प्रेमचंद के स्मृति दिवस के साथ गुंजन का जन्मदिन


रवायत बनने के सफ़र के किस्से सुनना मज़ेदार होता है जब हम अंदाज़ लगा रहे होते हैं कि उस वक़्त ऐसा होता होगा या ऐसा हुआ होगा तो इस तरह की रवायत बनीं। इस तरह की बातचीत हम आपस में कई मसलों पर करते हैं और अपनी समझ को पुख़्ता करने की कोशिश करते हैं। खानपान,रहन-सहन के साथ ज़िन्दगी से जुड़े हर पहलू में इस तरह से समाया है कि छोटे से छोटे और बड़े से बड़े लोग इसमें चाव से हिस्सा लेते हैं। हाल में एक चर्चा के दौरान खानपान को लेकर बातचीत हो रही थी तो अलग-अलग हिस्सों में एक ही प्रकार के पकवान को लेकर किस तरह के मसालों को जोड़ा या घटाया गया या फिर उन्हें किस तरह से नवाबियत से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाया जाए। इसी तरह पहनावे को लेकर और इस पर जेंडर के नज़रिए से एक दूसरी बातचीत में कई पहलू निकलकर आए जो खुले तौर पर विमर्श का हिस्सा है। कहीं भी कोई रिवाज़ बनने में लंबा समय लगता है पर उसके पड़ावों से गुज़रना अच्छा लगता है।
प्रेमचंद को जब हम याद करते हैं तो उनकी लिखी रचनाओं के नाम याद आने लगते हैं। अपनी याद के दिनों से ही प्रेमचंद के स्मृति दिवस को मनाने की रवायत कहीं सुनने नहीं मिलती जबकि ३१ जुलाई का दिन साहित्य प्रेमियों को सहज ही याद आता है और उसे मनाने के लिए देश-भर में उत्सव होते हैं। सामान्यतः तमाम पुरखों के स्मृति दिवस को भी हम शिद्दत से याद करते हैं पर प्रेमचंद के साथ ऐसा नहीं है इस अभ्यास को भी हमें बदलना चाहिए और आज इसकी अनजाने में पहल की पहली में पढ़ने वाली काव्या ने।
८ सितम्बर को तीसरी में पढ़ने वाली गुंजन का जन्मदिन मनाए। बच्चों के लिए जन्मदिन का गीत गाया जाना और सभी के द्वारा बच्चों को हैप्पी बड्डे कहना उनकी मुस्कराहट को बढ़ा देता है। जिस दिन भी किसी बच्चे का जन्मदिन होता है तो छोटे बच्चे थोड़ा अधीर होते हैं,लिटिल इप्टा की लायब्रेरी में पढ़ने को जल्दी – जल्दी निपटा देने की कोशिश में रहते हैं इसका नमूना यह होता है कि दीदी, आज बस इतना ही या और कितना पढ़ेंगे। उनकी इस तरह की मासूम पहल का सम्मान करती हूँ और बाकी दिनों की तुलना में जल्दी ही जन्मदिन मनाने के लिए हम बढ़ते हैं।
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के जन्मदिन के साथ लिटिल इप्टा के नन्हे साथी अभिषेक का और कवि राजेश जोशी के जन्मदिन के दिन काव्या का जन्मदिन पड़ता है तो यह हम सबके लिए दो-दो ख़ास लोगों के जन्मदिन मनाने का भी होता है।
काव्या ने अचानक से पूछा दीदी आज किसका जन्मदिन पड़ता है ?
जैसे ही कैलेण्डर देखा तो लगा काव्या ने कितनी ज़रूरी बात पूछी। ८ सितम्बर को किसी का जन्मदिन तो मुझे नहीं मिला, हां ! प्रेमचंद का स्मृति दिवस है तो अब प्रेमचंद को याद करते हुए गुंजन का जन्मदिन मनाएं और आगे भी मनाएंगे।
इसके बाद प्रेमचंद से जुड़े कुछ सवाल पूछे-
-पूस की रात। ( दीदी इसमें नीलगाय भी रहती है )
अभिषेक ने याद करते कहा वो पुलिस वाली कहानी , नाम याद नहीं आ रहा तो बताया नमक का दारोगा।
-रामनवमी
-कज़ाकी
-दीदी झूरी वाली एक कहानी थी न ?
-हाँ , दो बैलों की कथा जिसमें हीरा और मोती दो बैल रहते हैं।
सवाल – सुजल भैया एक कहानी में नाटक तैयार किए वो कौन सी कहानी है ?
जवाब – पंडितजी का भोग तो सही करते कहा कि वो कहानी है ‘बाबाजी का भोग’
-ईदगाह, हिंसा परमोधर्म। इतने नाम सुनने के बाद कहा कि घर जाकर अपनी हिन्दी की पुस्तक में जाकर देखना कि प्रेमचंद की कौन-सी कहानी पाठ्य-पुस्तक में है। जैसे ही यह कहा तो एक ने बताया बिरसा मुण्डा के बारे में है दूसरे ने कहा वीर भगत सिंह के बारे में है। बहरहाल इस बहाने बच्चों की स्मृति के बारे में थोड़ा जान पाती हूँ कि पढ़ने की ,जानने की प्रक्रिया में वे कितना याद रख पा रहे हैं। इसी क्रम में एक बार और हम लोगों ने अगले दिन यू ट्यूब में कज़ाकी और ईदगाह देखी। इस प्रक्रिया में वे बहुत नहीं तो कुछ तो याद रख पाएंगे।
कज़ाकी – https://youtu.be/buuP0lTBn-g?si=JYRJWIIyxjto6T3C
बच्चों से उनके जीवन से जुडी यादों को सुनना अच्छा लगता है। इस तरह की बातचीत से महसूस होता है कि वे अपनी यादों को कैसे संजोए हैं और उसको कैसे आगे ले जा रहे हैं। उन्हें क्या अच्छा लगता है और किन चीज़ों की ख़्वाहिश वो रखे हैं।
इसी क्रम में गुंजन के जन्मदिन पर बात करने के लिए सभी बच्चों से पूछा –
अब तक कौन-से जन्मदिन उन्हें याद है जिसमें उन्हें मज़ा आया था। बच्चों के साथ सबसे दिलचस्प बातें उनके जन्मदिन से जुडी होती हैं और घूमने – फिरने , खेलने और खाने – पीने की होती हैं। इन विषयों पर चर्चा करने से लगता है वे अचानक से चार्ज हो गए हों। बच्चों अपने स्पेशल जन्मदिन की याद साझा की।
श्रवण – जिस दिन बहुत सारे बच्चे आए थे और हम लोग मिलकर नाटक किये और सबके लिए खिचड़ी बनाए ,केक काटे थे उस दिन बहुत मज़ा आया था। दीदी, एक और जन्मदिन जिसमें घर में बहुत सारे लोगों को बुलाए थे तो सब बैलून हम फोड़ दे रहे थे। यहां बताते चलूँ कि लुमझुरी के ट्राइबल स्कूल के बच्चों को लेकर सिद्धार्थ आये थे , बच्चों ने मिलकर खेला और कुछ इम्प्रोवाइजेशन भी किया था।
नम्रता – मुझे पिछले के पिछले साल वाला जन्मदिन याद है जिसमें हम लोगों ने पूरे बरामदे में दरी लगा दी थी , खूब मस्ती की थी। साहिल ने आगे बात जोड़ी कि दीदी को पेंटिंग कलर मिला था।
लक्ष्मी – मुझे भी पिछले के पिछले साल वाला जन्मदिन अच्छा लगा था जिसमें घर में बहुत सारे लोग आए थे। यह सुनते हुए अभिषेक ने याद किया कि तब दीदी का पैर भी टूटा था तो उसे याद दिलाए कि पिछले साल ही टूटा था।
गुंजन – मुझे बचपन का जन्मदिन याद है तब हम केक काटे थे और घर में बहुत सारे लोग आये थे तो उसके छोटे भाई साहिल ने कुछ कहना चाहा पर गुंजन ने कहा तब तो तुम पैदा ही नहीं हुए थे।
काव्या – पाइपलाइन में जब रहते थे तो बचपन वाला जन्मदिन याद है। पूरी गली के लोग उठकर आ गए थे सब लोग डांस भी किये थे।
राहुल – मुझे एक भी जन्मदिन याद नहीं है। जब पूछे कि कब पड़ता है तो उसने कहा होली के दिन जन्मदिन पड़ता है। उसे कहा कि इस बार होली खेलकर तुम्हारा जन्मदिन मनाएंगे।
गणेश – मुझे याद नहीं।
साहिल – मुझे बचपन का जन्मदिन याद है तब पापा डीजे ला दिए थे वो आज भी हमारे घर में है।
अभिनव – जब हम गली में रहते थे न तो उस दिन स्कूल नहीं गए थे , डी जे आया था और बहुत सारा खाना-वाना बना। बहुत से लोग आये , डांस – वांस किये। यह कब मनाए थे तो कहा याद नहीं। अभिनव के बड़े भाई राहुल ने बताया कि उस दिन वो बेहोश हो गया था। इस पर अपनी राय अभिनव ने ज़ाहिर की कि ठण्ड बहुत पड़ती है तो खाने के लिए जब उठा तो बेहोश हो गया था।
शानू – जब छोटा भीम वाला केक आया था तब मुझे बहुत अच्छा लगा था।
अभिषेक – बचपन वाला याद है। बचपन में इतना बड़ा केक आया था। हम लोगों ने मस्ती की थी और तब गुंजन मुझे खाना भी खिला देती थी। जब पूछे कि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ वाला जन्मदिन याद है या नहीं तो तपाक से कहा याद है। उससे पूछे कि ये दोनों जन्मदिन आगे-पीछे कर लेंगे तो तुरंत असहमति ज़ाहिर की।
सुरभि – जब गाँव में थे तो डीजे बड़ा वाला लाए थे . गाँव के सारे रिश्तेदारों को बुलाये थे और गाँव के सारे लोगों को पार्टी दिए थे। इस जन्मदिन में डबल स्टोरी केक लाए थे। मेरा सबसे अच्छा जन्मदिन वही था।
दिव्या – पहले करते थे अभी तो सेलीब्रेट नहीं करते हैं। जब पूछे कि घर में केक काटते हो तो हाँ कहा। फिर पूछे कि सेलीब्रेशन किसे कहती हो तो दिव्या ने बताया कि लोग आएं , नाच – गाना हो तो मज़ा आता है।
सुजल – मुझे बचपन में क्लास चौथी का जन्मदिन याद है जब बस वाला केक आया था तो बहुत मज़ा आया था। बड़े होने के बाद यहां गैरेज में मनाए उसमें मज़ा आया था।
जब बच्चों से यह पूछा कि किसी भी जन्मदिन में डीजे आ आने से जन्मदिन ख़ास हो जाता है ? तो सहमति नज़र आई। पर जब यह कहे कि डीजे जब बहुत ज़ोर – ज़ोर से बजता है तो बहुतों को उससे परेशानी भी तो होती है तो उससे भी वे असहमत नहीं हुए। आज के समय में बढ़ती डीजे संस्कृति ने एक तरफ जहां बाज़ार को सजाया वहीं जन-संस्कृति को दरकिनार करने की साजिश भी रचाई। बच्चों से उनके मन की बात जानते हुए संवाद की कोशिश हर स्तर पर ज़रूरी लगती है।
बच्चों के जीवन में उत्सव का आयोजन कितना ज़रूरी है यह उनकी बातों से समझकर आया। वे हमेशा मस्ती के मूड में रहना चाहते हैं। दुनिया से बेफिक्र रहने के मिज़ाज की वजह से दुनिया उनके लिए बॉल का गोला होती है जिसे वे अपने पैरों से उड़ाएंगे तो सीधे अंतरिक्ष में पहुंचेंगे या अपने नन्हे हाथों से फुर्र करके हवाई जहाज बनाकर उड़ा लेंगे। इस भरोसे को कायम रखते हुए उन्हें रचनात्मक तरीके से दुनिया की सच्चाइयों से परिचित कराने की आवश्यकता है।
इन तमाम यादों के साथ बीच – बीच में बच्चों से बातें भी होती रहीं कि जन्मदिन के मायने यह होना चाहिए कि हम अपने दोस्त को स्पेशल फील कराएं, भले ही कोई पार्टी हो या न हो। उनके साथ रोज़ की तरह खेलें और मस्ती करें। अभिनव ने जन्मदिन के मायने पर कहा –
जन्मदिन के दिन को सेलीब्रेट करना चाहिए। प्यार देना चाहिए और कहना चाहिए कि तुम अच्छे से पढ़ाई करना।
अभिनव की बात पर बच्चों से कहा मैंने कि हम तो तुम लोगों से बहुत प्यार करते हैं, रोज़ कहते हैं कि खूब अच्छे से पढ़ो यानी रोज़ सेलीब्रेशन हो गया न? तो सब ने धीमे से ही सही पर कहा – हाँ दीदी।
सच है ! बच्चे तो बच्चे होते हैं क्योंकि वे एक तरफ तो वे कोशिश करते हैं बड़े होने की और बड़ी – बड़ी बात करने की पर जब असल में यह सब हो तो वे कैसे अपने समय और परिस्थतियों से मौन समझौता कर लेते हैं। बच्चों को जीवन में उत्सव और उमंगों की सौगात मिलते रहना चाहिए यही हम बड़ों के लिए सबसे बड़ी सीख है।
यहां यह भी साझा करना चाहूंगी कि लिटिल इप्टा में किसी बच्चे के जन्मदिन पर सभी बच्चे शामिल हो जाते हैं भले ही नियमित रूप से वे पढ़ने और गाने आएं या नहीं। गली में खेलना-कूदना बच्चों का प्रिय शगल है उससे निकल कर कुछ बच्चे नियमित आते हैं और बाकी हर जन्मदिन पर वादा करते हैं कि दीदी कल से हम नियमित आएँगे। बच्चों के मासूम वादे के पूरा होने के इंतज़ार में रहती हूँ और उनके भोलेपन में समाई उनकी रोज़ धूम मचाने और खेलने की चाहत को भी ज़रूरी समझती हूँ। अभी हाल में ही मुझे बच्चों से पता चला कि एक बच्चे की मम्मी ने कहा कि अब इप्टा में नहीं जाना है क्योंकि स्कूल की परिक्षा में पास नहीं हुए। यह सुनकर सहसा हंसी आई कि सारे बच्चे स्कूल से आकर देर शाम और कभी – कभी रात तक गली में खेल रहे होते हैं पर नियमित रूप से ढाई – तीन घंटे की रचनात्मकता और गीत – नाटक – किताबों से उनकी पढ़ाई में असर पड़ रहा है। बच्चों की पढ़ाई पर न तो स्कूल और न ही घरवाले अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे हैं। बच्चे स्वयं ही पढ़ाई से दूर हो रहे हैं उनके साथ पढ़ने की नियमितता बनाने की पहल की एक अलग तरह की कोशिश की आवश्यकता है।



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