लिटिल इप्टा की डायरी

कविता पढ़ते कविता बनाना

बुधवार की शाम यानि 25 जून, 2025 को शाम रोज़ की तरह एक-एक करके बच्चे आना शुरू हुए। सबसे पहले देव आया बाकी बच्चे ट्यूशन गए थे तो थोड़ी देर से पहुंचे। उसे पढ़ने के लिए दी एकलव्य प्रकाशन से प्रकाशित कमला भसीन की लिखी किताब “मितवा”

जब उसने पढ़ ली तो मुझे कहानी के बारे में बताया पर बीच में एक पृष्ठ छूट जाने की वजह से कहानी का सार मुकम्मल नहीं आया। फिर राहुल, अभिनव, श्रवण, काव्या और अभिषेक भी पहुंच गए तो उन्हें पढ़कर सुनाया। इस पठन के दौरान छोटी-छोटी कई बातों पर चर्चा हुई जिस पर लिखना है पर उससे पहले फ़रह अज़ीज़ की कविता पर जिसे पढ़कर सुनाने के बाद बच्चों ने मिलकर ख़ुद कविता रच दी वो भी सिर्फ एक शब्द के मायने समझने में।

फ़रह अज़ीज़ बच्चों के लिए शानदार लिख रहे हैं उनकी छोटे बच्चों के लिए लिखी थोड़ी लंबी कविता डॉ. टिड्डा मज़ेदार है। पहली बार जब पढ़ी तो बच्चों को समझने में दिक्कत हुई पर दोबारा समझाते हुए पढ़ने पर तो उनकी हंसी और उल्लास से शाम गुलज़ार हो गई। वे कविता के अर्थ समझते हुए कल्पना कर-कर के हंस रहे थे। उनकी कल्पना को उस दिशा में ले जाने के लिए एलन शॉ के ग्राफिक ने चार चाँद लगा दिया। किसी लिखे हुए गद्य या पद्य में जब चित्रकार की कूची चलती है, जब ग्राफिक डिज़ाइनर की नज़र से हम पढ़ते हैं तो नहीं समझ पाने का अवकाश नहीं रह जाता और बच्चों के साहित्य में तो उनकी भूमिका बहुत बड़ी होती है। इस भूमिका को यहाँ कविता में अंकित कुछ चित्रों के माध्यम से साझा कर रही हूँ।

बच्चों के साहित्य से रोज़ गुजरना होता है तो लगता है कि अगर बचपन से स्कूली शिक्षा में इनकी उपस्थिति रहे तो हर बच्चा आल्हादित रहेगा और कला के साथ जीने-समझने और बरतने का हुनर सीखेगा। जीवन से जुड़े ढेर सारे तनाव के केंद्र में पसरी प्रतियोगिता से भी बच्चे मुक्त होने की दिशा में बढ़ेंगे और जिस सुन्दर, बेहतर समाज की हम सब कल्पना करते हैं वो धीरे-धीरे आकार लेगा। बहरहाल फिर से लौटते हैं कविता पर।

कविता का सार यह है कि छिपकली का पेट खराब हुआ वो पहुंची डॉ टिड्डा के पास। सुई लगाकर डॉ टिड्डा उसे एक परहेज़ी नुस्ख़ा लिखते हैं उस नुस्ख़े में हर वो कीड़ा-मकोड़ा जो छिपकली खाती है उसका परहेज़ लिखा था। छिपकली परेशान होकर अंत में डॉ टिड्डे को ही फुलौरा बनाकर खा लेती है।

ये कविता बच्चों में हास्य पैदा करने की है पर इस कविता से एक शब्द निकल कर आया “परहेज़ी नुस्ख़ा”।  नुस्ख़ा शब्द भी बच्चे समझ लिए पर परहेज़ से बस उन्हें यही समझ आ रहा था कि पेट खराब होने पर तला-भुना और मसालेदार खाना नहीं चाहिए तो बात यहीं खत्म हो जानी थी पर बस बच्चों को टटोलने और उन्हें समझने के लिए उनसे पूछा कि-

-अच्छे जीवन के लिए तुम लोग एक-एक करके परहेज़ी नुस्ख़ा बताओ।

चुप्पी छा गई।

फिर कहा अच्छे जीवन के लिए क्या परहेज़ करना चाहिए?

अभिनव जो पहली में पढ़ता है उसने कहा कि बांसी खाना नहीं खाना चाहिए। यह सुनकर समझ आया कि कविता के संदर्भ से वे निकले नहीं और मेरा सवाल स्पष्ट नहीं हुआ।

फिर उन्हें कहा कि ख़ुद को अच्छा बनाने के लिए, अच्छा नागरिक बनने के लिए हमें किन चीज़ों, बातों से परहेज़ करना चाहिए?

बच्चों ने कहा परहेज़ तो समझ नहीं आया सो उन्हें बोला जिन बातों या चीज़ों को हमें करना नहीं चाहिए वही परहेज़ होता है। मेरा ये कहना था कि सभी की सुप्त इंद्रियाँ जाग्रत हो गई और बताने की होड़ मच गई कि अच्छे जीवन के लिए परहेज़ी नुस्खा क्या हो सकता है?  

बच्चों ने अच्छे जीवन के लिए जो परहेज़ बताया है वो हम सबके लिए अभ्यास का विषय है। उनके कहे को पढ़ने और याद रखने के लिए एक जगह लिखने की कोशिश की है। 

बच्चों से पूछा दीदी ने

किस-किस से करना परहेज़

किस किस से रखना परहेज़

बोलो बच्चों, बोलो बच्चों

जीवन में किससे परहेज़

दुनिया में किससे परहेज़

बोले बच्चे खट-खट, खट-खट  

बोले बच्चे धारा-प्रवाह

बहती जैसी नदियां कल-कल

गिरते जैसे झरने झर-झर

उड़ती चिड़िया जैसे फर-फर

गिरते जैसे फल टपाक  

वैसे बच्चे बोले धर-धर

धर-धर

धर-धर

धर-धर

धर-धर

छेड़छाड़, गन्दी बोली

बुरा-भला कहने से

गाली से, गुस्से से

बहस, लड़ाई, चिल्लाने से

जवाब लड़ाने, आँख दिखाने

हाथ उठाने, गलत काम से

और करना परहेज़ हमें

दुनिया के

गुस्सैलों से

भाव दिखाने, डांटने से

चिढ़ने और इग्नोर करने से

जवाब देने, मुंह लड़ाने

घमंड से तौबा-तौबा

घमंडियों और बुरी संगत से

रखना है दूरी

करना है परहेज़ हमें

चोरी, चीटिंग, झूठ

और

ज़िद

जलन, चिढ़न, बदतमीज़ी

करती है बर्बाद सदा

देती सज़ा

अगड़-बगड़

 

बिन पूछे सामान लेने  

नहीं पढ़ने की आदत से

कॉपी-किताब फाड़ने से

रखना है परहेज़

बड़-बड़, बड़-बड़  

बड़-बड़, बड़-बड़    

बेफ़िजूल गप्पी बनने से  

वादा ख़िलाफ़ी करने से

और  

सोशल मीडिया के चक्कर से

करना है कुट्टी हमें

रखना है परहेज़

छूतछात और ऊँच-नीच से

गंदगी से रखना है दूरी

 करना है परहेज़ हमें

रखना है परहेज़ हमें  

गुटखा, पान, बीड़ी, सिगरेट

शराब

महुआ

फूलपान

कमला पसन्द, विमल, बाबा

चुटकी और मधु से

ना करना है दोस्ती

ना रहना है साथ

रखना है परहेज़ हमें

रखना है परहेज़   

नोट : जिस कविता का ज़िक्र किया है वो कविता प्लूटो के दिसंबर-जनवरी, 2025 के अंक 5 में प्रकाशित हुई है। कविता में चित्रित ग्राफिक ही आप लोगों से साझा कर रही हूँ ।

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