लिटिल इप्टा के नन्हे-किशोर साथियों के अनुभव
रेखा जैन जन्म शताब्दी समारोह में इप्टा की बाल कार्यशाला में शामिल प्रतिभागियों के अनुभव
अर्पिता

रेखा जैन जन्म शताब्दी के अवसर पर जमशेदपुर इप्टा द्वारा 7 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन 2 से 8 जून, 2025 किया गया जिसमें लिटिल इप्टा जमशेदपुर और झाबरी बस्ती के बच्चे शामिल हुए।
9 जून, 2025 को कार्यशाला में तैयार प्रस्तुति “पुस्तक राज “ के प्रदर्शन के बाद 20 जून, 2025 को लिटिल इप्टा के साथियों के साथ बैठना हुआ और झाबरी बस्ती के बच्चों के साथ 21 जून, 2025 को बैठना हुआ और इस कार्यशाला के उनके अनुभव को सुनना सुखद अनुभव रहा जिसे यहाँ दर्ज़ कर रही हूँ।

जब बच्चों से मुख़ातिब हुई तो उनके अंदर भी बहुत कुछ कहने-बताने का आवेग महसूस हुआ जिसे कभी अपनी बारी आने पर और कभी किसी साथी के बोले जाने के बीच में अचानक कौंध जाने पर कहने की हड़बड़ी के बीच ये मुलाकात यादगार रही।
जब किशोर बच्चों को हमेशा की तरह कहा कि अपने अनुभव डायरी में दर्ज़ करने का अभ्यास बनाओ तो उसी में संदर्भ /रिफरेंस शब्द आया कि अक्सर हम लोग अपने जीवन में कई महत्वपूर्ण बातों को समय के साथ भूल जाते हैं क्योंकि हमने उसे कहीं लिखा नहीं और उसके बाद शेष रह गई स्मृति के आधार पर कुछ संदर्भ देते हुए उस याद को याद करते हैं। बच्चों को इस शब्द के मायने समझने के लिए पहले इस शब्द का एक उदाहरण स्वयं का दिया जैसे हम लोग 2019 के मार्च महीने में northern टाउन में रहने आए तो इसमें यहाँ रहने के लिए बताया गया समय संदर्भ/ रिफेरेंस हुआ। इसके बाद एक चक्र चलाया कि इसके मायने समझते हुए वे सभी एक या दो उदाहरण देकर अपनी बात रखें तो पहले “संदर्भ/reference” के मज़ेदार उदाहरण बच्चों के नाम के साथ दर्ज़ कर रही हूँ।
इसमें सबसे पहले वर्षा ने बताया कि जब हम सभी बच्चे एक बार मिलकर डिमना घूमने गए थे तो वहाँ बहुत तेज आंधी-हवा चली और उसके बाद तेज बारिश हुई थी। इसी बात में सुरभि ने कहा कि उस तेज बारिश वाले दिन ही मेरा हाथ कार की विंडो में दबा था।
काव्या ने बताया कि वह जब नार्दर्न टाउन रहने आई थी तो उसकी मौसी उसे बिहार लेकर गई थी।
अभिषेक ने याद किया कि हम लोग जब डायमंड पार्क गए थे तो पतझड़ का मौसम था।
श्रवण ने हाल की घटना ‘संदर्भ’ शब्द के लिए याद किया कि हम लोग पार्क जाने का प्लान किए पर फिर उस दिन जा नहीं पाए तो यहाँ “लाइफ ऑफ पाई” फिल्म देखी। यहाँ यह जोड़ना ज़रूरी है कि इस फिल्म को इन बच्चों के साथ बैठकर देखना शेष है क्योंकि छोटे बच्चों को यह फिल्म समझ नहीं आई।
हम लोग बीच-बीच में कोशिश करते हैं कि सब मिलकर आसपास कहीं घूमकर आएं और उस दिन बच्चों का उत्साह चरम पर होता है। छोटी कार में हर तरह से एडजस्ट करने के लिए बच्चे तैयार रहते हैं और उनकी खुशी देख हमेशा लगता है कि उनके साथ दुनिया घूमने के एक अलग अनुभव से समृद्ध होती हूँ। उनके देखने का नज़रिया चकित करता है। बहरहाल फिर संदर्भ शब्द में लौटती हूँ तो अब राहुल ने याद किया कि हम लोग जब पूजा में गए थे तो इतनी बारिश हो रही थी कि पूरी तरह भीग गए थे। अभिनव ने 25 मई, 2025 का दिन जब वे “ थियेटर ऑफ थे ऑपरेस्ड” की फोरम प्रस्तुति और इप्टा स्थापना दिवस मनाने के लिए आए थे इन सभी सभी बच्चों को लेकर प्रशान्त बालिजुड़ी पहुंचा तो रास्ते में अभिषेक को उल्टियाँ हुई थी।
अजय ने बतया कि 2020 को वे लोग जमशेदपुर थे।
नम्रता ने हाल में हुए बच्चों की कार्यशाला का एक दिन याद किया कि कार्यशाला के दूसरे दिन जब हम लोग नाश्ता कर रहे थे तो कौआ ने माँस का एक टुकड़ा आँगन में गिराया था।
सुजल ने याद किया कि बहुत दिन पहले जब हम सब लोग घाटशिला गए थे तो काँस के फूल सब तरफ खिले थे और हम लोगों ने फोटो खिंचवाई थी। इसे सुनकर लगा कि प्रकृति की सुंदरता कैसे स्मृति में बसती है और फिर कभी जब ये बच्चे कविता लिखेंगे तो उनकी ये सुखद स्मृतियाँ शब्दों के प्रवाह में बह निकलेंगी।
दिव्या ने अपने स्कूल दिनों की दो दोस्तो को याद किया जिनके वो करीब थी जिसे वो ओडिशा में दसवीं पढ़ने के बाद छोड़कर आई हैं। उन दोनों में एक दोस्त बीएससी कर रही है और एक बीए और दिव्या बी कॉम अब तीनों दोस्त तीन अलग-अलग संकाय में अपनी पढ़ाई कर रही हैं।
निशा ने याद किया कि जब बड़ी पूजा में मामा लोग आए थे तो सभी बहन लोग मिलकर मोदी पार्क ( जिसका नाम बदल कर अभी डायमंड पार्क कर दिया गया है) गए थे। इस पार्क में स्टील का एक बहुत बड़ा डायमंड आकार बनाया गया है जिसमें प्रकाश व्यवस्था बहुत सुन्दर है। इसके पीछे एक इतिहास है कि 1924 में टाटा कंपनी आर्थिक तंगी से गुज़र रही थी तो मेहर बाई ने अपना व्यक्तिगत आभूषण कंपनी के कामगारों की तनख्वाह देने के लिए दिया जिसमें यह डायमंड भी शामिल था तो उनकी याद में डायमंड पार्क बनाया गया।
बच्चों के साथ मूल विषय में आने के लिए उन तक संवाद के जरिए चल कर जाना पड़ता है तब वे आपके साथ सहज होकर बातचीत करते हैं और खुलकर स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं तो इस प्रक्रिया से चलकर अब उनके अनुभव की तरफ बढ़ते हैं।
हम लोगों ने कार्यशाला 2 से 8 जून,2025 रखी थी पर अनौपचारिक रूप से 1 जून की शाम ही झाबरी बस्ती के बच्चे और लिटिल इप्टा के बच्चों के साथ परिचय, खेल और गतिविधियों के साथ ये शुरू हो गई। 1 जून को अनौपचारिक मेल-मुलाकात की ऊर्जा और उमंग लिए सभी बच्चे जब 2 जून को मुखी बस्ती के सामुदायिक भवन में मिले तो बच्चों की उपस्थिति से कार्यशाला स्पेस दमकने लगा।


बाएं से उपेन्द्र मिश्रा, अहमद बद्र, शशि कुमार, उषा आठले, अनादि आठले,क्षितिज , अर्पिता, कीर्ति जी,तनवीर अख़्तर,श्वेत, अंजना
हमेशा की तरह पहले हम तीन लोगों ने झाड़ू उठाई तो एक बच्चे ने पोंछा उठाया और कार्यशाला वाले हॉल की सफाई की। इप्टा में आकर यह पहली महत्वपूर्ण सीख जैसे हमने सीखी वैसे ही बच्चे भी धीरे-धीरे सीख रहे हैं और बतौर अभ्यास उनके अंदर आ रही है और आगे से बढ़कर काम करने की जो झिझक होती है वो धीरे-धीरे जा रही है इसलिए इसे यहाँ लिखा जाना ज़रूरी लगा। कुछ कविता पोस्टर और एक बाल रंग कार्यशाला का जूट के बोरे पर एपलिक किया हुआ पोस्टर लगाकर काम शुरू हुआ जिसे हमारी साथी अंजला ने 2023 के गर्मी की कार्यशाला के लिए बनाया था। कार्यशाला से जुड़ी छोटी-छोटी बातों का सामूहिक काम में तब्दीली के बहुत से उदाहरण आँखों के सामने तैर रहे रहे हैं पर फिलहाल जिस लिए यह पोस्ट लिख रही हूँ उस बात पर आती हूँ। बच्चों की की गई कल (20 जून और 21 जून, 2025 ) की ताज़ा बातों में कुछ भूल ना जाऊँ तो शुरू करती हूँ उनके अनुभव से जिसमें कोशिश रहेगी कि उनकी अभिव्यक्ति को उन्हीं के शब्दों में दर्ज़ करूँ –
राहुल – हम लोगों ने गीत सीखे, बहुत से खेल खेले, हम कार्यशाला वाली जगह में घूम-घूमकर बहुत खेले। जब हम लोगों ने नाटक स्टेज में किया तो बहुत लाइट थी, स्टेज गरम था और गर्मी बहुत ज़्यादा थी। (यहाँ यह बताते चलूँ कि 9 जून, 2025 को कार्यशाला के समापन में हमने ट्राइबल कल्चर सेंटर में एम्फी थियेटर में मंचन किया था और उस दिन जमशेदपुर में बहुत ज़्यादा गर्मी और उमस थी।)
साहिल – नाटक सीखे, बहुत चीज़ खाए, मस्ती किए, बदमाशी किए, डांस किए और केला भी खाए।

श्रवण – अभ्यास किए, गाना सीखे, एक्टर का रोल किए, एक-एक दिन अलग-अलग खाना खाए। माइक की आवाज बहुत थी, मुझे स्टेज में करेंट भी लगा, गर्मी बहुत थी। वहाँ एक बिल्ली थी जो हम लोगों के पीछे-पीछे आ रही थी। मुझे दो खेल पसंद आया एक तो लाला जी ने लड्डू खाए, कितने खाए-कितने खाए वाला और बीट पर भैया ने जो डांस कराया वो अच्छा लगा।
यह उल्लेखनीय है कि श्रवण ने पूरी कार्यशाला में सुजल के साथ मिलकर संगीत के लिए नाल बजाया। श्रवण में ताल वादी को लेकर गजब का उत्साह है।

अभिषेक – जो अंकल मुझे सरदार कह रहे थे उनके साथ हम लोगों ने फोटो खिचाया। तब बच्चों को याद दिलाया और बताया कि उनका नाम है तनवीर अख़्तर। हम लोग खेले, अच्छा खाना खाए। 8 जून को जहाँ गए थे वहाँ नाटक में मेरी नाक बार-बार गिर जा रही थी। हम लोग नाटक किए और दूसरे दिन नाटक के साथ गाना भी गए।
तीन दीवार छूकर जो सबसे आखिर में आएगा उसे डांस करना पड़ेगा , यह खेल मुझे अच्छा लगा।
मैं बार-बार राजा बन रहा था तो उससे पूछा क्यों तो जवाब मिला कि हम बदमाशी कर रहे थे।
यहाँ बताते चलें कि साथी क्षितिज ने बच्चों को शांत रखने और अनुशासित रखने के लिए यह रचनात्मक काम किया। जब भी कोई बच्चा कार्यशाला गतिविधि के दौरान ज़्यादा बात करे या डिस्टर्ब करे तो उनसे कहते कि चलो तुमको राजा बना देते हैं और उसे बाकी बच्चों से दूर किसी कुर्सी में बैठा दे। शुरू में तो बच्चों को समझ नहीं आया पर दूसरे दिन से वे समझ गए कि राजा बनने के क्या मायने हैं।

गुंजन – 1 से 10 की स्पीड चले थे, गेम खेले, अपने-अपने शरीर से चित्र बनाए थे और अभिषेक का खुल जा सिमसिम मुझे बहुत अच्छा लगा।

सुरभि – आँख से नंबर बनाना, बॉडी से चित्र बनाना, कहानी बनाना और बिना आवाज के नाटक करना सीखे। नए गाने और नई एक्सरसाइज़ भी सीखे।

अभिनव – भैया हम लोगों को शांत रहना सिखाए और बताए कि कैसे हिलना-डुलना भी नहीं है। यह एक गतिविधि थी जिसमें बच्चे चल रहे होते और अचानक से स्टॉप होता जिसका ज़िक्र अभिनव ने किया।
1 से 10 की स्पीड और बैलैंस करना सिखाए।
नाटक के समय हंसी आ रही थी। क्षितिज भैया को भी इनाम (यानि सर्टिफिकेट) मिला।
नम्रता – पहले दिन का गेम कि चारों दीवार को बिना किसी से टकराए छूकर अपनी जगह आना है। दूसरे दिन के जी शीट में कहानी बनाना सीखे।
कई बार अभिषेक बात भी नहीं किया और बदमाशी नहीं किया तो उसे भैया ने राजा बना दिया वो दुखी हो गया था।
पिछली कार्यशाला ( 2023 मई की कार्यशाला ) के बच्चों से 2-3 दिन बात नहीं किए पर जब नाटक शुरू हुआ तो फिर सबसे दोस्ती हो गई। मिलकर काम करना सीखे। जब यह ज़रूरी बात नम्रता ने बताई तो हम लोगों ने सामंजस्य, को-ऑर्डिनैशन पर बात की। उन्हें बताया कि कैसे किसी एक काम के लिए कोई शुरुआत करता है और फिर उस काम के लिए सब एकजुट होकर पूरा करते हैं। बच्चों के साथ संवाद का यह तरीका उन्हें भी समझ आने लगा है तो वे भी कोशिश करते हैं उन्हें क्या समझ आया।

सुजल – नई चीज़ें सीखें, को-ऑर्डिनैशन सीखे, अलग-अलग आकार बनाना सीखे जैसे सर्कल, स्क्वेर।
1 से 10 की स्पीड में चलाने से मंच में एंट्री और exit में सहूलियत हुई।
नई कहानी पता चली।
बड़े समूह में नाटक के एक दृश्य में कितना काम होता है यह पता चला।
झाबरी बस्ती के बच्चों को कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला तो इस पर पूछा कि क्या तुम लोगों को नहीं मिला तो इसे स्पष्ट किया कि हम लोगों को मौके मिल रहे हैं पर उन्हें हमसे कम मिल रहा है। इस तरह की बातचीत से कहीं न कहीं यह समझ विकसित होने की उम्मीद कर सकते हैं कि अपने आसपास में अवसर की अनुपलब्धता, अनुपस्थिति के प्रति संवेदनशीलता और समझ बन पाएगी।

दिव्या – हम सब मिलकर सफाई करते थे उसके बाद रोज़ संगीत का अभ्यास, एक्सरसाइज़, बिना पेंसिल, रंग और कागज के अपने शरीर से कैसे चित्र बनाते हैं यह सीखा।
कहानी बनाई। नाटक पढ़कर तुरंत ही आधे नाटक को तैयार कर दिखाया।
जब नाटक की तैयारी शुरू हुई तो सुरभि की एक दिन की अनुपस्थिति में उसका रोल मुझे मिला और वो करके मुझे बहुत मज़ा आया।
सुरभि के साथ मिलकर स्कूटी बने थे।
8 जून को नाटक हुआ और हम लोगों को इप्टा की टी शर्ट मिली जो बहुत अच्छी लगी। घर में भी सबको पसंद आई। नाटक का वीडियो घर में दिखाया।
इस कार्यशाला से रेखा जैन के बारे में जाना कि कैसे 13 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी फिर उनके पार्टनर ने उन्हें पढ़ने के लिए कहा।
कीर्ति दीदी ने बताया कि कैसे 8 वर्ष में रेखा जी के ताऊ जी ने उन्हें आगे पढ़ने नहीं दिया।
उषा दीदी, तनवीर जी से मिले। जिस दिन समापन था झाबरी बस्ती के बच्चे रो रहे थे तो उन्हें समझाया कि हम सब मिलते रहेंगे।
आज 21 जून जब यह लिख रही हूँ तो बताते चलूँ कि आज शाम उनसे हम लोग मिल रहे हैं। कोशिश रहेगी कि शनिवार और रविवार लगातार मिलते रहें।

वर्षा – आँखों के द्वारा नंबर बनाना रोचक लगा। 4-5 के लोगों के समूह में रहकर इमेज बनाना अच्छा लगा, को-ऑर्डिनैशन सीखा।
सब मिलकर साथ में काम कर रहे थे। सबको एक साथ संवाद बोलना और फिर उसे इमोशन के साथ बोलना मुश्किल था क्योंकि हमारे ग्रुप में कार्तिक था और उसे समझाने में मुश्किल हुई पर समूह में ये सब समझाने का अनुभव का मौका लगा।
जब शीट में कहानी बनानी थी तो उसमें इमेज को बनाने के लिए सब लोग सुझाव दे रहे थे, कार्तिक लगातार इरेज़र पास कर रहा था, हम लोग इस दौरान बहुत मस्ती किए। एक-दूसरे से बात कर उनका परिचय देने के दौरान पता चला कि कार्तिक अभी तक स्कूल नहीं जाता है।
1 से 10 की स्पीड, मूवमेंट, बॉडी लैंग्वेज सीखे।
एक गेम जिसमें क्लैप, जम्प करना था पर जब इसका उलटा किया तो खुद को फोकस करना सीखे जिससे स्टेज में कुछ इधर-उधर संवाद होने पर इम्प्रोवाईजेशन करने में हेल्प हुई।
जब नाटक पढ़कर तुरंत ही इम्प्रोवाईजेशन कर रहे थे तो समझ आया कि को-ऑर्डिनैशन के लिए कितनी मेहनत लगती है।
रिहर्सल के समय हंसी आ रही थी और कहीं संवाद भूली तो सुरभि ने याद दिलाया और तब समझ आया कि हड़बड़ी में, हंसी में या शो के समय नाटक को कैसे संभालना है। शो के दिन बहुत टेंशन था कि दोनों नाटक के संवाद इधर-उधर न हों जाएं। गर्मी थी, बैक स्टेज में सबको हड़बड़ी थी और शांत भी रहना है जबकि सभी को कुछ न कुछ बोलते रहना है यह भी समझ आ रहा था कि यहाँ चुप रहना है, कठिन दिन था। फिर नाटक खत्म होने के बाद बात करनी है कि किससे कहाँ , कैसे गलती हुई, क्या गलत हुआ।
कार्यशाला के लिए पुस्तकों की जो costume तैयार हुई वो राम भैया, प्रदीप भैया और उर्मिला दीदी ने कितनी मेहनत से छोटी-छोटी डिटेलिंग के साथ बनाई तो लगा कि यह सीखा जाना चाहिए।
गाने की प्रक्रिया अच्छी लगी।

अमन – नए दोस्त बने, अच्छी बात सीखे, सबके साथ मिलकर रहना और झगड़ा नहीं करना सीखे। सबकी इज्जत करनी चाहिए।
जब पहले दिन 1 जून को मैं वर्कशॉप आया और सभी ने मुझे इज्जत दी तो मुझे बहुत अच्छा लगा क्योंकि घर में और आसपास हम सब एक-दूसरे से इस तरह से नहीं मिलते हैं।
आखिरी दिन मैं बहुत इमोशनल हो गया था और रोने लगा था तो दिव्या दीदी ने मुझे समझाया, हौसला दिया कि हम लोग फिर मिलेंगे और देखिए हम लोग फिर मिले।
भैया जब कार्यशाला में डांटते थे तो मुझे लगता था कि बस हम लोगों को डांट रहे हैं पर फिर बाद में समझ आया कि हम लोग ही बदमाशी कर रहे थे।
कार्यशाला में हमें रेखा जैन के बारे में पता चला।

अभिमान – सुजल, अभिनव, श्रवण से दोस्ती हुई। नाटक करना सीखे, नए गाने सीखे और रेखा जी के बारे में जाना।
सुमित – श्रवण, अभिषेक और सुजल से दोस्ती हुई। अभिषेक बहुत प्यारा है क्योंकि वो सभी से घुल-मिल जाता है। सबके साथ नाटक करना अच्छा लगा, मज़ा आया। नाटक कैसे तैयार करते हैं यह कार्यशाला में सीखे। बड़े होकर हम लोग नाटक तैयार कर पाएंगे।

महिमा – महिमा वो बच्ची है जो उम्र में छोटी थी और शर्मीली भी। शुरुआत के दो दिन वो कार्यशाला में आई और उसके बाद नहीं आई इसके लिए उसने कहा कि मुझे कोई भी रोल नहीं मिला इसलिए वो कार्यशाला में नहीं आई।
ऋतु – दोस्ती हुई और बहुत मज़ा किए। मिल-जुलकर रहना सीखे, बातचीत करने में अच्छा लगा। गेम्स खेलने, चित्र बनाने और गाना गाने में मज़ा आया।

तान्वी – नम्रता और अभिषेक से दोस्ती हुई। नाटक करना अच्छा लगा। सिंड्रेला वाली किताब बनने, ड्राइंग करने और साइकिल बनने में मज़ा आया।

कार्तिक – राहुल, अभिषेक, अभिनव और सुजल भईया से दोस्ती हुई। ड्राइंग बनाने में मज़ा आया।

रिंशी जिया – इस कार्यशाला में यह बहुत अच्छे से समझ आया कि अगर आप नाटक में अपने कैरेक्टर को और नाटक को समझ लेते हैं तो असल में अभिनय करना नहीं पड़ता।
नाटक को ज़रूरी नहीं कि हम पेशा बनाए पर इस माध्यम को हम पढ़ाई के साथ जोड़ सकते हैं। जब हम कहीं दाखिले के लिए या इंटरव्यू के लिए जाते हैं तो अपने आपको कैसे प्रस्तुत करना है यह नाटक सिखाता है जैसे हम दर्शकों के सामने अपनी प्रस्तुति की तैयारी कर दिखाते हैं।
विज्ञान से भी नाटक को जोड़ सकते हैं और अपनी किताबों को उस अंदाज़ में याद करना और समझना आसान होगा।
इस कार्यशाला में जिस ग्रुप में रही उसमें छोटे बच्चे थे तो वे क्या सोचते हैं यह समझ आया साथ ही उनसे घुलना-मिलना और समझाने का अनुभव हुआ।

बच्चों के अनुभव का अपना महत्व है क्योंकि इस कार्यशाला के केंद्र में तो बच्चे ही थे। रेखा जैन जिनकी स्मृति में हम यह कार्यशाला किए उन्होंने 50-55 वर्ष तक बच्चों के साथ थियेटर किया और उनकी रचनात्मकता को खाद-पानी दिया।आज के समय में जब बच्चे सामूहिक गतिविधियों से दूर होते चले जा रहे हैं ऐसे समय में बच्चों की कार्यशाला के बारे में सोचा जाना ज़रूरी पहल होगी। आज के समय में हम अलग-अलग क्षेत्र में किस तरह से इसे आयोजित कर पाएं और इस पीढ़ी को रचनात्मकता के इस रस का आस्वाद करा पाएं यही रेखा जी की सच्ची याद होगी।

मिलते हैं अगली कड़ी में …..