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कॉमरेड शांति घोष उर्फ़ पीस भाभी

प्रगतिशीलता शब्द के मायने समझते हुए हम सभी चाहते हैं कि अपने लिए, समाज के लिए कुछ करें। हिलोरे मारती इच्छाओं को पंख देने की कोशिश भी हम करते हैं पर जीवन में उन अवसरों और ज़रूरतों को पहचान कर उसमें चलने का माद्दा सबमें नहीं रहता। कुछ साथी थोड़ी दूर साथ चलते हैं और फिर जीवन की व्यस्तताओं में चाहकर भी सक्रिय नहीं रह पाते यह हमारे जीवन की विडंबना है।

हमारे आसपास बहुत से ऐसे साथी हैं जिनकी बदौलत कुछ करने की प्रेरणा और सक्रियता बरकरार रहती है उनमें से एक हैं 85 वर्षीय शांति दीदी उर्फ़ पीस भाभी (कॉमरेड शशि द्वारा पुकारा जाने वाला संबोधन)

वो स्त्री जो जीवन में दो – दो बार विपरीत परिस्थितियों से निकलकर अपने हाथों से अपनी तकदीर लिखने में विश्वास की। पहली बार 8 वीं कक्षा और दूसरी बार मैट्रिक के बाद लगा कि पढ़ाई नहीं कर पाएंगी पर दोनों बार वे इससे बाहर निकली और जमशेदपुर में सामाजिक और सांस्कृतिक कामों के लिए अपनी पहचान बनाई।
शांति दीदी ने आज किस्सा सुनाया कि किस तरह मैट्रिक के बाद शादी की संभावना बनीं पर उनके शिक्षक सुनील कुमार ने उन्हें कॉलेज में पहुंचाया और समाज को एक ऐसी स्त्री सौंपी जो अमूल्य हैं।

भारतीय जननाट्य संघ (इप्टा) जमशेदपुर की सक्रिय साथी ने जो संघर्ष का दौर देखा, अनुभव किया उसे उनसे सुनना रोमांचित करता है। उस दौरान जब संसाधन कम थे पर प्रतिबद्धता ऐसी कि दिन – रात के मायने नहीं थे। आज के दौर में जब स्वैच्छिक संगठन में दुश्वारियां हैं ऐसे दौर में अपने वरिष्ठ साथियों के जिए हुए अनुभव ऊर्जा और साहस से भरते हैं। उन साथियों के अनुशासन के सामने हम कहीं पीछे ही हैं पर इन किस्सों और संगठनात्मक सक्रियता को जानने – समझने की आवश्यकता है।
शांति दी ने एक किस्सा सुनाया कि एक सुपरिचित, प्रसिद्ध कॉमरेड रात डेढ़ बजे उनके घर आए और रात को माँश- भात बनाकर दिया इसके अलावा उनका घर सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक मीटिंग और विचार – विमर्श के लिए हमेशा खुला रहा। यह उल्लेखित करने के पीछे यह ध्यान में आ रहा है कि आज प्रगतिशील धारा से जुड़े साथियों के लिए मिलने – जुलने के ऐसे आत्मीय, प्रतिबद्ध अड्डे नहीं के बराबर हैं। निश्चित ही इस बदलाव के पीछे भी बात की जा सकती है पर इनका अपने आसपास से गायब होना क्या दर्शाता है यह विचारणीय है।

एक किस्सा और वो ये कि शांति दी और कॉमरेड दिलीप घोष ( शांति दी के जीवन साथी) दोनों की वजह से उलियान में भाटिया बस्ती की रोड बनीं और ट्रांसफार्मर लगा, आप निश्चित ही ऐसे और लोगों को जानते होंगे पर इससे जुड़ा एक किस्सा दीदी ने सुनाया जिसे सुनकर आँखें नम हो गई और लगा यह साझा करना चाहिए वो ये है कि कुछ वर्ष पूर्व जब वे कदमा मार्केट से एक रिक्शे में बैठकर आई तो रिक्शा वाले ने उन्हें उनके घर के सामने रोका तो शांति दीदी ने पूछा कि तुम मेरा घर कैसे जानते हो तो उसने जवाब दिया – आपने खड़े होकर ये सड़क बनवाई है तो हम आपको कैसे नहीं पहचानेंगे। इस तरह की पहचान आखिर कितने लोगों को नसीब होती है, यह हमारे लिए अभिमान की बात है कि जमशेदपुर इप्टा ऐसे वरिष्ठ साथियों से सिंचा और पल्लवित हुआ।

शांति दी आज भी कुछ करने की बेचैनी से भरी साथी हैं जिनके प्रति सम्मान और प्यार उमड़ता है कि हम उनके काम को आगे ले जाने की एक छोटी कोशिश में लगे हुए हैं। वे हर बार मिलने पर यह कहती हैं कि मुझे अभी के जनगीत सीखने हैं, हम लोग जो गाते थे उसके बाद बहुत से गीत बनें, उनकी सीखने की यह इच्छा-शक्ति और जज़्बे को सलाम करते हैं।

आज ( 11 मई, 2025) हुई उनसे मुलाकात के बाद लगा कि इसे लिखना ज़रूरी है। अभी आज के बाद जब कोष्ठक में तारीख़ डाली तो उसके पीछे भी शांति दी का कहा याद आ रहा है कि जब यहाँ शुरुआती दौर में जब कभी तुरंत किसी कार्यक्रम या मीटिंग की रिपोर्ट उनसे साझा की और वे उसे अगर थोड़े दिन बाद पढ़ी तो तुरंत फोन करके काही कि देखो आज या कल लिखने के साथ स्पष्ट रूप से तारीख़ ज़रूर डालो। शांति दी के बहुत से किस्से हैं जिन्हें फिर कभी दर्ज़ करुंगी।
फिलहाल के लिए शांति दी उर्फ़ पीस भाभी ज़िंदाबाद
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