याद ए पुरखे

गांधी यानी कथन और करनी में फ़र्क नहीं

लोकतंत्र और धर्म-निरपेक्षता के खतरे के मुहाने में खड़े देश में जन-पक्षधर समाज सिकुड़ता चला जा रहा है इन खतरों से लड़ने के लिए आज तमाम प्रगतिशील तबका साथ खड़े होने की ज़रुरत समझ चुका है और उन सब अवसरों पर जिसमें वे दख़ल दे पाएं वे सभी साथ खड़े हैं। समता और समानता ,न्याय और बंधुत्व के मूल्यों पर प्रतिरोध दर्ज़ करने की आवाज़ें ही समाज के ज़िंदा होने का सबूत है। विघटित समाज और साम्प्रदायिक होती दुनिया में मूल्यों की लाठी ही सबसे बड़ा हथियार है जिसकी आवाज़ सुनीं जाती है दमन करती, विभाजनकारी नीतियों पर काम करती सरकार द्वारा जो मुट्ठी भर लोगों से डरती है जो मानवता और न्याय का परचम थामे आगे बढ़ रहे हैं। आज़ादी के दीवानों में गांधी जी सत्य,अहिंसा,करुणा,त्याग,तपस्या जैसे मूल्यों को जीते हुए हमें इन मूल्यों की राह और रौशनी दिखाते हैं जिसकी बदौलत हम उन्हें याद कर रहे हैं और जीवन भर थोड़ा – थोड़ा जीने के अभ्यास में शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

एक ऐसे समय में जीने के लिए हम अभिशप्त हैं जब सत्य की राह पर चलना खतरे से खाली नहीं तब गांधी को याद करना, पढ़ना ज़रूरी है। इस ज़रुरत को हम किस तरह और व्यापक बनाएं इसकी कोशिश की जानी हम सबकी ज़िम्मेदारी है। आज गांधी जयंती पर ढाई आखर प्रेम, सर्वोदय मंडल,ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन और भारतीय जननाट्य संघ,जमशेदपुर ने मिलकर मानगो के गांधी मैदान में गांधी जयन्ती मनाई। इस अवसर पर अलग – अलग संस्था,संगठन के साथी उपस्थित हुए, गांधी जी पर माल्यार्पण और पुष्प अर्पित करने के बाद लिटिल इप्टा के बच्चों ने दो गीत- ‘सुनो कहानी बापू की ‘ और वो जो गरीबों के लिए खड़ा है ‘ प्रस्तुत कर श्रद्धांजलि अर्पित की।

यहां एक बात उल्लेखित करनी होगी कि आज हम ऐसे समय में जी रहे हैं जब सुबह से किसी ने भी गांधी जी को याद करके गांधी जी की प्रतिमा में पुष्प अर्पित नहीं किए थे। हालांकि मानगो नगर निगम के सफाई कर्मचारियों ने आसपास साफ़ – सफाई की थी। यह स्थिति उलट जाती अगर सरकारी कामकाज में यह आदेश आ जाता कि सभी को श्रद्धांजलि के लिए उपस्थित होना है। बहहाल गांधी जी को श्रद्धा सुमन सबसे पहले अर्पित करने के बाद राष्ट्रपिता गांधी मध्य विद्यालय में बैठकर उपस्थित साथियों ने गांधी जी को याद किया –

नगर निगम के कर्मचारियों के साथ

अहमद बद्र – उपरोक्त फोटो में लिखित पोस्टर को याद करते हुए कहना आवश्यक है कि स्वच्छता का अर्थ सिर्फ झाड़ू देना नहीं है। गांधी जी के लिखे को पढ़ने के बाद समझ आता है कि

स्वयं को अंदर से साफ़ रखना ही असल स्वच्छता है।

बाहर से तो सभी स्वयं को साफ़-सुथरा रखते हैं लेकिन साफ़ होने के बाद भी आदमी गंदा रहता है वो गन्दगी कैसे दूर होगी इसके लिए उन्होंने कई किताबें लिखी हैं.स्वयं पर किये प्रयोग पर लिखी पुस्तक ‘सत्य के प्रयोग ‘ पढ़ी जानी चाहिए। गांधी जी का यह सन्देश कि स्वच्छता है क्या और यह कैसे आएगी इस पर ध्यान देना आवश्यक है। आमतौर पर हम सभी मान लेते हैं कि यह बदलाव नहीं हो सकता , सब कुछ बुरा है पर सबसे पहले यह सोचा जाना चाहिए कि

सबको छोड़कर सबसे पहले सिर्फ स्वयं को साफ़ रखने की कोशिश (अंदरूनी और बाहरी ) लगातार करनी चाहिए, गांधी जी के इस सन्देश को साथ रखने और जीने से बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।

अहिंसा हिंसा से ज़्यादा मुश्किल है।

अहिंसा आसान काम नहीं है। हम किसी को मार सकते हैं,जवाब दे सकते हैं पर मार नहीं रहे हैं भले ही हमारे अंदर क्षमता है कि किसी की बात का जवाब थप्पड़ देकर दे दें और पलटकर जवाब दे दें पर जब पलटकर हम ये सब नहीं कर रहे तो किसी भी बात को बर्दाश्त करने के लिए हमें ज़्यादा ऊर्जा और ताकत चाहिए। इसका सबूत है फ़्रंटियर गांधी का इलाका ‘फ़्रंटियर’ जो कि पाकिस्तान में है। उस इलाके में घर – घर में बन्दूक-असलहे, गोलियां बनती है। जैसे यहां छड़ी या लाठी लेकर लोग चलते हैं वैसे वहाँ लोग बन्दूक लेकर चलते हैं और बात – बात पर बन्दूक चल जाती है। उस इलाके के लाखों लोग जब खां अब्दुल गफ़्फ़ार खां के अहिंसावादी आंदोलन के दौरान अहिंसक हो गए तो वे कद-काठी से लम्बे – चौड़े इंसान लाठी खाते रहे पर उनमें से एक ने पलटकर हाथ नहीं उठाया यानी अहिंसक होने के लिए बहुत ताकत लगती है।

विक्रम कुमार झा – शुरुआती दौर से सामान्य छात्र रहा और गांधी जी को न तो पढ़ा था और न जानते थे। आज के समय में युवा प्रचलित बातों को देखसुनकर अपनी धारणा बना लेते हैं उसी तरह से मेरी भी धारणा थी। इसके बाद आशुतोष सर , सुखचन्द झा ,अरविंद अंजुम से मिलने के बाद कुछ पढ़ने की चाहत पैदा हुई। गांधी जी को जितना पढ़ पाए उसमें यह समझ आया है कि

गांधी जी का नाम और काम बड़ी क्रान्ति है, सामाजिक परिवर्तन का पर्याय हैं गांधी जी।

१० वर्ष की उम्र से नुक्कड़ नाटक के जरिये सामजिक समस्याओं पर बातचीत करते हुए जागरूक स्वयं को जागरूक किया , जब गांधी जी को जानें तो समझ आया कि वे कई सामाजिक परिवर्तन के केंद्र में हैं। जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है अहिंसा।अहिंसात्मक तरीके से लड़ाई लड़कर अपने लोगों के लिए अधिकारों को लेने की सीख मिलती है। मेरे अपने जीवन में गांधी जी के विचारों से परिवर्तन आया। अहिंसात्मक तरीके से बात रखना और सच को प्रस्ततु करना सीखे।

अंकुर – मुझे यह समझ आता है कि गांधी जी ने जीवन में बहुत सारे काम किए, मूल्य जिए पर क्या हम उनके किए कामों और मूल्यों में से एक को भी हम अपने जीवन के अभ्यास में शामिल कर पा रहे हैं , यह सवाल स्वयं से पूछा जाना बहुत महत्त्वपूर्ण है। अगर हम गांधी जी के मूल्यों को जीने की कोशिश नहीं कर रहे तो हमें अपने जीवन में दिक्कत पेश आती है और ऐसे समय में यह सवाल भी आता है कि गांधी को क्यों मानें , गांधी को मानने वाला कौन है। यही वह बिंदु है जहां से हमें समझना पडेगा कि गांधी के एक मूल्य को मानकर , जीकर तो देखें और तब समझ आएगा कि उन्होंने जीवन में क्या जिया और देश – दुनिया के लिए कितना कंट्रीब्यूट किया इसीलिए लगातार गांधी जी के मूल्यों को जीने की कोशिश करता रहता हूँ।

गांधी जी के तमाम मूल्य समाज और प्रकृति से जुड़े हुए हैं, संविधान से जुड़े हैं और लोगों से जुड़े हुए हैं। मेरे अपने जीवन में उनके बताये मूल्य अनमोल हैं।

विक्रम – जब हम गांधी को याद करते हैं तो सबसे पहले छवि बनती है , ख़्याल आता है सत्य और अहिंसा का। सत्य और अहिंसा के पुजारी हैं गांधी जी। लेकिन जब आज हम अपने आसपास देख रहे हैं , देश – दुनिया में देख रहे हैं तो महसूस होता है कि

सत्य बहुत पीछे रह गया है , आज हिंसा इतनी बढ़ गई है। आज के समय में जो बढ़-चढ़ कर गांधी को याद कर रहे हैं वही सबसे बड़े हिंसावादी हो गए हैं। अहिंसा को हिंसा में बदल दिया है।

गांधी जी का मानना रहा कि असल हिन्दुस्तान गाँवों में बसता है और चूंकि हम राजनीतिक कार्यकर्ता हैं तो हमें गाँव की तरफ भी रूख करना चाहिए और समाज के हालात में बदलाव के लिए गाँवों के साथ चलना और वहां जाना ज़रूरी है।

किसी संस्था और संगठन करने वाले लोगों को पता है कि एक – एक लोग को जोड़ने के लिए कितना लंबा समय लगता है पर एक पतला – दुबला सा आदमी , हाड़मांस वाला आदमी यानि गांधी जी ने पूरे देश को अपने साथ जोड़ लिया यह हम सबके लिए प्रेरणा है। आख़िर कुछ तो ऐसी खूबी है उनमें जिसकी पड़ताल हर एक को करने – समझने की ज़रुरत है। आज के समय में जैसा देश और दुनिया का हाल जिसमें हिंसा और विचारो पर जिसे तरह से हमले हो रहे हैं ऐसे समय में हमें गांधी जी को याद करने और नाम लेने की ज़रुरत है।

नीलेश – गांधी जी के सत्य के प्रयोग और हिन्द स्वराज पढ़ी है। गांधी जी की बातों से आज के समय के युवा इत्तेफ़ाक़ नहीं रख रहे हैं। आज का समय गांधी जी से आगे बढ़ गया है पर उनकी एक ख़ासियत हम सबको सीखने की आवश्यकता है और मुझे विशेष पसंद है कि

गांधी जी ने कभी रूकना नहीं सीखा। कितनी भी समस्या क्यों न हो उन्होंने अपने कदम नहीं रोके। कुछ तो शुरू कर देते हैं यह ख़्याल कर वे पूरे जीवन कुछ न कुछ करते रहे।सत्य के साथ चलते कड़ी जुड़ती गई और इस तरह से उनका कारवां बनाता चला गया। इस यात्रा में उन्हें लोग मिले , संसाधन मिले और वे चलते रहे।

गांधी जी मैंने यह सीखा है कि बस आगे बढ़ो। छोटे – छोटे कदम लेकर आगे बढ़ो , बहुत कुछ न भी हो पर कुछ न कुछ हो जाए।

सुजल – मैंने गांधी जी को अभी ज़्यादा तो नहीं पढ़ा है पर जो पढ़ा है पर उससे यही समझ आया कि

गांधी जी बचपन से ही ग़ैर-बराबरी यानि असमानता को दूर करने की कोशिश की।

जैसे कि बचपन में उनके यहाँ एक दलित बच्चा औखा काम करता था। गांधी जी की मां पुतली बाई उन्हें हमेशा उससे दूर रहने के लिए कहा करती थी। जब वे औखा को कुछ खाने देते तो वो नहीं लेता और खाता था तो इससे धीरे – धीरे उन्हें समाज की बुराइयों के बारे में पता चला। गांधी जी की शादी १३ वर्ष की आयु में हो गई थी। वे बाद में देश भर में घूमे तो उन्हें देश के बारे में पता चला इस यात्रा में उन्होंने बहुत से साथी जोड़े और कई आंदोलन किए जिसकी बुनियाद रही अहिंसा। गांधी जी हिंसा इसलिए नहीं करना चाहते थे क्योंकि इससे लड़ाई – झगड़ा होता है और इस वजह से वे अहिंसा से लड़ाई लड़े। सत्याग्रह उनका ऐसा उपाय रहा जिसके दम पर अंग्रेज़ों को देश से भगा सकें क्योंकि उस दौरान अँगरेज़ हमारे ऊपर शासन कर रहे थे और भारतीयों का शोषण कर रहे थे। सत्य के प्रयोग किताब लिखी जिसमें सत्य के साथ प्रयोग लिखा है।

बचपन में गांधी जी ने अपने पिता से एक बार झूठ कहा था तो उन्होंने माफ़ीनामा लिखा जिसे पढ़कर वे दोनों रोइ थे और उस घटना के बाद उन्होंने झूठ नहीं बोला, उस दिन ठान लिया था कि सच बोलना है और सत्य की राह पर चलना है।

वर्षा – गांधी जी की एक बात मुझे बहुत प्रिय है और वो है कि गांधी जी ख़ुद से लोगों को जोड़ते हैं और ख़ुद उनसे जुड़ते हैं।

जैसे कि उन्होंने सत्याग्रह किया। आज के समय में देखे तो हम लोगों की जनरेशन एक-दूसरे से अटैचमेंट नहीं रखते, जुड़ते नहीं, आज के समय में वैसा संवाद नहीं है जैसा कि पहले होता था। गांधी जी से एक सीख मिलती है कि

आप कैसे दूसरों से संवाद करें, कैसे उनको अपने आप से जोड़ें ,कैसे प्रेम का भाव – मित्रता का भाव हो ,कैसे हम सत्य की राह पर चलें।

सैयद अहमद शमीम मदनी – जिस वक़्त गांधी जी मौज़ूद थे उस वक़्त के हालात ये थे कि पूरा मुल्क ५६० रियासतों में बनता हुआ था, लगभग ३६ करोड़ जनता को उस समय जोड़ना था,मुल्क़ को जोड़ना था। हर आदमी को चाहिए था – खाना ,कपड़ा, छत,तालीम,रोज़गार,सेहत और सुरक्षा। ये सात चीज़ें हर आदमी को चाहिएं। गांधी जी चाहते थे कि ये तमाम चीज़ें हर नागरिक को मिलनी चाहिए।

जंग और हिंसा कब होती है जब दूसरे का हक़ छीनकर अपना हक़ लिया जाए। जो अभी पूरे हिन्दुस्तान में हो रहा है। दूसरों को दबा के , उनका हक़ मार के ख़ुद का हक़ ले लेना। गांधी जी इसके ख़िलाफ़ थे और जब तक ये बात रही कभी भी एकता नहीं रहेगी । बराबर झगड़े रहेंगे , हिंसा – हिंसा हम चीखते रहेंगे कोई उस पर अमल नहीं करेगा।

शशि कुमार – गांधी जी पर बस एक बात कहना चाहते हैं –

गांधी जी की कथनी और करनी में अंतर नहीं था। उन्होंने कहा कि मेनचेस्टर का कपड़ा नहीं पहनेंगे तो खुद सूत काटकर कपड़ा पहनें। यह नहीं कि नारा स्वदेशी का दिया और जर्मन का चश्मा पहन रहे हैं। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं है जबकि आज जो फर्क पड़ा है कि कथनी और करनी में अंतर है। हम सभी को कोशिश करना चाहिए और हम उनके जैसे महान भी नहीं है पर कोशिश करनी चाहिए कि कथनी और करनी में अंतर न करें, कम करें।

गांधी जी अहिंसावादी हैं बस एक बात यह जोड़नी है कि

बुद्ध के बाद पूरे देश में इतना बड़ा लीडर कोई नहीं हुआ। बुद्ध उस ज़माने में प्रसिद्द हुए जब आने – जाने के साधन नहीं थे। उनके पास थी पहली वाणी और दूसरा चरित्र। गांधी के साथ भी यही था कि वाणी और चरित्र था। जो सत्य -अहिंसा का चरित्र था वो गांधी का चरित्र था इसलिए गांधी को याद करने का मतलब कथनी और करनी में अंतर को समाप्त करना।

सुखचंद झा – गांधी का महत्त्व १९१५ से बढ़ता है और बढ़ते-बढ़ते १९३८ में एक ऊंचाई पर पहुँच जाता है। आज़ादी के बाद हम लोगों ने गांधी को अब फोटो में खड़ा कर दिया है।

जयंती मनाना अब एक परम्परा बन गई है , कुछ लोग काम भी कर रहे हैं पर आज गांधी का दर्शन गांधीवाद अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है।

अंग्रेज़ से भी बुरी स्थिति आज की है,अंग्रेज़ विभिन्न धर्मों के लोगों को आपस में लड़ाते थे लेकिन ख़ुद किसी धर्म पर प्रहार नहीं करते थे। अंग्रेजों ने मुसलमानों को हिन्दुओं से लड़ाया, मुसलमानों को सिखों से लड़ाया लेकिन अपनी ताकत से कभी भी किसी समुदाय पर प्रहार नहीं किया। वैसी स्थिति आज है क्या ?

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लोग कहते हैं धर्म-निरपेक्षता संविधान की देन है पर धर्म – निरपेक्षता हिन्दुस्तान की देन है। यही एक ऐसा देश है जहां मुल्क के तमाम धर्मों के लोग रहते हैं। आपस में मतभेद रहता है पर सब साथ रहते हैं पर आज हम सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे हैं।

गांधी के महत्त्व को कायम रखना है या स्वच्छता में सिमटकर रखना है ये हम लोगों पर निर्भर करता है। हम यह नहीं कहेंगे कि जो नफ़रत की खाई खोदी जा रही है , भाईचारा खत्म किया जा रहा है उसके लिए हम लोग कुछ भी कर सकते हैं तो ज़रूर करें।

अब बहुत डर लिए। डरने की बात पर हिटलर का सन्दर्भ ज़रूरी है। हिटलर ने एक पार्टी बनाई थी जिसका उद्देश्य था विपक्षियों के धरने-आंदोलन और गतिविधियों को ध्वस्त करना। पार्टी का यही काम था कि वह विपक्ष में जाकर हंगामा करते और मीटिंग खत्म हो जाती थी। जब देखा कि विपक्ष नेस्तनाबूद हो गया है तब हिटलर ने अपनी बनाई इस पार्टी के नेताओं को मारना शुरू किया क्योंकिइनके ज़िंदा रहने पर तो हिटलर की पोल खुल जाएगी और धीरे-धीरे पार्टी का अस्तित्व समाप्त हो गया। अगर ऐसी स्थिति इस देश में आती है तो देश का क्या हाल होगा कहना मुश्किल है। इतनी निराशा और अंधकारमय समय के बारे में संभावना व्यक्त करना भी ठीक नहीं है लेकिन गांधी के लिए और उनके मूल्यों के लिए हम लोग जो कर सकते हैं उसे करना चाहिए । गांधी का रास्ता सिर्फ गांधी का ही रास्ता नहीं है वो मार्क्स का भी रास्ता है।

नौशाद रज़िया – आज के समय में गांधी के लिए कहना बड़ी कठिन चीज़ हो गई है कि हम फिर से गांधी को वापिस लाएं ये बात आज़ादी से भी ज़्यादा मुश्किल बात है। लेकिन गांधी को समझने के लिए युवाओं को अंग्रेज़ों की लिखी किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ (रात के बारह बजे ) पढ़ना चाहिए। उस किताब को पढ़ने के बाद समझ आएगा कि उन्हें महात्मा क्यों कहा गया।

आज़ादी के लिए तो बहुत से लोग लड़ाई लड़े , बहुत से क्रांतिकारी भी शामिल रहे पर वे महात्मा क्यों कहलाए ये हमारे युवा वर्ग को जानना बहुत ज़रूरी है।

दूसरी बात यह मत्वपूर्ण है वो हमारी पाठ्यपुस्तकों में भी है कि पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव हमारी संस्कृति पर पड़ चुका है इस पर गांधी जी का कहना था कि हम अपनी नींव को बिना हिलाए बदलाव को महसूस करें ,जहां हमें यह लगता है कि बदलाव की ज़रुरत लगती है और इस बदलाव से मेरी नींव में को कोई नुकसान नहीं है तो वहाँ पर हम उस बदलाव को अपने में लाएं।

लेकिन आज के सन्दर्भ में पाश्चात्य संस्कृति बाज़ार,समाज,घरों में,बच्चों में हावी हो गई है इस बदलाव पर चिंतन किए बगैर उसे आत्मसात कर लिया है। महात्मा गांधी के सत्य के प्रयोग पर जितने काम किए वो किसी से छुपे हुए नहीं है। हम उन्हें कितना फॉलो कर रहे हैं अपनी ज़िंदगी में अपना रहे हैं। कुछ तो हम समाज से डरे रहते हैं , कुछ परिवार से डरे रहते हैं और कुछ लोग चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पाते हैं आगे आने की। बहुत सारे लोग ऐसे हैं जो यह कहते हैं कि हम आपकी बात का समर्थन करते हैं लेकिन आगे आने की बात पर वे चुप लगा जाएंगे, पीछे हो जाएंगे।

इस आयोजन में गांधी को याद करने अल -हिरा लायब्रेरी के शहनवाज़ , साझा नागरिक मंच के तोहिद्दुल हसन, कॉमरेड हुसैन अंसारी, गोविन्द विद्यालय की नौशाद रज़िया, लिटिल इप्टा के साथी श्रवण ,दिव्या,सुरभि भी शामिल रहे।

आज सुबह से ही बारिश की झड़ी लगी हुई थी। गांधी मैदान के साथ ढाई आखर प्रेम यात्रा की यादें जुड़ीं है और जमशेदपुर के इतिहास में इसका ख़ासा महत्व है। आज के ख़ास दिन में एक सुखद अनुभव हुआ, बारिश की वजह से गांधी जी की प्रतिमा के पीछे ही स्थित राष्ट्रपिता गांधी मध्य विद्यालय के दरवाज़े पर लिटिल इप्टा के बच्चों के साथ हम लोग बाकी साथियों का इंतज़ार करते ,बारिश से बचने खड़े थे तो सरफ़राज़ जी हम लोगों के पास आए और पूछे कि हम लोग वहाँ किस लिए आएं हैं और किस संस्था – संगठन से जुड़े हैं। इप्टा का संक्षिप्त परिचय देने के कुछ सेकंड्स के बाद ही आवाज़ देकर उन्होंने स्कूल परिसर में क्लास खोलकर उसमें बैठने के लिए बुलाया। निश्चित ही अनजान लोगों द्वारा इस तरह से संवाद आज के समय में अब बहुत कम हो गया है पर आज के अनुभव से यह एहसास गहरा हुआ है कि उस स्कूल से जुड़े लोग संवेदनशील हैं। हम लोगों ने स्कूल में भी गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री जी को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। बात यहीं समाप्त नहीं हो गई बल्कि जब उनसे आग्रह किया कि आज दशहरे और दुर्गा पंडालों में बज रहे स्पीकर की वजह से गांधी जी की प्रतिमा के पास बात नहीं हो पाएगी तो हम सभी के लिए उन्होंने बरामदे में बातचीत करने,गांधी को याद करने का स्पेस दिया। निश्चित ही यह घटना छोटी लगेगी पर मन पर गहरा असर डाली और लगा कि नाम के असर की मिसाल (राष्ट्रपिता गांधी मध्य विद्यालय) से आज रूबरू होने मिला।

राष्ट्रपिता गांधी मध्य विद्यालय में श्रद्धा सुमन अर्पिता करते

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