लिटिल इप्टा की डायरी

चाय की कहानी


साभार नेहरू बाल ट्रस्ट की किताब चाय की कहानी से

चाय की कहानी शीर्षक लिखते हुए लगा कि लिटिल इप्टा की डायरी का विचार कैसे आया इसकी कहानी भी संक्षेप में साझा करना चाहिए जो कभी आगे की पोस्ट में आए।

१७ जुलाई को एन बी टी से प्रकाशित बाल उपन्यास ‘चाय की कहानी’ पूरा किया। इस बाल उपन्यास को शुरू करने का पूरा श्रेय पांचवी पढ़ रहे श्रवण को जाता है जिसने लगभग १० दिन पहले स्वयं से ये किताब निकाली और पढ़नी शुरू की। फिर और बच्चे आये तो साझा किताब पढ़ने के प्रस्ताव पर सभी बच्चे तैयार हो गए और कल यानी १७ जुलाई को यह बाल उपन्यास पूरा हुआ। श्रवण के अलावा राहुल,अभिनव,अभिषेक का भी यह पहला बाल उपन्यास है। इनके अलावा गुंजन,काव्या और साहिल भी शुरुआती दो बार इस बाल – उपन्यास को सुनें पर वे ऐसे पाठक हैं जो अपनी मर्ज़ी के मालिक हैं यानि मनमौजी। ये कभी तो लगातार आएँगे और कभी गली में खेलने में ही रमे रह जाएंगे। पहली बार के अनुभव की खुशी अलग ही होती है और यह खुशी उनके बनिस्बत मुझे ज़्यादा होती है क्योंकि वे खेल – खेल में बहुत कुछ कर जाते हैं और सदैव विस्मित भी करते हैं।

साभार नेहरू बाल ट्रस्ट की किताब चाय की कहानी से

वैसे यह भी सच है कि पढ़ने के लिए उकसाना थोड़ा मुश्किल काम है क्योंकि उन्हें छोटी-छोटी कहानियां, कवितायेँ ज़्यादा पसंद आती है क्योंकि उनको पढ़े,उन पर बात किए और फिर झट से आगे बढ़ गए। बहरहाल इस बाल उपन्यास को हम लोगों ने ४ सीटिंग में पूरा किया। कुल ६३ पृष्ठ,हर पृष्ठ में एक चित्र जो बच्चों की जिज्ञासा और कहानी को सोच पाने-समझ पाने में बच्चों की मदद किया । इस किताब के बहाने चाय की कहानी भी जानें कि किस तरह की आबोहवा और कितने प्रकार की चाय असम में बनती है। सी टी सी, ऑर्थोडॉक्स और ग्रीन टी के बनने और उसकी खूबियों के बारे में बच्चों के साथ जाना। बच्चों की प्रतिक्रिया लिखने से पहले संक्षेप में उपन्यास की कहानी लिख रही हूँ।

१३ वर्षीय प्रांजल अपने दोस्त राजवीर को छुट्टियों में असम घुमाने लाता है। दिल्ली से असम की ट्रेन यात्रा के दौरान ही दोनों दोस्तो में चाय पर अपने- अपने ज्ञान की साझेदारी होती है,राजवीर जो कि दिल्ली निवासी है वो असम के निवासी प्रांजल को चाय की खोज के बारे में ३ कहानियां और विश्व में प्रतिदिन आठ करोड़ चाय के कप पी लिए जाने की बात बताता है। प्रांजल के पिता मिस्टर बरुआ टी स्टेट के मैनेजर हैं और उनके साथ टी गार्डन और कारखाने में घूमने के बहाने चाय तोड़ने से लेकर बनने और पैकिंग होकर बाज़ार के लिए तैयार होने की कहानी है जो कि इस उपन्यास को लिखे जाने का उद्देश्य है पर बच्चों के लिए सिर्फ जानकारी के लिए कुछ लिखा जाना पर्याप्त नहीं होता और वो कहानी,लेख या उपन्यास बच्चों द्वारा छुआ भी नहीं जाएगा इसलिए बाल उपन्यासकार अरूप कुमार दत्त ने सस्पेंस वाली एक कहानी भी रची है जो बच्चों को इस उपन्यास के साथ बांधे रखती है और मानवीय मूल्यों यथा ईमानदारी, काम के प्रति निष्ठा , धोखेबाजी से बचना , झूठ नहीं बोलना आदि इस बाल उपन्यास में ऐसे बुनें हैं जिनका प्रभाव बच्चों पर पडेगा ही और कहानी भी याद रहेगी।

कहानी हम बड़ों के लिए जानी-पहचानी है पर उसे बच्चों को ध्यान में रखकर बरतने का तरीका बढ़िया है। इस कहानी के माध्यम से बड़ों के लिए भी सीख है कि बच्चों को सुना जाना चाहिए, उनकी बातों को अनसुना करना या टालने की प्रवृत्ति से बचना चाहिए।

राजवीर , प्रांजल , मंगला और अलका चाय बागान में बात करते,साभार नेहरू बाल ट्रस्ट

चायबगान में काम करने वाले अलग-अलग क्षेत्रों के सरदार (सुपरवाइज़र) होते हैं। इसमें सावन नाम का एक सरदार है जो बड़ी चालाकी से एक गैंग लीडर के इशारों में अच्छी क्वालिटी की चाय गोदाम से गायब करता है और इस चोरी में न तो गोदाम का ताला टूटता है और न कुछ और क्षति दिखाई देती है। इससे मामला उलझ कर गोदाम के चौकीदार बिरची और डेका जिसके पास चाबियां रहती हैं उन पर आ जाता है और दोनों की ही गिरफ़्तारी हो जाती है। गोदाम में जब पुलिस आती है उसके पहले प्रांजल, राजवीर,अलका और मंगला भी मिस्टर बरुआ के साथ वहाँ उपस्थित रहते हैं। इन बच्चों को पुलिस के अन्वेषण का तरीका उचित नहीं लगता क्योंकि मंगला के पिता बिरची ऐसा नहीं कर सकते थे वे २० वर्षों से ईमानदारी से चौकीदारी का काम कर रहे थे और बस इस आधार पर बच्चों का जासूसी दिमाग सक्रिय हो जाता है। बच्चों द्वारा अन्वेषण के लिए पुलिस को दिए प्रस्ताव को पुलिस ने इन्हें बच्चा जान खारिज़ कर दिया था बस यहीं से बच्चों की एकता, दोस्ती और सहज जिज्ञासा से प्रस्तुत सवालों को संभल-संभल कर सोचते-विचारते उन्होंने इस चोरी के सिरे तक जाने की कोशिश की और वे इसमें कामयाब हुए। उनके इकट्ठे किए गए तथ्यों को प्रांजल के पिता ने ध्यानपूर्वक सुना और पुलिस को सूचित करके चाय चोरों के पूरे गैंग को रंगे रंगे हाथों पकड़ा। इस पूरे उपन्यास को धीरे-धीरे आगे बढ़ाया है जिससे सस्पेंस और जोखिम दोनों ही साथ चलते हैं और ये कहानी में ऐसे गुंथे हैं कि बच्चे इसका आनंद लिए और बहुत से नए शब्दों का अर्थ भी जानें।

जासूसी करते बच्चे

दिल्ली से असम बच्चों ने ग्लोब में देखा और उसकी दूरी जब एक दिन एक रात की सुनीं तो मुंह से निकला ‘बापरे !’ ‘चाय का आविष्कार’ सुनते ही आविष्कार शब्द के मायने समझे और जैसे ही समझ आया तो मुझे बताने लगे कि किन-किन चीज़ों का आविष्कार हमने किया है जैसे बुक, ए सी, चार्जर, पेंसिल, कलर, चेयर, बाल्टी, पानी की बोतल, बैग, कैलेंडर,तबला, हारमोनियम , पृथ्वी , जैम्बे आदि आदि। जब भी कुछ समझ आता है तो उदाहरणों की लड़ी फूटने लगती है उन्हें बीच में बोलना होता है कि हाँ ! तुम लोगों को सब समझ आ गया अब आगे बढ़ते हैं। एफ आई आर, नीलाम,सुराग, इन्वेस्टिगेशन ,सस्पेंस ,अन्वेषण,घात, प्रशिक्षित जैसे कई शब्द के मायने कहानी के साथ समझे। हो सकता है इनमें से कुछ ही इन्हें याद रह जाए पर दोबारा कहीं पढ़े जाने पर ये याद रख पाएंगे।

नदी किनारे चोरों का सुराग ढूंढते बच्चे , साभार – नेहरू बाल ट्रस्ट

बच्चों की प्रतिक्रिया जानना बहुत रोचक लगता है। सब अधीर हो जाते हैं कि पहले हम बोलेंगे पर यह भी पता है कि एक – एक करके ही सबको सुनना है। उन्होंने जो बताया उसे दर्ज़ कर रही हूँ-

कहानी की शुरुआत में जब प्रांजल और राजवीर ट्रेन यात्रा कर रहे थे तो श्रवण ने पूछा कि ट्रेन जगह – जगह क्यों रूकती है ? जब तक कुछ बताते तो अपने से ही बोला- हाँ ! पानी पीने के लिए रोकता होगा।

इस तरह के सवाल और जवाब से लगता है कि कितनी जिज्ञासाएं अनुभव नहीं होने से उपजती हैं। जब उसे कहा कि ट्रेन में तो ढेर सारे यात्री सफर करते हैं और सभी को अलग – अलग गाँव या जगह जाना होता है इसलिए ट्रेन रूकती है। जब पूछा कि ट्रेन कैसे चलती है तो बच्चों ने बिजली से चलना बताया। इस उपन्यास में समय के लिए साप्ताहिक और पखवाड़ा शब्द का प्रयोग किया है जिसे सुनकर बच्चों के अर्थ के अंदाज़ निराले थे पर मेरी स्मृति में वो अर्थ पुंछ गए हैं।

बच्चे समझदार थे उन्होंने सब ढूंढ लिया। सावन सरदार बदमाश था वो जहाँ काम करता था वहीं चोरी करने का सोचा। उसने अफवाह फैलाई कि चीता आ गया है। सावन ने कहा था कि उसके बैल को ले गया है पर बाद में वही बैल बैलगाड़ी में आए। बच्चों ने प्रूफ ढूंढा , वो दरवाज़ा ढूंढा जिसमें सुरंग बनी थी। नाव के बारे में पता चला जिससे चोर चाय को दूसरे किनारे में ले जाते थे। जब पुलिस ने कहा कि बच्चे क्या काम करेंगे तो बच्चों को आईडिया आया कि वे चोर ढूंढने का काम करेंगे। गोदाम में चोर के पैर में लगी मिट्टी के निशाँ से वे पहले वैसी मिट्टी ढूंढें। चोर लोग मेहनत से सुरंग बनाए और चालाकी से नाव छुपा दिए थे। पुलिस बिना समझे-जाने, प्रूफ के बिना ही मंगला के पिता बिरची और डेका को ले गई। पुलिस ने कुछ खोजने की कोशिश नहीं की और बच्चों ने कहा तो उन्हें भी मना कर दिया। खुद भी कुछ नहीं किया और बच्चों को भी कुछ नहीं करने दिया। इस बात पर नन्हे अभिनव ने सटीक बात कही कि-

जो भी कोई काम करना चाहता है उसे एक मौक़ा देना चाहिए। अभिनव ने यह सवाल भी सहजता से पूछा कि दीदी सावन तो उसी तो टी गार्डन में काम करता था तो चाय क्यों चुराया ? जब यह सवाल आया तो लगा कि हम बड़ो ने दुनिया की कितनी तबाही कर दी है और लगातार करते चले जा रहे हैं।

यह बात भी बच्चों ने कही कि जब चीता की अफवाह फैलाई गई तो उस पर या कोई भी बात पर बिना जांचे-परखे भरोसा नहीं कर लेना चाहिए।

बच्चों को आख़िरी बात बार-बार याद दिलाते रहते हैं कि पूरी बात जाने बगैर किसी पर भरोसा करना ठीक नहीं तो इससे उनके बचपन की सुरक्षा और तथ्यात्मक सोच की तरफ बढ़ाने की छोटी सी कोशिश है।

यहां पर बच्चों के बीच आस-पड़ोस से बहुत से ऐसे अंधविश्वास और बातें होती हैं जिसका गहरा असर उनके दिलो-दिमाग पर पड़ता है इसकी बानगी अकसर ही देखने-महसूस करने मिलती है। इसमें किताबों से दोस्ती का असर पडेगा ऐसा विश्वास है और इसी विश्वास के बूते हम पढ़ रहे है और अब अगली किताब की तरफ रुख़ करेंगे।

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