भालू की माँद में सबका खाना

जब हम कोई किताब उठाते हैं तो सबसे पहले उसके नाम और कवर पेज पर पर नज़र ठहरती है । कोई पत्रिका पलटते हुए निश्चित ही किसी कहानी, कविता या आलेख के शीर्षक हमारी उंगलियों को रोक देते हैं। आज जब मैंने इस पोस्ट का शीर्षक लिखा तो यही लगा कि तमाम पोस्ट के शीर्षक पढ़ते हुए पाठक निश्चित ही इस पोस्ट को क्लिक ज़रूर करेंगे क्योंकि शीर्षक ही कुछ अजूबा सा है, बहरहाल ज्यादा पहेलियाँ न बुझाते हुए बताते चलूँ कि आज यानि 10 अप्रैल, 2025 को छोटे बच्चों में श्रवण, देव और अभिषेक के साथ सुशील शुक्ल की एक कहानी”भालू की माँद” पढ़ी और निरंकारदेव सेवक की कविता “सबका खाना” पढ़ी और उस पर उन बच्चों से बात की तो यह पोस्ट की शुरुआत करते दोनों को एक साथ रखने से कुछ अलग ध्वनित हुआ और आज की पोस्ट का शीर्षक बन गया।

आज देव ने पहली बार अकेले पढ़ने के लिए प्लूटो उठाई और उसमें यह कहानी पढ़ी । देव लिटिल इप्टा में एकदम नया है और आते साथ ही नाटक में एंट्री की, इसलिए उसे अभी यहाँ पढ़ने के अभ्यास का मौका नहीं मिला है। यह पोस्ट लिखते हुए यह भी बताती चलूँ कि वो “लाख की नाक” में सेनापति बना पर अफ़सोस कि रिहर्सल करने के बावजूद नाटक नहीं कर पाया क्योंकि उसे लंबे समय के लिए गाँव जाना पड़ा। उसने कुछ दिनों बाद फोन किया था, सभी से बात करने की चाह ज़ाहिर की। बच्चे कितनी जल्दी किसी जगह में अपने आप को जोड़ लेते हैं इसका यह छोटा सा नमूना है।
प्लूटो में “भालू की माँद” पढ़ने के बाद उससे पूछा कि कहानी में क्या था वह बस कुछ बातें ही बताया पाया बाकी समझ नहीं पाया। इसके बाद उसे अभिषेक, श्रवण के साथ दोबारा पढ़ने के लिए कहा तो कहानी थोड़ा और आगे तक समझ पाए पर तब भी वे पूरी नहीं समझ पाए तो एक बार फिर उसे बच्चों के साथ मैंने पढ़ा और एक-एक वाक्य के अर्थ समझते बच्चे पूरी कहानी को समझ गए। कहानी पर किस तरह से बात हुई यह रोचक है पर इससे पहले संक्षिप्त में कहानी का सारांश भी बताया दूँ जिससे चर्चा के बिन्दु स्पष्ट होंगे।
कहानी यह है कि एक बंदर का पीछा बाघ कर रहा है और आसपास कोई पेड़ नहीं सो वो भालू की माँद में घुस जाता है। भालू माँद में मौजूद है और बाघ की दहाड़ से बाहर निकल गुर्राता है और उन दोनों के एक-दूसरे के डराने के क्रम में बाघ डरकर भागता है और उन दोनों के बीच आमने-सामने होने पर बंदर भाग निकलता है। यह कहानी है तो छोटी सी पर जिस अंदाज़ में सुशील शुक्ल जी ने लिखा है वो है लाजवाब। छोटे वाक्य संरचना में बनीं इस सीधी-साधी कहानी को भी पढ़ने का हुनर बच्चों में चाहिए जो लगातार पढ़ने से आता है। विराम, पूर्ण विराम के प्रयोग से अनजान ये बच्चे बस हिन्दी पढ़ ले रहे हैं उन्हें स्कूल में हिन्दी पाठ कराया जाता होगा यह बीते समय की बात हो गई है। कुछ बच्चे पढ़ लेते हैं पर ज्यादातर बच्चे धारा-प्रवाह पढ़ना नहीं जानते पर कविताओं और कहानियों की सनगत में वे सीखते हैं और पढ़ना चाहते हैं।
छोटी-सी कहानी में बच्चों से बातचीत बड़ी रोचक हुई। मैंने माँद का नया प्रयोग जाना वह है- “पोरा यानि पैरा यानि पुआल का घर”। अलग-अलग जगह शब्दों के अर्थों को जानना एक अलग तरह की अनुभूति से भरता है। बच्चों के साथ पढ़ने में अक्सर ही शब्दों की ध्वनि के हिसाब से भी वे अर्थ पता चलते हैं जिनका उसके वास्तविक अर्थ से दूर-दूर तक लेना-देना नहीं रहता।
श्रवण ने कहा कि बाघ को नहीं भागना चाहिए था भालू को भागना चाहिए था। सच!हमारे सोचने-विचारने में कितनी बातें रेडीमेड फ़ीड कर दी जाती हैं यह महसूस हुई जब हमेशा की तरह मैंने एक नन्हे साथी से पूछा कि और क्या समझ आया तो उसने कहा कि बंदर ने कुछ किया ही नहीं पर तब भी बाघ उसको परेशान आकर रहा था उसे परेशान नहीं करना चाहिए। यह सुनकर भी सीखों की लंबी लिस्ट आँखों के सामने तैर गई जिसका एक उद्धरण अभिषेक द्वारा कही गई यह बात थी। साथ ही यह भी कि हम बच्चों को बचपन से सिखाते बहुत कुछ हैं पर वह अमल में नहीं आ पाता तो इसके पीछे कौन-सी वजहें हैं कि हर वर्ग , समुदाय में ऐसी शिक्षाएं दी जाती हैं पर जीवन में उसे अमल में क्यों नहीं ला पाते।
कहानी में एक नई बात और बताई कि भालू बंदर को बचाने के लिए माँद से निकला, बंदर और भालू की दोस्ती की एक संभावना बच्चे ने अपनी कल्पना से ज़ाहिर की। कहानी से क्या सीखे तो अभिषेक और देव ने स्पष्ट रूप से कहा कि कुछ भी नहीं पर श्रवण ने बताया कि बंदर मौका देखकर अपने आप को बचा लिया यानि मुश्किल में मौका देख समझदारी से काम लेना चाहिए। बच्चे किसी भी बात पर कितनी ईमानदारी से अपनी समझ को प्रस्तुत कर देते हैं, कोई दुराव-छिपाव नहीं होता और उनकी बातें कितने ज़रूरी विचारों को आलोड़ित कर देती हैं यह इसका एक छोटा उदाहरण है।
मुहावरे और कुछ नए शब्दों के अर्थ अर्जन से बढ़कर बातचीत का अवसर मिलता है साथ ही उनकी समझ और दृष्टि को समझने का मौका मिलता है। एक साथ पढ़ने की प्रक्रिया धीमी ज़रूर होती है पर समझ बढ़ाने की दृष्टि से सबके लिए अच्छी होती है।