रता ने सवाल किया कि आखिर उन बच्चों को घर क्यों नहीं जाने दे रहे थे ? तो बताया कि बच्चे छोटे थे वे अपने घर का पता नहीं बता पा रहे थे और कहीं खो न जाए इसलिए उनके नए अभिभावक कहीं जाने नहीं दे रहे थे। कहानी में यह अच्छा लगा कि बच्चों को उनके माता-पिता मिल गए। कहानी में भाई-बहन अच्छे लगे वो इसलिए कि कोई-कोई खो जाने पर हार मान जाता है लेकिन दोनों भाई-बहन हार ही नहीं मान रहे थे।

काव्या – उन लोगों को चिड़िया घर का रास्ता बताती है। वे लोग मीठा गाना गाती चिड़िया का पीछा करते हुए घर पहुँच जाती हैं।

अभिनव – हमको समझ में आया न दीदी कि वो बच्चे लोग बहुत मुश्किल से अपने मां-बाप को खोजे। कठिनाई पार किए। हमको अच्छा लगा कि उनके मां-बाप मिल गए। कहानी अच्छी लगी।

अभिनव के बाद बस ऐसे ही पूछ कि बताओ कौन से देश की कहानी है तो तपाक से आवाज़ आई अफ्रीका। फिर याद कराने की गरज़ से दोहराया कि फ़िनलैंड की है, उत्तरी ध्रुव के पास रूस की सीमा के पास फ़िनलैंड है। यहाँ यह याद आ रहा है कि बच्चों को ग्लोब में या मैप में कोई भी देश को देखने में मज़ा आता है भले ही वे उत्तर – दक्षिण ,पूरब-पश्चिम याद करने के साथ अपने देश की याद ही रख पा रहे हों पर देखने-ढूंढने के लिए उत्सुक रहते हैं।

साभार – जुगनू प्रकाशन
भाई – बहन के घर वापसी का दृश्य

सुरभि – इस कहानी में २ बच्चे बिछड़ गए थे तो वे दूसरी जगह में किसी के घर में रह रहे थे। वे अभिभावक बहुत अच्छे लोग थे कि दूसरे के बच्चे को भी अच्छे से रखे जबकि लोग दूसरे के बच्चे के लिए कहते हैं कि दूसरे के बच्चे को क्यों रखें। उन दोनों की ऐसी सोच नहीं थी। खाना – पीना,कपड़ा सब अच्छे से देते। उन बच्चों के पास खबर आती है कि उनका देश फ़िनलैंड ठीक हो गया है (युद्ध समाप्त हो गया है सब लौट रहे हैं ) वो दोनों अपने घर जाना चाहते हैं पर अभिभावक उन्हें समझाते कि तुम लोग रास्ते में गुम जाओगे इसलिए मत जाओ। दोनों बच्चे रात में चुपचाप घर जाने के लिए निकल जाते हैं। इस कहानी से यही समझ आया है कि दोनों बच्चे कितनी भी कठिनाई के आगे हार नहीं मानते हैं, रास्ते में फल-फूल जो मिल जाता था उसे खाकर बढ जाते और रास्ते में किसी से माँगने पर भी उन्हें खाना मिला। जो चिड़िया उन्हें मिलीं वे बच्चों को रास्ता दिखा रही थीं और उन्हें देखते – देखते वे आगे बढ़ते हैं।

दिव्या – कभी भी उम्मीद नहीं हारना चाहिए कि हम नहीं कर पाएंगे। छोटी बहन को भाई हमेशा कहता था कि हम लोग कर लेंगे, घर ढूंढ लेंगे। वो दोनों एक – साथ आगे बढे। कोई-कोई लोग होते हैं कि किसी के खाना माँगने आने वालों को भगा देते हैं पर पूरी कहानी में कोई चरित्र ऐसा नहीं आया जो उन्हें भगाया। उन्हें जो अभिभावक मिले वे भी अच्छे थे कि उन अनजान बच्चों को रहने के लिए स्थान दिए। उनके माता – पिता जो कि बच्चे खो जाने के बाद दुखी थे उन बच्चों के मिलने से उन्हें दोबारा खुशी मिली।

सबकी बात आ जाने के बाद बच्चों से पूछा कि बच्चे अपने परिवार से बिछड़ कैसे गए थे ? (कोई एक बताये मुझे )

– क्योंकि फिनलैंड में आतंकवादी लोग आ गए थे।

उन्हें कहा कि आतंकवादी तो नहीं थे, वहाँ युद्ध हुआ था।

– हाँ, हाँ , युद्ध हुआ तो सबका घर वगैरह जल गया था इसीलिए बिछड़ गए थे।

इसके बाद बच्चों को पूछे कि किसका युद्ध सुनें हो तो सहजता से पाकिस्तान, आतंकवादी शब्द बच्चों ने बताया जिससे वे परिचित हैं जबकि इसके मायने नहीं समझते। उन्हें बताया कि अभी दुनिया में कई जगह युद्ध चल रहा है जिसकी वजह से बच्चों पर बड़ी मुसीबत आई हुई है। इसी क्रम में उन्हें बताया कि ग़ज़ा में एक पेंटर ने अपनी फ्रेम की हुई पेंटिंग के फ्रेम की लकड़ी चूल्हा जलाने के लिए निकाल रहा है क्योंकि वहाँ सब तबाह हो गया है, बच्चे भूख से बीमार हैं और रोज़ कई बच्चे मर जा रहे हैं।

साभार एन दी टी वी
इससे सम्बंधित खबर आप नीचे के लिंक को क्लिक करके देखा सकते हैं।
https://www.aljazeera.com/video/newsfeed/2025/7/24/gaza-artist-destroys-art-to-turn-frames-into-firewood

–दीदी अब कुछ दिन में यहां भी हो जाएगा न युद्ध ,

– मैंने पूछा क्यों तो कोई जवाब मिला नहीं पर महसूस कर पाई कि मोबाइल , टेलीविजन और अपने आसपास किस तरह की बातचीत और माहौल हमने बना दिया है कि बच्चों के शब्दकोश में ऐसे शब्द भी शामिल हैं जिनका अर्थ से उनका दूर – दूर का नाता नहीं। बस उनसे यही कह पाए कि –

झगड़ा करना , लड़ाई करना , युद्ध करना हमारे जीवन को सुन्दर नहीं बना सकता । हम किसी से भी लड़कर के कुछ भी हासिल नहीं कर सकते।

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