फिल्म

दिन का हासिल – फ्लो

साभार -फ्लो मूवी के मूल पोस्टर श्रृंखला से

अनजान बातों से जुडी होती हैं जिज्ञासा की जलन।

जानने की रोशनी में समाई होती है अनुभव की ज़मीन।

बेचैनी , भटकन के साथ जुडी होती है कुछ हासिल करने की चाहत।

धारा के साथ बहने की चाहत किसकी नहीं होती पर सबके हिस्से में बहने की चाहत को पूरा करने का अवसर नहीं मिलता। जिन्हें यह अवसर मिलता है उनकी और जिन्हें यह मौक़ा नहीं मिलता उनकी भी कहानी कहीं न कहीं दर्ज़ होती है। इन कहानियों में बहने का अनुभव हर कोई महसूस करना चाहता है पर सबके हिस्से इतना अवकाश नहीं होता कि वे इन सूक्ष्म अनुभूतियों को महसूस कर पाएं और जीवन की उन तरंगों की गति को पकड़ पाएं। हर एक के हिस्से में अलग – अलग तरह का श्रम हिस्से में आता है जिसकी खूबियों और कमियों को इंगित करने के लिए हमारी दुनिया में कला के विविध रूप हैं जिसमें एक तरफ सिर्फ जीवन की सुंदरता दर्ज़ होती है जबकि दूसरी तरफ इसमें जीवन और श्रम की उन खुरदुराहट को महसूस कर पाते हैं। हम अपनी धुरी से निकलकर यथार्थ के जीते-जागते अनुभव से तरबतर होते हैं और जीवन को देखने का हमारा नज़रिया आकार लेता है।

दिन की शुरुआत तो कभी तयशुदा होती है और कभी भटकते हुए कुछ हासिल करते हैं। आज के दिन (२६ अगस्त)का हासिल यही रहा कि मुझे अपर्णा (बड़ी बहन) ने बच्चों के लिए एक एनिमेशन मूवी सुझाई ‘फ्लो ‘। मैंने देखने से पहले इसके बारे में न कहीं कुछ पढ़ा न देखा। देखने के बाद पता चला कि इस वर्ष इसे ऑस्कर मिला है। फिल्म देखकर दिल खुश हो गया और फिर शाम को बस चार बच्चों श्रवण ,नम्रता,दिव्या और सुरभि ने यह फिल्म देखी उसके दो दिन बाद यानी २८ अगस्त को साहिल,गुंजन,अभिषेक,काव्या,अभिनव,राहुल और सुजल ने देखी।

किसी फिल्म को देखकर बड़े लोग सोच समझकर बात रख सकते हैं और फिल्मी समीक्षा कर सकते हैं। वैसे भी हम अकसर किताबों और फिल्मों की चर्चा मुलाकातों में करते ही हैं। इस पोस्ट में अपनी बात न रखकर बच्चों से हुई बात यानी फिल्म देखने के बाद उनसे हुई बात को दर्ज़ कर रही हूँ। हमें अकसर बच्चों की प्रतिक्रियाएं कहीं भी पढ़ने-सुनने नहीं मिलती, बस इसी चाह में उन्हें जानने की उत्सुकता के तहत ही यह पोस्ट लिख पा रही हूँ। हमेशा से लगता है कि

कुछ पढ़कर , देखकर बच्चे के मासूम दिलो – दिमाग में क्या जज़्ब हुआ और क्या छन्नी में डाले पानी की तरह बह गया।

कौन सा चरित्र क्या असर डाला, कहानी का कौन सा भाग प्रभावित किया, कौन से दृश्य में मज़ा आया और पूरी फिल्म कैसी लगी।

बच्चों के निर्माण में ढेर सारी बातों की ज़रुरत होती है पर सही मायनों में देखा जाए तो बहुत कम अनुपात में बच्चों के समग्र विकास की उपलब्धता समाज में व्याप्त है। पहले रोटी, रहने को जगह और पढ़ाई का हासिल हो तो उसके आगे अन्य बातों पर चर्चा की जा सकती है। यह विडम्बना ही है कि आज जिन्हें परिवार में सारे संसाधन मिले भी हैं उनके अभिभावक या शिक्षा जगत बच्चों के प्रति कितना संवेदनशील है ? बहरहाल केंद्र में हमेशा से इन दोनों पक्षों पर बातचीत होती रही है पर आज के समय में जब हमारी दुनिया की तकनीकों पर निर्भरता बढ़ रही है उसमें बच्चे और फिर किशोरों के विकास पर गंभीरता के स्वर मद्धम होते जा रहे हैं क्योंकि किसी तकनीक में एक्सपर्ट होना एक बात है पर मानवीय मूल्यों के लिए मशीनी तकनीकें काम नहीं करती बल्कि हमें प्रतिस्पर्धा भरी दुनिया से निकलने की आवश्यकता है। किसी पार्क ,खेल के मैदान, लायब्रेरी में बच्चों और किशोरों की उपस्थिति उनकी संख्या की तुलना में कम ही देख पाते हैं। यह भी सच है कि सामुदायिक गतिविधि में शामिल होने के स्पेस घटे हैं और जो हैं उन तक बच्चे और किशोर पहुँच नहीं पाते।

सामूहिक रूप से दृश्य , श्रव्य माध्यम और पढ़ने की प्रक्रिया से जो प्रतिक्रियाएं मिलती हैं वे एक मुकम्मल तस्वीर पेश करती हैं और एक-दूसरे को सुनने-समझने का विवेक भी गढ़ती हैं।

फिल्म में डूबे बच्चे

अपनी बातों पर विराम देते हुए फिलहाल ‘फ्लो ‘ फिल्म देखने के बाद बच्चों के शब्दों में ही उनकी प्रतिक्रियाएं, यहां यह बताते चलूं कि सभी बच्चे पहली से सातवीं तक पढ़ने वाले हैं-

पहली कक्ष में पढ़ने वाले साहिल के अनुसार डॉल्फिन नहीं होना चाहिए था ( फिल्म में व्हेल थी ) बिल्ली सबको बचाई , फिल्म अच्छी लगी। बिल्ली बहुत ऊपर चढ़कर टूटे कांच वाली खिड़की से अंदर जाकर बिस्तर में लेट जाती है।

तीसरी कक्षा के अभिषेक ने बताया कि सब कोई सबकी मदद कर रहा था। जब चूहा नहीं उछला तो बिल्ली उसे बचाई।

तीसरी कक्षा की गुंजन ने कहा – बिल्ली शिकार होने से बच गई थी। जब बाढ़ आई बारहसिंघा दौड़ रहे थे और बिल्ली किनारे हो गई और अचानक बाढ़ आ गई। वो सपने में यह सब देख रही थी कि सभी बारहसिंघे उसे घेर लिए।

दूसरी में पढ़ने वाली काव्या ने बस एक वाक्य ही कहा कि फिल्म में एक बिल्ली रहती है।

चौथी पढ़ने वाले श्रवण ने कहा चिड़िया बिल्ली को बचाई। बिल्ली के सब दोस्त बन गए थे क्योंकि वो अच्छी थी। पहले कुत्ता उसको दौड़ा रहा था पर उसमें से एक कुत्ता उसका दोस्त बना और फिर जब पानी में गिरने के बाद नाव में पहुंचकर चूहा भी उसका दोस्त बन गया।

सातवीं पढ़ने वाली नम्रता ने बताया कि फिल्म में लीमर सारी चीज़ें जमा कर रही थी . जब कुत्ता उसका सामान गिराता तो बहुत गुस्सा होती थी।

साभार -फ्लो मूवी के मूल पोस्टर श्रृंखला से

अगला सवाल उनसे पूछा फिल्म में क्या था –

सुरभि आठवीं में पढ़ती हैं उन्होंने बताया कि यह समझ में आया कि बिल्ली हर मुसीबत से पार होती है कभी पानी में गिरती, कभी कुत्ता दौड़ाता, कठिन परिस्थितियों को पार कर निकलती। सफ़ेद चिड़िया ३ – ४ थी उसमें से एक चिड़िया बिल्ली को बचाती है और तब बाकी चिड़िया उसे मारते और अपने समूह से निकाल देते हैं। उन लोगों के पास खाने के लिए भी कुछ नहीं रहता। वे सब भटक रहे थे। अपने परिवार से अलग हो गए थे।

स्नातक के पहले वर्ष में गई दिव्या ने बताया– फिल्म में जानवरों का संघर्ष दिखाया है। पहले उन सब के बीच दोस्ती नहीं थी पर जैसे – जैसे संघर्ष बढ़ता है तो वे सब एक – साथ होने लगे। पहले कुत्ते बिल्ली को काट रहे थे पर बाद में साथ हुए। जो जानवर एक-दूसरे के दुश्मन होते हैं पर वे मुसीबत में साथ हो जाते हैं।

इसके बाद कुछ सवाल करते गए और बच्चों ने जवाब दिए।

चारो तरफ पानी क्यों भर गया था ?

  • बाढ़ की वजह से

बाढ़ क्यों आती है ?

  • डैम खुलता है .
  • पेड़ – पौधों की कमी होने से।

बाढ़ क्या सामान्य स्थिति है या असामान्य ?

  • असामान्य

बाढ़ थी तो कोई और दिख रहा था ?

जवाब – नहीं।

कौन – कौन दिख रहा था ?

जवाब – पशु – पक्षी ही दिख रहे थे और वे भी बहुत कम ही दिख रहे थे।

इस पूरी फिल्म में सामान्य स्थिति नहीं दिखाई गई है पूरी दुनिया पानी से भर जाए और उन जानवरों की जगह हम होते तो हम भी संघर्ष कर रहे होते है तो सोचकर बताओ कि बाढ़ कैसे आती है ?

  • डैम का फाटक खुलने से बाढ़ आ सकती है।
  • डैम टूट जाने से बाढ़ आती है।
  • आसपास नदी – समंदर हो और ज़्यादा बारिश होने से बाढ़ आ सकती है।

जब बच्चे यह जवाब दे रहे तो साहिल ने अचानक कहा कि ज़मीन घसक जाने से भूकंप आ जाता है। जब पूछे कि कौन सी चीज़ खिसकती है तो साहिल ने बताया कि ज़मीन के नीचे प्लेट होती है जो खिसकती है।

साहिल के अचानक से भूकंप के ज़िक्र से समझ आया कि बाढ़ आने की विभीषिका को वो भूकंप से जोड़कर भी देखने की कोशिश कर रहा था।

तुरंत ही इस पर वीडियो देखने की चाह बच्चों ने ज़ाहिर की और हम लोगों ने अगले दिन भूकंप कैसे आता है उस पर एक वीडियो देखा।

अब फिर अपनी चर्चा पर लौटकर पूछे कि बताओ कि बाढ़ कैसे आती है तो बचे बच्चों में गुंजन के जवाब से चकित हुए। उसने कहा –ज़्यादा बारिश होती है और कुछ नदी बड़ी और कुछ छोटी होती हैं और उसमें से कुछ नदी आपस में मिल जाती हैं तो बाढ़ आती है। बच्चों की विचार करने की यह क्षमता ही उन्हें जवाब तक पहुंचाएगी और यही जानने और समझने की चाह उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखाएगी ऐसी उम्मीद कर सकते हैं। बहरहाल अगले ने बताया

–पानी की बड़ी लहर आती है तो बाढ़ आ जाती है।

–नहीं पता।

–समुद्री इलाके में समुद्री बाढ़ आती है इसमें पूरी नाव वगैरह टूट जाती है।

–जब ज़्यादा पेड़ नहीं रहते तो बाढ़ आती है।

–बाढ़ इसलिए आती है क्योंकि अभी हम लोग जंगल काट दे रहे हैं,पेड़-पौधे काटकर फैक्ट्री वगैरह बना रहे हैं तो इससे भी बाढ़ आ रही है। बच्चे जब यह कह रहे हैं तो उनकी भाषा पर गौर करने की आवश्यकता है कि वे अपनी उम्र के अनुसार अपने पर्यावरण को समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसी में जोड़ते हुए उन्हें बताया कि पेड़ की कमी से वातावरण में गर्मी बढ़ रही है, जिन ग्लेशियर के धीरे पिघलने से नदियों को पानी मिलता है वो भी गर्मी की वजह से तेज़ी से खत्म हो रहे हैं। जलवायु में परिवर्तन हो रहा है। हम जितना प्रकृति को अपने फायदे के लिए समाप्त करेंगे उतनी ही गर्मी बढ़ती जाएगी। जलवायु बदलने से बहुत गर्मी ,बहुत ठण्ड और बहुत बारिश होगी जिससे कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा होगा।

-ज़्यादा बारिश कब होती है यानी असामान्य बारिश कब होती है या असामान्य गर्मी जैसे की अभी गर्मी में तापमान ४० – ४२ डिग्री होता है पर अचानक से तापमान का पारा ५० – ५२ डिग्री पहुँच जाए। ऐसी स्थिति कब होती है ? जलवायु में परिवर्तन कब हो जाता है ?

जब बहुत घर – फैक्ट्री बन जाएगा ,पेड़ कम हो जाएंगे तो गर्मी होगी और बारिश भी असामान्य होगी।हरियाली काम होने पर,प्रदूषण होने से असमान्य स्थिति आती है। मनुष्य की वजह से हम पहाड़ काट रहे हैं , जंगल नष्ट कर रहे हैं ,इमारतें बना रहे हैं,प्रदूषण फैला रहे हैं और इससे असामान्य स्थितियां बन रही हैं।

फिल्म क्यों अच्छी लगी ?

–क्योंकि उसमें सब कोई सबकी मदद किये।

–मिलजुल के साथ थे।

–बिल्ली गिरी तो पक्षी शिकार करना चाह रहे थे पर एक पक्षी ने उसे बचाया।

–सब लोग दोस्त बन गए थे इसलिए अच्छी लगी। इस पर बच्चों से पूछा कि

दोस्ती कब और कैसे होती है ?

–हम लोग मिल-जुलकर रहते हैं।

–जैसे कोई नया आया तो उसे है बोले फिर धीरे – धीरे दोस्ती होती है।

–सामान देने – लेने से दोस्ती होती है। जैसे हम लोगों के पास पेन्सिल नहीं है तो दोस्त देता है।

–बात करने से दोस्ती होती है।

–जैसे घुल-मिलकर, प्यार से रहने से दोस्ती होती है।

–जब किसी से मिलते – जुलते हैं, जानते – पहचनाते हैं और जब उसे कोई परेशानी होती है तो उस पर बात कर उपाय निकालते हैं और उसकी मदद करके धीरे – धीरे दोस्ती होती है।

–जैसे कि वो मुसीबत में है , वो गिराने वाला है और हम उसे जाकर बचा लिए तो वो थैंक्यू, वेलकम बोलेगा और दोस्ती हो जाएगी। मेरी इस वजह से दोस्ती हुई थी। एक ने हमको किसी के मारने से बचाया और उस दिन से उससे दोस्ती हो गई। उस बच्चे का नाम पूछे तो उस तीन नाम बच्चों ने बताया – लाडू सोरेन , सन्नी लियोनी और कालिया। यह सुना पर आगे क्या कहें मुझे समझ नहीं आया। उस बच्चे का नाम किसने सन्नी लियोनी रखा होगा और क्यों? जब उन्हें हट्ट कहा तो पूछे कि क्या आप जानती हैं पर यह एक अलग चर्चा और जानने का विषय हो सकता है। बहरहाल अगले ने बताया कि दोस्ती कैसे होती है –

–जैसे कि हम लग यहां खेलते रहेंगे और किसी नए को भी खेलने का मन कर रहा है तो वो हम लोगों के साथ एक दिन खेलगा और फिर खेलते – खेलते हम लोगों का दोस्त बन जाएगा।

उनसे पूछे कि दोस्ती के लिए खेलना ज़रूरी है ? तो तुरंत नकार का स्वर आया और अभिनव ने कहा कि दीदी पढ़ना भी ज़रूरी है। अब इस पर पूछे कि ये कैसे होता है ज़रा समझाओ। पढ़ने से कैसे दोस्ती होती है ? उसने बताया कि जब मेरे दोस्त को समझ नहीं आता है तो हम उसे बताते हैं की ये ऐसा होगा, वैसे होगा।

सभी ने जवाब दे दिया पर नन्हे साहिल सभी की सुन रहे थे तो उनका जवाब जानना ज़रूरी था कि दोस्ती कैसे होती है , दोस्त कौन होता है तो साहिल का जवाब आया –

साहिल -जो बचाता है वो दोस्त होता है। जब पूछे कि कौन बचाता है तो नाम आया – अभिषेक और रितेश। लेकिन साहिल तुम तो कभी – कभी अभिषेक को मारते हो तो साहिल की बहन गुंजन जो अभी तीसरी में पढ़ती है उसने कहा कि कभी दोनों में दोस्ती हो जाती है तो कभी झगड़ा भी।

साहिल से मुख़ातिब होते हुए पूछा कि साहिल कल के दिन के लिए तुम और बाकी कौन से बच्चे प्रॉमिस कर सकते हो कि एक – दूसरे पर हाथ नहीं उठाने की कोशिश कर सकता है तो श्रवण ने सबसे पहले कहा कि हम कर सकते हैं और बाकी ने भी वादा किया कि अगले छुट्टी के दिन कोई भी एक – दूसरे पर हाथ नहीं उठाएगा अगर किसी ने उठाया तो उसे दीदी का प्रॉमिस याद दिलाएंगे। बस फिर अगले दिन का मेरा इंतज़ार शुरू हुआ। बच्चे आए और सभी बच्चों ने अगले दिन दिल जीत लिया। आने के बाद अभिषेक और साहिल ने यह बताया कि उन लोगों ने श्रवण को आपके प्रॉमिस तोड़ने से बचाया भी यानी अपने साथ अपने दोस्तों का भी ख़्याल रखा। बड़ी उम्मीद बच्चों ने दिखाई। लव यू मेरे प्यारे बच्चों !

गपशप मोड

सुझाव— आपने पोस्ट पढ़ी हो और फिल्म न देखी हो तो ज़रूर देखें। इस फिल्म को इस वर्ष का ऑस्कर पुरस्कार मिला है। कई पक्षों से अछूती पर कई सवाल देती और आज के समय से जोड़ती फिल्म है।

प्रतिक्रिया दें

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *