लिटिल इप्टा की डायरी

जयंत नार्लीकर

देश के वैज्ञानिको से हमारा परिचय सीमित है यह महसूस हुआ जब हाल की साइकिल पत्रिका में जयंत नार्लीकर का बच्चों को सम्बोधित एक पत्र पढ़ा। उस पत्र में बचपन की दो घटनाओं का ज़िक्र किया है जिसने उनके जीवन को बदल दिया। इन घटनाओं से स्वालम्बन और चुनौतियों से जूझने का सन्देश मिलता है। स्वालम्बन के अर्थ खोलते बच्चे अपने द्वारा किये गए काम को गिनाना शुरू किए कि हम यह कर लेते हैं , वो कर लेते हैं। किस तरह से बच्चे अपने आप को किसी बड़ी हस्ती के ख़ास काम से जोड़ते हुए देखना चाहते हैं या उनसे अपनी समानता ढूंढने की कोशिश करते हैं जो सुनकर अच्छा लगता है।

गूगल करना शुरू किया तो जयंत नार्लीकर पर बच्चों के लिए बनाई फिल्म मुझे नहीं मिली कि साइकिल के पत्र के साथ उनके किए कामों और जीवन से बच्चों को परिचित करा सकूं पर इसी खोजबीन में पता चला कि जयंत नार्लीकर साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखक हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक विज्ञान कथाएं लिखीं और उस पर नेशनल फिल्मस डिवीज़न ने बहुत बढ़िया धारावाहिक ‘ब्रम्हाण्ड’ बनाया है। जो बहुत ही रोचक तरीके से बच्चों को जीवन और विज्ञान से जोड़ता है। हम लोगों ने अभी इसके २ एपिसोड देखे और बहुत कुछ नया जान पाए।

बच्चों को अगर सरल तरीके से पता चले कि

  • सूर्यग्रहण के प्रति अन्धविश्वास
  • नंगी आँखों से सूरज क्यों नहीं देखना चाहिए ?
  • रॉकेट कैसे धरती से अंतरिक्ष में प्रवेश करता है ? इसके लिए कितनी गति की आवश्यकता होती है ?
  • सूर्यग्रहण कैसे होता है ?
  • बाकी ग्रहों में जीवन क्यों नहीं है ?
  • हेली यानी पुच्छल तारा ७६ वर्ष बाद आता है और उसकी पूंछ क्यों होती है ?
  • सौरमंडल में कितने ग्रह हैं ?
  • चन्द्रमा में मानव ने यान चलाया ।
  • आकाश नीला क्यों है ?
  • प्लेनेटोरियम क्या होता है ?
  • सिम्युलेटर क्या होता है ?

इस तरह के सुनने में छोटे पर महत्वपूर्ण सवालों के जवाब धारावाहिक की कहानी में गुंथे हैं। विज्ञान कथाओं से सीखे तथ्य और सत्य बच्चे जीवन भर याद रखेंगे। छोटे-छोटे क्यों और कैसे का जवाब उनकी ज़बान से सुनने मिलता है तो मुस्कराहट तैर जाती है।

साभार – IUCAA LIBRARY YOUTUBE CHANNEL
द क्वेस्ट -जिज्ञासा संकल्पों और आलेख -जयंत विष्णु नारलीकर

जब यह धारावाहिक शुरू किये तो उस दिन कॉमरेड शशि भी मौजूद थे। उन्होंने अपने बचपन का एक किस्सा सुनाया कि सूर्य ग्रहण के बाद स्कूल के मास्टर कांख में धोती दबाकर गंगा नदी जा रहे थे। उनको देखकर स्कूल में पढ़ने वाले बालक शशि हंसी उड़ाए और मज़ाक किए जिसके लिए गाँव में उनसे यानी शशि जी से सवाल-जवाब हुआ तो शशि जी ने कहा कि मास्साब आपने तो स्कूल में बताया था कि सूर्यग्रहण धरती और सूर्य के बीच चन्द्रमा आ जाने से होता और आप ग्रहण के बाद नहाने जा रहे हैं। इस घटना से यह भी समझ आता है कि विज्ञान को जब बतौर विषय पढ़ाया जाए और जीवन अभ्यास में शामिल नहीं किया जाए तो इस तरह के अंध-विश्वास को हम जीवन में अपनाते हैं और इसकी व्यापकता के असर में कोई कमी दिखती नहीं बल्कि आज के समय में अंध-विश्वास, रूढ़ियाँ इस कदर अपनी जड़ फैला चुकी हैं कि इससे होने वाली मानव सभ्यता के वर्तमान और भविष्य पर ग्रहण लगा हुआ है। जाने कब इस ग्रहण की छाया से हम उबरेंगे।

इस तरह की बातचीत धीरे – धीरे ख़ुद से सवाल करने और सोचने की दिशा में आगे ले जाती है। बचपन के स्वयं के अँधा – विश्वास भी बच्चों से साझा करती हूँ जिसमें किसी मुश्किल में ७ गुरुवार , शनिवार या कुछ और रखना। जब क्रिकेट मैच चला रहा होता था तो हाथ जोड़कर भारतीय टीम के लिए सिक्सर और चौक्के के लिए ५ – ७ अगरबत्ती की मन्नत मानना जैसी बातें शामिल हैं। पढ़ने और समझने के बाद इनके और अन्य अंध-विश्वासों के लिए बोलना शुरू हुआ और फिर एक नई यात्रा शुरू हुई।

बच्चों के साथ चर्चा और गपशप के लिए यह कहना माकूल होगा कि जब बात की जाती है तो वो दूर तलक जाती है।

पसंदीदा काम करते बच्चे

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