लिटिल इप्टा की डायरी

ईदगाह

बच्चों का परिचय किसी कहानीकार से कराने का माध्यम सरल-सुलभ है बस ज़रुरत है कि उनकी समझ और रुचि के अनुरूप रचना प्रस्तुत की जाए। जब प्रेमचंद को याद करते हैं तो ढेर सारी कहानियां और उन कहानियों के उपलब्ध नाट्य रूपांतरण याद आते हैं जो सहज उपलब्ध हैं। बच्चों के साथ पढ़ने की प्रक्रिया कभी सुस्त तो कभी तेज़ रहती है। किताबों से इतर मूवी के प्रति बच्चों के रूझान को देखते हुए संतुलन बनाते हुए कभी किताब तो कभी फिल्म के साथ चलना होता है। इस प्रक्रिया में छोटे बच्चों को जो प्रेमचंद को नहीं जानते थे उन्हें कहानी पढ़कर सुनाने से पहले लगा कि एनिमेशन में बनीं फिल्म ‘ईदगाह’ दिखाई और इसी क्रम में सुपरिचित अभिनेत्री सुरेखा सीकरी द्वारा अभिनीत टेलीफिल्म ‘ ईदगाह ‘ भी बच्चों ने देखी।

श्रवण, अभिनव, अभिषेक, सुजल, साहिल, राहुल
सुरभि, गुंजन, नम्रता

ईदगाह देखते हुए बच्चे सिर्फ कहानी देखकर द्रवित ही नहीं हुए बल्कि वे हिन्दुस्तानी संस्कृति के अभिन्न पर्व ईद के बारे में जाने। यह एक तकलीफ़ देने की बात है कि विविधता में जीने वाले हिन्दुस्तान के बच्चे अपने पर्वों के अलावा कोई और पर्व को बस नाम से जानते हैं और पर्व से जुड़ी एकाध बात के अलावा कुछ नहीं जानते। हमारी विविधता की संस्कृति में दरार दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है इसमें हम बड़ों का क्या योगदान है इस पर हम चुप्पी साध लेते हैं। हमने अपनी दुनिया कैसी बना ली है कि हम सिर्फ अपने तक महदूद रह गए हैं। बच्चे सिर्फ यही जानते थे कि ईद मुसलमान लोग मनाते हैं और कुछ बच्चों को ईद में सेवइयों का रिश्ता पता था।

एनिमेशन मूवी और टेलीफिल्म देखकर बच्चे अजान, रमज़ान , रोज़ा , ईद , ईदी, ईदगाह के अलावा कुछ नए शब्द यथा इज़ारबंद के बारे में भी जानें। यहां एक मज़ेदार बात हुई जब इज़ारबंद का ज़िक्र गुलज़ार लिखित, निर्देशित टेलीफिल्म में आया जिसमें संवाद है –

हामिद – सभी तो नए कपडे पहनकर जाएंगे ईदगाह और मैं वही पुराना – फटा पजामा ?

दादी – अरे ! कहाँ फटा है ? दूसरा भी धोकर रख दिया है। दोनों में इज़ारबंद नया डाल दिया है।कुछ तो नया हुआ न ?

बच्चे नहीं जानते थे इज़ारबंद। जब कोई शब्द के अर्थ वे नहीं समझते तो पता नहीं वे क्या अंदाज़ लगाते होंगे, उन्हें फिल्म रोककर जैसे ही बताया कि हामिद की दादी ने उसके पाजामे में नया नाड़ा डाल दिया था तो सभी बच्चे दादी के वाक्य के साथ हामिद के हालात से वाकिफ़ हुए । दादी और हामिद की गरीबी का अंदाज़ हुआ। दादी के घरों में काम करने और किफ़ायत से बचाकर रखे पैसों के बारे में पता चला। हामिद को बस दो पैसे मेले में जाने के लिए मिले और सेवई भी बस जैसे-तैसे दादी ने बनाई थी।

साभार: गोल्डन स्टोरीज़ यूट्यूब चैनल
साभार : प्रसार भर्ती यूट्यूब चैनल

श्रवण ने कहा – वो लोग गरीब थे , हामिद की दादी घरों में काम करके कुछ पैसे बचाई थी। जब हामिद दोस्तो के साथ मेले में गया जहां उसके दोस्त मेले में खा रहे थे तो उसको भी मन हुआ। सब उसे चिढ़ा रहे थे पर वो खाने में खर्च नहीं किया।

हामिद दादी के लिए चिमटा खरीदता है और दोस्तो से कहता है कि चिमटा देखकर सब भागेंगे, ये शेर का गला भी दबा देगा और चूल्हे की आग में भी बिना डरे जाएगा।

कहानी से क्या सीखे, क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए इस पर बच्चों ने बताया कि

हामिद दादी की बात सुनता था तो हमें भी बड़ों का कहना सुनना चाहिए।

लालच बुरी बला है। इसे समझाते हुए बताए कि हामिद को दोस्त ललचा रहे थे कि हम तो खिलौना लिए तुम ये क्या लोहे का चिमटा ले लिए।

हमें किसी को ललचाना नहीं चाहिए।

ज़्यादा पैसे या कम पैसा रहे उससे मतलब नहीं रखना चाहिए,किसी से चिढ़ना नहीं चाहिए और न चिढ़ाना नहीं चाहिए।

राहुल – हामिद के पास चप्पल नहीं थी . हामिद की दादी ने उसे दर्ज़ी के पास अपना नया दुपट्टा लाने के लिए भेजा तो दर्ज़ी से हामिद को नया कुर्ता मिला यानी सरप्राइज़ मिला तो उसे श्रवण ने जोड़ते हुए बताया कि वो ईदी थी।

अभिनव – दादी को चूल्हा जलाने में परेशानी होती थी इसलिए हामिद ने दादी के लिए चिमटा लिया।

एक – दूसरे का ध्यान रखना चाहिए। लालच नहीं करना चाहिए। ऊंच – नीच नहीं करना चाहिए।

नम्रता – इसलिए कहानी अच्छी लगी क्योंकि हामिद ने अपने पर कुछ खर्च नहीं किया , उसे घर की चिंता लगी कि दादी का हाथ जल जाता है तो वो खिलौने की बजाय मेले में चिमटा लेने का सोचा और चिमटा खोज रहा था। अपने बारे में न सोचकर सिर्फ दादी के लिए सोचा। दादी से वो बहुत प्यार करता था।

कहानी में ये बहुत अच्छा लगा कि दादी और हामिद दोनों अपने बारे में न सोचकर एक – दूसरे के बारे में सोचे। कहानी से ये समझ आया कि ज़रुरत की चीज़ें खरीदनी चाहिए।

सुजल – कहानी में ज़्यादा कुछ नहीं है पर मोहसिन और बाकी दोस्त अपने लिए सोचे और मेले में खाए पर हामिद ने यह सोचा कि दादी उसके लिए कितना काम करती है।

दादी के लिए वह चिमटा खरीदता है तो दादी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। इससे यही पता चलता है कि अपने अलावा दूसरों का भी ध्यान रखना चाहिए । मुझे यही अच्छा लगा कि हामिद और दादी एक – दूसरे की चिंता करते थे , प्यार करते थे। हमको जितना भी मिले उन चीज़ों का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

बच्चों को ये समझ आया की हामिद की दादी उसे बहुत प्यार करती थी तो उनसे पूछे कि –

प्यार करना किसको कहते हो जब डांट न पड़े तो वो प्यार कहलाता है ?

बच्चों को अपने बारे में बताया कि जब हम लोग रायगढ़ इप्टा में शाम को जाते थे तो रात साढ़े आठ बजे तक की परमिशन ही घर से मिली हुई थी ज़रा भी देर होने पर बहुत डांट पड़ती थी तो क्या ये मानें हमारे पापा हमें प्यार नहीं करते थे। पिता ऐसा अनुशासन रखने के लिए करते थे। समय का ध्यान रखना ज़रूरी है। इसके मायने यह है कि प्यार करने में कोई समझाता है ,कोई डांटता है, कोई ध्यान देता है।इस बात के बाद पूछा कि अब सोचो कि तुम्हें कौन – कौन प्यार करता है साथ ही यह भी बताओ कि ‘ बच्चों को सब लोग क्यों प्यार करते हैं तो सबसे पहले स्पष्ट जवाब दिया अभिनव ने-

क्योंकि बच्चे मासूम होते हैं।

अब पूछे तुम सभी मासूम हो तो सबके चेहरे में मुस्कराहट तैर गई और असहमति में सर हिलाया।उन्हें यह नहीं पता कि उनकी स्वयं के लिए यही स्वीकारोक्ति ही उनकी मासूमियत का सबूत है।

मासूम का मायना समझाया अभिनव ने

भोलाभाला।

बच्चों को कहा कि पूरी दुनिया बच्चों को प्यार करती है चाहे उन्हें जानें या न जानें। बस प्यार करने के लिए बच्चा होना ही काफी है तो अब अपने बच्चों से ‘ प्यार’ को एक शब्द में समझाने कहा तो

नम्रता ने कहा- मोहब्बत।

अभिनव- जैसे कोई हमको चाहता है हम दूसरे को चाहते हैं। इसी में आगे सोचकर कहा कि जिस बच्चे के मां- बाप नहीं होते इन बच्चों को तो प्यार ही नहीं मिलता होगा।

अभिषेक- प्यार का मतलब प्यार ही होता है।

सुजल – प्यार का मतलब देखभाल होता है।

लक्ष्मी ( नम्रता, श्रवण की मां ) – समझाइश

इसके बाद तो एक शब्द में प्यार के लिए ढेर सारे शब्द आए-

मोहब्बत

गलती करने पर डांटना- समझना

समय से खाना खिलाना

चिंता करना

बच्चों ने प्रेमचंद की कहानी देख ली और उस पर उनके साथ बातचीत भी हो गई। अब बारी थी कि उन्हें प्रेमचंद की तस्वीर दिखाई जाए। जब उन्हें फ्रेम की हुई तस्वीर दिखाई तो तपाक से कहा कि हिन्दी किताब में तो इनकी फोटो देखी है। बच्चे उन्हें तस्वीर देखकर पहचान गए इससे बड़ी खुशी हुई। बातचीत और ईदगाह कहानी का हासिल महसूस हुआ।

बच्चों को टटोलने के लिए उनसे सवाल करना आसान प्रक्रिया लगती है। इस माध्यम से वे खुले दिल से अपनी समझ अभिव्यक्त कर देते हैं और बातचीत के साथ सोचने का अभ्यास भी जारी रहता है।

सवाल था – साहित्य किसे कहते हैं?

नम्रता ने जवाब दिया – पढ़ना, लिखना।

उन्हें बताया कि कहानी, कविता, उपन्यास और यात्रा की याद को लिखना जिसे यात्रा संस्मरण कहते हैं। जैसे कि नम्रता ने अपनी पहली रेल यात्रा की याद हम सबसे साझा की थी और उसे लिखा तो वो यात्रा संस्मरण हुआ। इसके अलावा भी अन्य कई विधा हैं जो लिखा जाता है, रचा जाता है वो साहित्य है। इसके बाद प्रेमचंद के प्रसिद्ध कहे को पढ़ा और समझाने की कोशिश की।

‘ जिस साहित्य में हमारे जीवन की समस्या न हो,हमारी आत्मा को स्पर्श करने की शक्ति न हो, केवल भाषा चातुरी दिखाने के लिए रचा गया हो वह निर्जीव साहित्य है। साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वह पथ प्रदर्शक होता है, वह हमारे मनुष्यत्व को जगाता है। हमारे सद्भावों का संचार करता है। हमारी दृष्टि को व्यापक बनाता है। जिसे अन्याय देखकर क्रोध नहीं आता वह यही नहीं कि कलाकार नहीं है बल्कि मनुष्य भी नहीं है।’

प्रगतिशील लेखक संघ , इंदौर से प्राप्त अनमोल उपहार

One thought on “ईदगाह

  • प्रेम प्रकाश

    बहुत ही अच्छा प्रयास। बच्चों को साहित्य से जोड़ने का अनुपम कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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