याद ए पुरखे

हमारे पुरखे प्रेमचंद

जब भी हम शिक्षा पर बात करते हैं तो इसमें समाहित संस्कृति पर विशेष ध्यान रखे जाने की आवश्यकता होती है क्योंकि स्कूली शिक्षा के दौरान हम सिर्फ एक बच्चे को शिक्षित ही नहीं कर रहे बल्कि उन्हें सुसंस्कृत बनाने की भी ज़िम्मेदारी होती है जिससे वे इंसानियत और न्याय के लिए एक सजग नागरिक बन सकें और इसके लिए किताबी ज्ञान के साथ स्कूली जीवन में सांस्कृतिक गतिविधियों का ख़ास महत्व है।

सांस्कृतिक माध्यम यथा गीत – कविता गान , नाटक , नृत्य के माध्यम से कालजयी साहित्य की प्रस्तुति का ख़ासा महत्व है क्योंकि यह प्रक्रिया सामूहिक होती है। इसमें प्रतिभागी तैयारी के दौरान एक प्रक्रिया से गुज़रते हैं और रचना को गहराई से समझ पाते हैं और जब नाट्य प्रस्तुति होती है तो बतौर दर्शक बनें छात्र – छात्रा के बीच रचना सहज ही सम्प्रेषित होती है। इसकी पूरी संभावना होती है कि नाट्य प्रस्तुति के बाद बच्चों के बीच में कुछ के बीच इन नाटकों पर बातचीत होती होगी।

किसी पात्र के अभिनय को लेकर चर्चा होती होगी और संभावना है कि कुछ लोगों को उनके द्वारा अभिनीत चरित्रों के नाम से पुकारा भी जाता होगा।

अभिनीत चरित्र को जीते हुए किशोर छात्र-छात्रा में परिवर्तन से इंकार नहीं किया जा सकता।

ये परिवर्तन सदैव मुखर हो यह ज़रूरी नहीं पर मन में अंकित प्रभाव इन्हें जीवन भर जीवन – मूल्यों के प्रति सजग रहने की दस्तक देंगे

परिवर्तन को निबाह करने की कश्मक़श में बतौर इंसान बनने की राह आसान होगी,सही-ग़लत के निर्णय की समझ पुख़्ता होगी।

असल में यह पूरी प्रक्रिया इतनी सूक्ष्म स्तर पर काम करती है जिसके असर और स्मृति को कोई भी जीवन भर भूल नहीं पाता है और अप्रत्यक्ष रूप से यह हमारे मानस को बनाने और परिवर्तन के लिए आगे बढ़ने की ज़मीन तैयार कर रही जाती है इसीलिए संस्कृति कर्म की ज़िम्मेदारी हमेशा से बड़ी रही है।

इस वर्ष ३१ जुलाई ,२०२५ को सेंट मेरीज़ इंग्लिश हाई स्कूल में प्रेमचंद जयन्ती में जमशेदपुर इप्टा को शामिल होने का मौक़ा मिला। पिछले दो वर्षों से बच्चों के बीच प्रेमचंद की कालजयी कहानियों के मंचन के माध्यम से बच्चों का साक्षात्कार करा रहे हैं। तीसरे वर्ष में प्रेमचंद जयंती के इस भव्य आयोजन का अनुभव शानदार रहा। जब भी हम अपने पुरखों को याद करते हैं जिनके जीवन – मूल्यों से हम कहीं न कहीं संचालित हैं और उस याद में बच्चे और युवा शामिल न हो तो इस दिशा में गंभीरता से सोचे जाने की आवश्यकता है। बहरहाल सेंट मेरीज़ इंग्लिश मीडियम स्कूल में इस तरह के आयोजन के पीछे उस स्कूल के प्राचार्य से लेकर इस आयोजन की संकल्पना में शामिल तमाम शिक्षक-शिक्षिकाओं की दूरदर्शिता दिखाई देती है जिसका परिणाम है प्रेमचंद जयंती। इस आयोजन में स्कूल चार समूहों के बीच प्रेमचन्द की कहानी पर आधारित नाट्य प्रस्तुतियों के बीच प्रतिस्पर्धा करवाता है जिसमें हमारे आग्रह पर बतौर निर्णायक कहानीकार, पत्रकार कृपाशंकर और राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्नातक बहुमखी प्रतिभा की धनी सुमन पुरती शामिल हुए।

कार्यक्रम की शुरुआत में डीप प्रज्वलन करते जमशेदपुर इप्टा के अध्यक्ष अहमद बद्र,प्राचार्य फादर वरनन डि’सूजा उप प्राचार्य फादर और कृपाशंकर जी
साथी सुमन पुरती दीप प्रज्वलित करते
बच्चों से भरा ऑडिटोरियम
प्राचार्य फादर वरनन डि’सूजा के साथ प्रेमचंद जयंती के संयोजक अशोक जी

इस आयोजन में जमशेदपुर इप्टा शामिल हुआ जिसमें लिटिल इप्टा की टीम ने बच्चों के सामने एक गीत रमेश तैलंग का गीत ‘जब कभी हम अंधेरो के घर जाएंगे’ नम्रता, श्रवण, अभिनव, राहुल, गुंजन, साहिल, काव्या और सुरभि ने प्रस्तुत किया और प्रेमचंद की कहानी ‘बाबाजी का भोग’ की प्रस्तुति सुजल ने की।

बाबाजी के भोग में सुजल
समूह गीत की प्रस्तुति करते लिटिल इप्टा के साथी

इसके बाद स्कूली बच्चों के चार समूहों ने प्रेमचंद की ४ अलग-अलग कहानियों की नाट्य प्रस्तुति से दिल छू लिया। यर कहानियां थी – रामलीला, नमक का दारोगा, पूस की रात,सवा सेर गेंहूं। सभी प्रस्तुतियों में बच्चों की मेहनत झलक रही थी। प्रस्तुति के स्तर पर आंकने के पैमाने कई हो सकते हैं पर बच्चों द्वारा बच्चों के लिए इन प्रस्तुतियों के महत्त्व से इंकार नहीं किया जा सकता। पूरे स्कूल और शिक्षक – शिक्षिका की ऑडिटोरियम में उपस्थिति ने एक अलग ही समां बांधा । यहां के आयोजन की एक और ख़ास विशेषता रही कि हर नाट्य प्रस्तुति के बाद प्रेमचंद से जुड़े सवाल पूछे जा रहे थे और दर्शकों में से जो छात्र – छात्रा जवाब दे रहे थे उन्हें प्रोत्साहन के लिए उपहार भी दिए गए। इस माध्यम से बच्चे प्रेमचंद के जीवन, रचनाकर्म और उनसे जुड़ी अन्य जानकारियों से समृद्ध हुए। अब सबसे पहले पूस की रात कहानी के मंचन पर संक्षिप्त टिप्पणी –

पूस की रात कहानी के नाटक में मंच सज्जा में कलाकारों ने बहुत मेहनत की थी। स्टेज क्राफ्ट से नाटक की प्रस्तुति को चार चाँद लगता है तो इसके क्राफ्ट ने यह काम किया । हल्कू और उसकी पत्नी का अभिनय सहज और प्रभावी लगा। वे दोनों मंच में इस तरह अपने चरित्र में डूबे थे कि चरित्र को अपने में एकाकार कर लिया था। डूबकर अभिनय करने की कला में माहिर लगे। यह रेखांकित करने की आवश्यकता है कि हल्कू का चरित्र एक किशोरी ने अभिनीत किया और कहीं भी हल्कू से अन्य चरित्र का अंदाज़ा भी नहीं हुआ जब तक कि पात्र परिचय में उसे एक किशोरी के रूप में परिचित नहीं कराया गया।

पूस की रात में हल्कू और झबरा
पूस की रात में हल्कू की स्त्री

सभी कहानियों का नाट्य रूपांतरण पहले अलग – अलग लोगों द्वारा देखा था पर रामलीला कहानी का मंचन पहली बार देखा तो इस कहानी पर टिप्पणी ज़रूरी लगी। एक ज़रूरी कहानी जिसका पाठ किया जाना चाहिए।

रामलीला कहानी का एक दृश्य

रामलीला प्रेमचंद की उन कहानियों में से एक है जो समाज की उन सच्चाइयों को उजागर करती है जिसमें समाया हुआ है व्यक्ति का दो चेहरा। कहने के लिए कुछ और और करने के लिए कुछ और। मूल्यों का ह्रास समाज में हमेशा से रहा है जिसमें समय के साथ उसका रूप बदलता है पर प्रकृति नहीं ।

नाम से ही उजागर है कि रामलीला। जिसमें गाँव में आने वाले रामलीला के कलाकार की छोटी सी टोली है जो गाँव में रामलीला के लिए आमंत्रित किये जाते हैं। पूरे गाँव में उत्सव का माहौल है, लोग रामलीला देखते हैं। प्रेमचंद इस रामलीला के बहाने उन चेहरों और प्रवृत्तियों को बेनकाब करते हैं जो रामलीला प्रस्तुत करने के पूर्व और उसके बाद उस टोली के साथ की जाती है। एक बच्चा जो अब वयस्क हो चुका है उसके माध्यम से पूरी कहानी कही गई है जिसके मन पर पड़ने वाले असर से समाज, परिवार बेख़बर है।

गाँव के चौधरी साहब ने रामलीला बुलाई है। जिसमें राम, लक्ष्मण और सीता बनें कलाकार लड़के गाँव के बच्चे के लिए कौतुक और श्रद्धा की वजह बनते हैं। उनके साज – श्रृंगार और उनकी आवश्यकताओं के आगे-पीछे घूमने वाले इस बच्चे के मन में इन कलाकार बनें भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा का दर्शन इस कहानी के माध्यम से होता है। रामलीला के साथ ही नाचने वाली स्त्रियों का दल भी गाँव में पहुंचता है और उनके बहाने चौधरी साहब रामलीला में खर्च हुई भरपाई को वसूल लें। आबादीजान और चौधरी के बीच इस संधि के साथ नृत्य शुरू होता है और बच्चा अपने पिता का दूसरा चेहरा देखता है जिससे उसके कोमल मन में ऐसा दाग बनता है जो जीवन भर रह जाता है। रामलीला समाप्त होने के बाद भगवान बनें कलाकारों की सूखी विदाई की बात पता चलने से बच्चे को गाँव के चौधरी साहब, पिता और अन्य बड़ों का कपट,चालाकी और दोगलापन उजागर हो जाता है।

रामलीला कहानी का दृश्य

कहानी में और भी दृश्य हैं जिसके माध्यम से आप समझ पाएंगे कि किस तरह से प्रेमचंद ने कला के प्रति पैसे वालो का संकुचित मापदंड दिखाया है। ये कहानी जिस दौर में लिखी गई थी उस दौर को आप अनुभव कर सकते हैं पर आज भी सच्चाई बदली नहीं है। कला के प्रति उदासीनता और बेदर्द व्यवहार समाज में व्याप्त है। इसकी परतें महीन और कई स्तरों पर व्याप्त हैं जिनका अनुभव हम गाहे – बगाहे महसूस करते हैं और देखते – पढ़ते रहते हैं।

रामलीला कहाने के मंचन के बाद पात्र परिचय के दौरान की छवि
कहानी नमक का दरोगा के नाट्य मंचन की छवि

सवा सेर गेंहूं कहानी के मंचन का दृश्य में चरित्र शंकर

One thought on “हमारे पुरखे प्रेमचंद

  • मिथिलेश सिंह

    बेहतरीन रिपोर्टिंग

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