“बच्चों की दुनिया में हम”
रेखा जैन जन्मशती के अवसर पर जमशेदपुर इप्टा द्वारा आयोजित बाल रंग कार्यशाला
अर्पिता


बाल रंगकर्म की अगुआ रही रेखा जैन की जन्मशती पर भारतीय जननाट्य संघ, जमशेदपुर ने 2 जून से 8 जून, 2025 को सात दिवसीय बाल रंग शिविर का आयोजन किया है। इसमें लिटिल इप्टा, झाबरी बस्ती और गोमहेड़ के दो नन्हे साथी भी शामिल हो रहे हैं। कुल 31 बच्चों की भागीदारी और सुबह-सुबह बच्चों की खिलखिलाहट, उत्साह और ऊर्जा से हमने कार्यशाला शुरू की वैसे अनौपचारिक रूप से कार्यशाला कल यानी 1 जून को ही शुरू हो गई क्योंकि साथी क्षितिज बच्चों से एक अनौपचारिक मुलाकात की इच्छा ज़ाहिर किए और जब सब बच्चे मिले तो सहज ही उनके साथ गतिविधि करते वे सब बच्चे अगले दिन की प्रतीक्षा के साथ घर लौटे।
इस कार्यशाला के लिए दिल्ली और जे एन यू इप्टा का सहयोग है जिसकी वजह से हम इस कार्यशाला को आगे ले जा पा रहे हैं। इस कार्यशाला के प्रशिक्षक और सहयोगी साथी क्षितिज और संतोष दिल्ली से आए।
कार्यशाला के पहले दिन बच्चों ने सुनने, कहने के साथ अपनी रचनात्मकता को विभिन्न गतिविधियों और खेल के माध्यम से टटोला और उस पर सामूहिक संवाद किया। इसमें कुछ पहचानने, जानने के साथ चुनाव की बारीक प्रक्रिया जुड़ी है।
अक्सरहां हमें लगता है कि हम हर तरह से सक्षम है पर जब थियेटर के स्पेस में सामूहिक खेल खेलते हैं तो पता चलता है कि सुनने के हुनर में तो हम सब पीछे हैं। आज भी कुछ ऐसा बच्चों के खेल में या किसी निर्देश के समय महसूस हुआ।
जब भी कहा गया कि आप चार या पांच के समूह में बैठे तो सभी के जान- पहचान दोस्तो के साथ बैठते देखकर लगा कि हम खेल में भी अपने सुरक्षित स्पेस को नहीं छोड़ पाते हैं तो अप्रत्याशित या अनपेक्षित परेशानियों को या परिस्थितियों से कैसे निपटेंगे।
कार्यशाला में सक्रिय बच्चे हैं पर उनको देखते हुए बहुत छोटे छोटे विचार आते हैं जिन्हें उस समूह में शामिल होकर शायद नहीं सोच पाएं बस वही दर्ज़ करने की कोशिश है।
हर उम्र वर्ग के बच्चों की टोली के साथ संवाद और अनुशासन का मेल सुनने में थोड़ा टेढ़ी खीर लगता है पर यह भी सच है कि थियेटर या कला के द्वारा बच्चों में वह बर्ताव बरतने का हुनर आता है।
आवाज़ों के साथ बच्चों की दोस्ती अनजानी नहीं है सो क्षितिज ने बच्चों से पूछा कि झरने की आवाज़ कैसी होती है तो झरने की आवाज़ से पूरा हॉल गूंज गया और बस यही शांत रखने का उपाय भी बना। जब सब तरफ से शोर होता क्षितिज कहते झरना और बच्चे तुरंत झरने की आवाज़ निकालते और एक रचनात्मक अनुशासन फिर बहाल हो जाता। जब सुस्ती लगती या सक्रियता लानी होती तो गिनती शुरू हो जाती और बच्चे हॉल की चारों दीवारों को दौड़ते हुए छूकर वापिस अपने गोले/ सर्किल में लौट आते। एक- दूसरे के करीब आने, जानने के लिए भी समूह बना और बच्चों ने ऐसी ऐसी बात कही कि लगा अरे! उनके बारे में यह जानना कितना ज़रूरी पक्ष है। छोटे बच्चों की छोटी पर महत्वपूर्ण बातों को हम बड़े अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं और वे हमसे नाराज़ भी नहीं होते बल्कि वे मान लेते हैं कि ठीक है अगली बार कोशिश करेंगे पर हम बड़े बच्चों से उम्मीद की डोर बढ़ाते जाते हैं और अपनी चाहतों और इच्छाओं का पुलिंदा उनके नन्हे कांधों पर रखते हैं।
बच्चों की कल्पना की कूची में ऐसे ऐसे रंग है जिनकी आब से हम चकित रह जाते हैं। हर बार बच्चों के साथ काम करते लगता है हम कितना समृद्ध हो रहे हैं क्योंकि कल्पना के पंख उम्र के साथ छोटे होते जाते हैं और हमारी उड़ान कल्पना के आकाश में उस तरह नहीं उड़ पाती जिस तरह बच्चे उन्मुक्त होकर ख़ुद को अभिव्यक्त करते हैं।
समूहों में बंटे बच्चों ने रचनात्मकता से जहाज़, बैलगाड़ी, साइकिल बनाकर हमें उनकी दृष्टि से परिचित कराया। इसके बाद उन्होंने चित्र बनाया जिसकी कहानी दूसरे समूह के बच्चों ने बताई, साथी क्षितिज ने बच्चों को खेल- खेल में इमेज थिएटर की दहलीज़ पर लेकर गए और उनकी कल्पना को उड़ान दी। जब इमेज के जरिए कहानी हुई तो उसके बाद बच्चों को कोरा कागज़ और स्केच पेन सौंप दी और कहा कि आपस में बात कर एक कहानी बनाओ जिसके चित्र कागज़ में अंकित करने है। तीन समूह ने कहानी कही जिसमें पहले में बचपन की दूसरी में कल्पना की और तीसरे में सजगता की कहानी सामने आई।

कई बार हमें लगता है कि हम बच्चों को ये बता दें या वो बता दें पर वे अपने अभिव्यक्त करने की क्षमता से हमें हर बार याद दिलाते हैं कि असल में मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी है पर हम बड़े इसे भूलते हैं और बच्चों की सोचने-विचारने की दुनिया में अवरोध भी बनते हैं यह लिखने के पीछे यही मंशा है कि हम इस कार्यशाला के बहाने बच्चों से दोस्ती करें बच्चे बनकर और उनकी ऊर्जा से अपनी दुनिया को चार्ज करें।


