बाल रंग कार्यशालालिटिल इप्टा की डायरी

कहानियों का जादू और बच्चे

नन्हीं परी का जन्मदिन, चूहे को मिली पेंसिल और अलीबाबा और चालीस चोर  

बच्चों के साथ रोचकता बनाए रखना हमेशा ही चुनौती होती है। बच्चों की ऊर्जा और उत्साह के साथ इस कोशिश में हम उनके साथ से ही कई नई गतिविधियां ढूंढ लेते हैं और उसे इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ते हैं। एक समूह के बच्चों के साथ पढ़ने की प्रक्रिया के बीच अचानक से जब नए बच्चे आते हैं तो फिर उनके हिसाब से पढ़ना और संवाद करना होता है जिससे वे पढ़ने के प्रति अपनी रूचि को आगे ले जा पाएं। लगभग एक-डेढ़ महीने से अभिनव और राहुल आना शुरू किए हैं जो अभी अच्छे से हिन्दी पढ़ नहीं पाते हैं । अगर उनके साथ पढ़ो तो वे कविता-कहानी पढ़ने की इच्छा रखते हैं। अकसर हिन्दी कविता-कहानी से सीखने वाले बच्चों के लिए मेरे अलावा वर्षा,सुजल, दिव्या, सुरभि और नम्रता भी गाहे-बगाहे सहायता करते हैं।

शुरुआती कहानियों में बच्चों की अनगिनत कहानियाँ हैं जिन्हें सुनाकर उस पर बात करते हुए बच्चों की बोलने, अभिव्यक्त करने की झिझक दूर की जाती है। हाल में कुछ छोटी कहानियाँ इनके साथ पढ़ीं जिसमें हुई बातचीत दर्ज़ कर रही हूँ। इसमें हैं नन्ही परी का जन्मदिन, चूहे को मिली पेंसिल और अलीबाबा चालीस चोर।

साभार:सी बी टी प्रकाशन

सबसे पहले पढ़ी सी बी टी प्रकाशन से प्रकाशित जयंती अधिकारी की कहानी “नन्ही पारी का जन्मदिन” इसकी कहानी का सार है कि एक दिया नाम की पाँच वर्ष की बच्ची रहती है जिसे पीला रंग पसंद होता है पीली पोशाक पसंद होती है, पीला रंग पसंदीदा होने की वजह से उसकी खिड़की के नीचे पीली चिड़ियाँ और पीले सूरजमुखी रहते हैं। वो अपने इन पीले दोस्तो से रोज़ बातें करती,अभिवादन करती सुप्रभात करती। माली की अनुपस्थिति में बगीचे का, अपने दोस्तो का ध्यान रखती। जन्मदिन के लिए दिया के दोस्त प्लानिंग कर रहे थे पर साफ़-सफाई के क्रम में दिया के ताऊ जी ने सूरजमुखी के पेड़ को उखाड़कर फिंकवा दिया गया और बस यहीं से दिया की जन्मदिन की खुशी में उदासी में बदल गई। गिलहरियों और चिड़ियाओं ने दिया को मनाने के लिए पूरे शहर में सूरजमुखी का पौधा ढूंढा और सुबह खिड़की में खटखटा कर पौधा उपहार में दिया और इस तरह से नन्ही दिया पौधे मिलने के साथ चहकी और सबको पुकारी, पीली पोशाक पहनकर स्वर्ण परी बन गई और उसके दोस्तो ने यह कविता गाई-

“आज हमारी प्यारी दोस्त का है जन्मदिन

आओ ताली बजाएं, नाचें, गाएं।

पेड़ों को काटने से रोकें हम सब

नए पौधे हम ज़रूर लगाए। “

इस कविता को गाकर सुनाया और फिर कहानी पर बात शुरू हुई। कहानी सुन रहे थे पहली पढ़ने वाले अभिनव, अभिषेक, चौथी के राहुल और पाँचवीं के देव। पोशाक, अभिवादन, सुप्रभात शब्दों के अर्थ समझे। अर्थ समझने के बाद जब दूसरे दिन सुबह स्कूल जाते समय मुलाकात हुई तो राहुल ने पुकार कर सुप्रभात कहा और जब शाम को लायब्रेरी में आया तो फिर सुप्रभात कहा। तब समझ आया कि उन्हें प्रभात का अर्थ बताने की ज़रूरत है सो बताया।

कहानी दिया के जन्मदिन पर है और वो पीली पोशाक बन स्वर्णपरी बनती है तो स्वर्ण का क्या अर्थ होता है तो किसी ने कहा कि कुछ मिल जाना, कोई सुन्दर कहा, किसी ने गहना कहा और एक ने कहा कि कोई मिठाई मिल जाना। हमेशा ही किसी शब्द के अर्थ के बच्चों द्वारा लगाए गए अंदाज़े मज़ेदार होते हैं और हर बार यही सोचती हूँ कि कैसे शब्द की ध्वनि और वाक्य को सुनकर वे अंदाज़ लगाकर अर्थ बताने की कोशिश करते हैं।

अब सभी से पूछा कि बताओ तुम लोगों को किसके जन्मदिन का इंतज़ार रहता है तो राहुल को अपनी दीदी का, अभिनव को अपने जन्मदिन का इंतज़ार रहता है, अभिनव ने जन्मदिन पर बड़ी-बड़ी कड़ाही में खाना बनने की बात बताई। । देव ने कहा कि मेरे जन्मदिन का तो किसी को इंतज़ार नहीं रहता, किसी को फिक्र नही। अपने आसपास और टीवी, फिल्मों में जन्मदिन के सेलीब्रेशन देखकर आज के बच्चों में जन्मदिन के प्रति उम्मीद बढ़ी है। इसके पीछे एक यह भी वजह शामिल है कि सामान्य दिनों में बच्चों के प्रति केयर फ्री परवरिश होती है दिन भर मेहनत में लीन रहने वाले वंचित वर्ग में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खानपान और साफ़-सफाई के लिए भी उनके पास अवकाश नहीं है पर जन्मदिन के बहाने उस दिन ख़ास ट्रीटमेंट और मस्ती से एकरंगी दुनिया में रंग भर जाते हैं और यह सिर्फ जन्मदिन वाले बच्चे के जीवन में ही नहीं बल्कि उस बच्चे के जन्मदिन में शामिल होने वाले अन्य बच्चों में भी झलकता है।

अब आते हैं दूसरी मज़ेदार कहानी “चूहे को मिली पेंसिल“ में। यह चित्रकथा वी सुतेयेव की लिखी जो बच्चों को कल्पना के जरिए यह बताना चाहती है कि प्रत्युत्पन्नमति क्या होती है।

साभार :एकलव्य

एक चूहे को पेंसिल मिलती है और वो उसे कुतर कर अपने दांत पैने बनाने और छोटे करना शुरू करने वाला होता है तो पेंसिल आग्रह करती है कि मुझे आखिरी चित्र बना लेने दो और वो एक गोला बनाती है जिसे चूहा पनीर समझता है, फिर उसके नीचे बड़ा गोला जिसे चूहा सेव समझता है और इस तरह चित्र बनने और समझने के क्रम में पेंसिल बिल्ली का चित्र बनाती है और चूहा उसे देख दौड़कर बिल में घुस जाता है।

साभार: एकलव्य

बच्चों को समझ में आने वाली इस सरल कहानी से परेशानी में विवेक से काम लेना समझ आया। इस कहानी से पहले बच्चे ये नहीं जानते थे कि चूहे सिर्फ पैने करने के लिए ही नहीं बल्कि अपने दांतों को छोटे रखने के लिए भी लगातार कुतरते रहते हैं । चूहों के दांत हमेशा बढ़ते रहते हैं इस जानकारी से वे अनभिज्ञ थे। चित्र में चमचम का आकार पेंसिल बनाती है जब बच्चों से पूछा चमचम जानते हो न तो वे मिठाई जानते तो थे पर नाम नहीं पता था। बच्चों को कोई भी नई छोटी सी चीज से परिचित कराने से लगता है कि इस कहानी को पढ़ने से कुछ तो नई बातें पता चली।

बाल रंग कार्यशाला में रेखा जैन का नाटक “पुस्तक राज“ में बनीं पुस्तकों के चरित्र बनें बच्चों में एक किताब अलीबाबा की भी थी इस चरित्र को निभाया था अभिषेक ने। शरुआती रिहर्सल के समय वो खुल सिमसिम, खुल सिमसिम करता था पर अभ्यास के बाद उसने खुल जा सिमसिम, खुल जा सिमसिम कहना और मज़े से उस चरित्र को निभाया। कार्यशाला की बात आई है तो यह भी उल्लेखित करने की आवश्यकता है कि किताबों के चरित्र में बनीं किताबों की कहानियाँ बच्चे नहीं जानते थे तो अब कार्यशाला के बाद इन चरित्रों पर आधारित कहानियाँ बच्चों के साथ पढ़ रहे हैं।

साभार: मैपल किड्स

जब उन्हें कहे कि चोर तो सिर्फ चोरी करने का ही काम करता है तब बोले अली बाबा के बड़े भाई को लालच नहीं करना चाहिए था। कासिम बदमाश था, चालाक था उसे अपने भाई के साथ चालाकी नहीं करना चाहिए थी। कासिम ने लालच किया तो उसकी सज़ा उसे मिली। जब अलीबाबा खज़ाने में घुसता है और सोने के सिक्कों को एक थैली में भरकर लाता है तो इसके लिए स्वर्ण मुद्रा शब्द का प्रयोग किया और फिर मुद्रा/करेंसी के अर्थ पर बात किए। रुपये, डॉलर, येन मुद्राओं का चलन बताया।

जब यह बताया कि इस पर फिल्म बनीं है तो वे बड़े उत्सुक हो गए कि फिल्म में खुल जा सिमसिम देखना है। जादुई कहानी का असर बच्चों में गजब का पड़ता है। वे त्वरित उपाय वाली चीज़ों के प्रति आकर्षित होते हैं, कैमरे की क्लिक की तरह होने वाली हर बात उन्हें उस अजूबे के प्रति आकर्षित करती है वैसे इस अजूबे और विस्मय के प्रति बड़ों का आकर्षण भी कम नहीं रहता तभी तो कल्पनात्मक फिल्मे यानि फिक्शन श्रेणी की फिल्मों के प्रति पूरी दुनिया में गजब की दीवानगी है और मनुष्य की यही कल्पनात्मकता उसे किस तरह से रचनात्मकता से जोड़ती है जिस पर फिर कभी विस्तार से बात होगी।    

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