याद ए पुरखे

मेहबूब इंक़लाबी शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के साथ एक शाम

13 फरवरी, 2025 को लिटिल इप्टा के नन्हे साथियों के साथ फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का जन्मदिन मनाया। यह ख़ास रहा क्योंकि इसमें शिरकत की नन्हे साथियों ने जबकि हम काफी बड़े होने के बाद फ़ैज़ को जानना-समझना शुरू किए। यह ख़्याल कहीं उम्मीद से भरता है कि जिस दुनिया का ख़्वाब फ़ैज़ और तमाम तरक्कीपसंद शख़्सियतें देखती आई हैं उनको पढ़ना-गाना, याद करना अपनी ज़िंदगी को इंसानियत के पाले/पक्ष में रखनी की वजहें देना है और इसी की कोशिश आज की शाम रही।

लिटिल इप्टा के नन्हे और किशोर साथी

आज के आयोजन में बी एन प्रसाद, मीरा, नादिरा, अंजना, मल्लिका, संजय सोलोमन, अहमद बद्र, कॉमरेड शशि के साथ शामिल हुए ये बच्चे- मानवी, साहिल, अभिषेक, गुँजन, काव्या, अनन्या, श्रवण, नम्रता, सुजल और वर्षा। इनमें से कुछ बच्चे अभी छोटी कक्षाओं में पढ़ते हैं इसलिए उनसे यह उम्मीद और कोशिश किए कि वे नाम याद रख पाएं। कुछ बड़े बच्चों को फ़ैज़ के बारे में बताने के लिए आग्रह रहा अहमद बद्र जी से। उन्होंने बहुत सरल अंदाज़ में बात रखी और बताया कि फ़ैज़ शायर थे और उन्हें हम आज क्यों याद कर रहे हैं।

अंग्रेजों के समय में फ़ैज़ का जन्म हुआ। वे अंग्रेज़ी और अरबी की पढ़ाई किए। प्रगतिशील लेखक संघ किस तरह से अस्तित्व में आया और किस तरह से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ इस संगठन से जुड़े। इस संगठन में अलग- अलग क्षेत्रों के लोग शामिल रहे पर फ़ैज़ सिर्फ लिखने तक महदूद नहीं रहे बल्कि कंपनी कामगारों, किसानों, छात्रों के बीच गए और इसे अपनी कलम से शायरी में ढाल दिया। आज की चर्चा में उन्होंने यह समझाया कि फ़ैज़ का दूसरा नाम था संतुलन। उनमें अपने शायर होने के क़द का टकराव नहीं रहा इसलिए एक तरफ वे ट्रेड यूनियन तो दूसरी तरफ छात्रों के बीच कॉलेज में अध्यापन भी किया साथ ही फ़ैज़ के इश्क़ और इन्क़लाब के शायर होने के मायने को समझाया कि वे अपने एक ही शेर में दोनों बातों को कह देने का हुनर रखते थे इसलिए उन्हें नहीं जानने वाले उसे मोहब्बत की शायरी समझ सकते हैं। फलस्तीन के लिए उनका काम बताया। वे उर्दू के शायर थे पर उनकी मकबूलियत सरहदों को पार कर दुनिया में पहचानी गई, इज़्ज़त बख्शी गई। उनका कमाल यह रहा कि कहीं भी कुछ भी उनके खिलाफ़ नहीं लिखा गया, बोला गया और न ही उन्होंने किसी से नाराज़गी दिखाई, न किसी को दुख दिया। अपनी शायरी में वे जहां बोल कि ‘लब आज़ाद हैं तेरे, हम देखेंगे’, ‘आज बाजार में पा ब जौलां चलो’ ये सभी शानदार हैं पर इसमें छिपी मुलायमियत में गहराई समाई है। जैसे

‘गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले’

इस शेर में हमारी व्यवस्था को गुलशन कहा है, इसमें देश का कारोबार जैसा चल रहा उसे बदलने वाला इन्क़लाब आने की इच्छा ज़ाहिर है, यदि वो क्रांति आ जाएगी तो वो बसंत की बयार होगी, गुलों में, फूलों में रंग भर जाएंगे। हमारी व्यवस्था में जो झुलसाने वाली दुश्वारियां जैसे मंहगाई, बेरोज़गारी आदि चल रही है वो लोगों के जीवन से दूर हों और सभी का अच्छा जीवन हो जाए। इस शेर को पढ़ने-सुनने से लगता है कि फूलों की, चमन की बात हो रही है लेकिन गौर करने पर महसूस होगा कि किस मुलायमियत से गहरी बात कही है और यह खूबी सिर्फ और सिर्फ फ़ैज़ की रही और यही संतुलन है फ़ैज़ की शायरी में । कुछ और शायरों ने कोशिश ज़रूर की पर उनके जैसा नहीं कर पाए। इसीलिए वे शायर- ए-इन्क़लाब भी हैं और शायर-ए-मोहब्बत भी हैं यही उनकी महानता है। बच्चों को पढ़ने और समझने की सलाहियत दी।

फ़ैज़ को गाते वर्षा,नम्रता, अभिषेक, श्रवण और नाल पर सुजल

अहमद बद्र साहब की बात को आगे बढ़ाते हुए बी एन प्रसाद जी ने बच्चों को बताया कि फ़ैज़ खुशहाल दुनिया देखना चाहते थे। बच्चों और बड़ों को सभी सुविधा मिले, समाज की ग़ैर-बराबरी के लिए वो हर मुमकिन कोशिश किए, लड़ाई लड़े। बेहतर की लड़ाई लड़ने के प्रणेता रहे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़।

प्रसाद जी ने बच्चों को अच्छे इंसान बनने के लिए अपना काम ईमानदारी से करने की कोशिश और सवाल करने की सलाहियत दी। और अपने छात्र जीवन में गाए जाने वाले कलाम का शेर कह अपनी बात को विराम दिया –

कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे।

अंत में कॉमरेड शशि कुमार ने कुछ सवाल के साथ अपनी बात बच्चों से रखी। बच्चों से पूछा कि-

एक आदमी को ईमानदारी से, स्वाभिमान के साथ ज़िंदा रहने के लिए क्या-क्या चीज की ज़रूरत है?

फिर पूछा कि तुम्हें कोई गाली दे और रोटी दे तो क्या वो मंज़ूर है?

सभी ने असहमति जताई।

कॉमरेड ने अपने पहले सवाल पर लौटते हुए बच्चों से पूछा कि इज़्ज़त-आबरू के साथ जिंदा रहने के लिए किस चीज़ की ज़रूरत है?

रोटी, भात, दूध, पढ़ाई, दवाई और रहने के लिए घर की दरकार बताई जो बच्चों को अच्छे से समझ आया। इन चार चीज़ों के लिए अभिभावक के पास आमदनी होनी चाहिए पर वो है नहीं।

एक मजदूर आदिवासी स्त्री बच्चे को बांधकर मजदूरी करती, घर निर्माण में मेहनत करती पर उसके लिए आवास नहीं। किसान अनाज पैदा करता है पर उसके पास पर्याप्त अन्न नहीं, मजदूर कपड़ा मिल में काम करके भी कपड़े की कमी से बेहाल इस तरह की दुनिया क्या आपको मंज़ूर है? इस पर भी सभी ने असहमति जताई।

अब पूछा कि अगर ऐसी दुनिया मंज़ूर नहीं तो इसे बदलना चाहिए या नहीं?

सभी बच्चों ने कहा कि बदलना चाहिए। अपनी बात पर आगे उन्होंने कहा कि इस दुनिया को नामंज़ूर करने वाले और इसे बदलने वाले शायर थे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़।

कॉमरेड शशि ने अपने बचपन की याद साझा की कि जिस तराने का ज़िक्र बी एन प्रसाद जी ने किया है वो उनकी ज़िंदगी से जुड़ा हुआ है। जब वे गाते थे

दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे
कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे

उस दौर में इनका नाम भी हम नहीं जानते थे। बच्चों को कहा कि आप सभी खुशकिस्मत हैं कि इस उम्र में उनका नाम सुना और जानने की कोशिश कर रहे हो।

फ़ैज़ को गाते वर्षा,नम्रता, अभिषेक, श्रवण और नाल पर सुजल

अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं
जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे’

इस शेर के मायने समझते हुए कहा कि दुनिया में दबे-कुचले लोगों की आबादी में शामिल हैं-खदान मजदूर, खेत में काम करने वाले, हल चलाने वाले, ईंटा-भट्टा-चिमनी में काम करने वाले। जब ये लोग अपने हक़ के लिए उठेंगे तो गोली-बारूद से भी नहीं रुकेंगे।

फ़ैज़ क्यों ख़ास हैं इसे बड़े सरल तरीके से बताया कि दुनिया में बहुत शायर हैं, कवि हैं जिनकी शायरी, कविता सुनकर हम सभी वाह-वाह करते हैं पर फ़ैज़ वे हैं जो बेहतर ज़िंदगी के लिए बेहतर ज़िंदगी का शायर और इंसानियत का शायर है। वे सबके शायर थे, दुनिया के शायर थे। भूख के लिए, भात के लिए वे लिख रहे थे, फलस्तीन के लिए लिख रहे थे। वे जानते थे कि प्रेम के लिए शांति ज़रूरी है, ऐसी दुनिया मिलकर बनाएं जहां हम प्रेम कर सकें। ब्रेख्त ने एक कविता में कहा कि 

‘जरूरी है कि
कुछ लोगों से नफरत की जाए
ताकि सभी
सभी से प्यार कर सकें ।

इस कविता के हवाले से बच्चों को बताया कि फ़ैज़ जुल्म करने वालों से नफरत भी करते थे इसीलिए वो लिखते हैं कि

‘हम महकूमों के पाँव-तले

जब धरती धड़-धड़ धड़केगी

और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर’

जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी

यानि गरीब आदमी के पाँव तले जब धरती हिलने लगेगी तब हुकूमत करने वालों के सर पर बिजली कड़केगी।

https://youtu.be/UyU6qN_v28g?si=8iLeT2U_VUw6EiIR


फ़ैज़ मोहब्बत के साथ जालिमों से नफरत भी करते थे। फ़ैज़ को गए आज इतने बरस बीत गए फिर भी इंसानियत के रास्ते में चलने के लिए फ़ैज़ हमारे साथ खड़े हैं इसलिए हम फ़ैज़ को याद करते हैं। ज़िंदा लोग जो हुकूमत कर रहे हैं वे आमजन को हैरान-परेशान करते हैं हमारी रोटी, मजदूरी छीन रहे हैं जबकि फ़ैज़ इस दुनिया में न होकर भी हमारी बात अपनी रचनाओं के माध्यम से कर रहे हैं इसलिए हम फ़ैज़ के साथ खड़े हैं उन्हें याद कर रहे हैं। दुनिया के व्यापक हिस्से के लिए किया जाने वाला मनुष्यता का काम किसी आदमी के कद को तय करता है। मनुष्यता से उसे कितना प्रेम है यह उसके बड़प्पन को तय करता है। इसके लिए उन्होंने दो उदाहरण दिए जिसमें लोटस पाटकर जो रोम सल्तनत में गुलाम थे और ग़ुलाम विद्रोह किए,पूरा रोम हिल गया। आज तक उनका नाम है। दूसरा उदाहरण भगत सिंह का दिया जो कि मात्र 23 बरस के थे अंग्रेज के समय में सूरज नहीं डूबता था ऐसा कहा जाता था पर 23 बरस के नवयुवक से अंग्रेज डरे इसलिए उनको फांसी दे दी गई। फ़ैज़ को याद करना इस तरह से भी जरूरी है कि हम मनुष्यता से कितना प्रेम करते हैं और इसीलिए वे जीवन में रिस्क लेने की भी बात करते हैं। मनुष्यता के लिए जो भी शहीद होता है, मारा जाता है उस पर वे लिखे कि-

‘जिस धज से कोई मक़्तल में गया वो शान सलामत रहती है

ये जान तो आनी जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं।

मनुष्यता से प्रेम के लिए उन्होंने लिखा-  

गर बाज़ी इश्क़ की बाज़ी है जो चाहो लगा दो डर कैसा

गर जीत गए तो क्या कहना हारे भी तो बाज़ी मात नहीं’

फ़ैज़ की आहिस्ते से कही गई बात की गहराई हम महसूस कर सकते हैं। दुनिया को बदलने के लिए लड़ाई होगी, हम-आप भले लड़ें न लड़ें पर दुनिया के लोग लड़ेंगे इसीलिए उन्होंने कहा है –

‘यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़

न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई

यूँ ही हमेशा खिलाये हैं हमने आग में फूल

न उनकी हार नई है न अपनी जीत नई।

दुनिया बदलने वालों की जीत होगी इसी उम्मीद के साथ हम हमेशा फ़ैज़ को याद करते रहेंगे। इस सरल, सहज तरीके से किशोर बच्चे फ़ैज़ से रूबरू हुए। पूरा तो नहीं पर हर वर्ष उनको याद किए जाने और गाए जाने की निरन्तरता से आगे वे और भी फ़ैज़ को समझ पाएंगे ऐसी उम्मीद हम करते हैं। इस संवाद के बाद बच्चों ने फ़ैज़ की दो रचनाओं को समझकर गाया- ‘तेरे पैग़ाम पर ऐ वतन ऐ वतन” और “सितम सिखलाएगा रस्म ए वफ़ा ऐसे नहीं होता।’ बच्चे इस बार इसलिए भी उत्साहित हुए क्योंकि लिटिल इप्टा के एक नन्हे साथी अभिषेक का जन्मदिन भी 13 फरवरी का ही है। दो दिन से लगातार अपने जन्मदिन के दिन फ़ैज़ का जन्मदिन मनाए जाने के उत्साह को हम सभी महसूस कर रहे थे। सभी छोटे बच्चे अगर इस आयोजन की वजह से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम भी याद रख पाएं तो यह उनके आगे बढ़ने का और आयोजन का हासिल है। बच्चों के बीच हम इंसानियत का पैग़ाम देने वाले पुरखों को याद करने की ज़रूरत की गंभीरता को समझ पाने की कोशिश में लगे हैं और इसे लगातार करने का वादा उनसे करते हैं।

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ पर बच्चों को संबोधित करते अहमद बद्र

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